Advertisement

'एक महिला की पहचान उसके मैरिटल स्टेटस से नहीं'- Madras High Court ने विधवा स्त्री को दी मंदिर में जाने की अनुमति

Madras high court

मद्रास उच्च न्यायालय ने एक मामले में फैसला सुनाते समय इस बात पर बल दिया है कि एक महिला की पहचान उसके मैरिटल स्टेटस पर निर्भर नहीं करती है; दरअसल एक स्त्री को सिर्फ इसलिए मंदिर में एंट्री नहीं मिल पा रही थी क्योंकि वो एक विधवा हैं। इसी मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है...

Written By Ananya Srivastava | Published : August 5, 2023 2:57 PM IST

नई दिल्ली: मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने शुक्रवार को एक मामले में महिला की पहचान को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। बता दें कि मामला तमिल नाडु के इरोड जिले का है जहां एक स्थानीय मंदिर में चल रहे त्योहार में एक महिला को कुछ गाँववाले इसलिए एंट्री नहीं दे रहे थे क्योंकि वो विधवा हैं।

यह मामला मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आनंद वेंकटेश (Justice Anand Venkatesh) की एकल पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुआ था और महिला याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा कि आज के समय में भी इस तरह की पुरातन मान्यताओं को अहमियत दी जाती है, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।

Advertisement

'एक महिला की पहचान उसके मैरिटल स्टेटस से नहीं'- Madras HC

याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि एक महिला का स्तर और उसकी पहचान उसके मैरिटल स्टेटस पर नर्भर नहीं करती है। अदालत ने कहा है कि किसी के पास यह अधिकार नहीं है कि वो एक महिला को मंदिर में जाने से इसलिए रोके क्योंकि वो विधवा है।

Also Read

More News

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज के समय में भी इस तरह के रूढ़िवादी विचारों और पुरातन मान्यताओं को अहमियत की जाती है कि एक विधवा अगर मंदिर में जाएगी तो मंदिर अपवित्र हो जाएगा, हालाँकि, सुधारक इन सभी मूर्खतापूर्ण मान्यताओं को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, फिर भी कुछ गाँवों में इसका अभ्यास जारी है।

Advertisement

अदालत ने आगे कहा कि ये मनुष्य द्वारा अपनी सुविधा के अनुरूप बनाई गई हठधर्मिता (Dogmas) और नियम हैं और यह एक महिला को सिर्फ इसलिए अपमानित करता है क्योंकि उसने अपने पति को खो दिया है; कानून के शासन वाले सभ्य समाज में यह सब कभी नहीं चल सकता। यदि किसी के द्वारा किसी विधवा को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने का ऐसा कोई प्रयास किया जाता है, तो उसके खिलाफ कानून के तहत रख्त कार्रवाई होगी।

मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला

यह कहकर मद्रास उच्च न्यायालय ने स्थानीय पुलिस को निर्देश दिया कि वो उन सभी लोगों को बुलाएं जिन्होंने याचिकाकर्ता को धमाया है और उन्हें स्पष्ट रूप से यह सूचित कर दें कि वो याचिकाकर्ता और उसके बेटे को न ही मंदिर में प्रवेश करने से रोक सकते हैं और न ही उस त्योहार का हिस्सा बनने से, जो 9 और 10 अगस्त को आयोजित किया जा रहा है।

जानें क्या था पूरा मामला

तमिल नाडु के इरोड जिले के एक स्थानीय मंदिर में एक महिला और उनके बेटे को प्रवेश करने से कुछ गांववालों ने इसलिए मना कर दिया क्योंकि वो विधवा हैं; इसी के चलते उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि उन्हें मंदिर में प्रवेश करने से तो मना किया ही जा रहा है, साथ ही, उन्हें कुछ लोगों से धमकियाँ भी मिल रही हैं क्योंकि उन लोगों को लगता है कि अगर एक विधवा स्त्री मंदिर में जाएगी तो मंदिर परिसर अपवित्र और अशुद्धध हो जाएगा। बता दें कि याचिकाकर्ता के स्वर्गवासी पति इसी मंदिर में पुजारी हुआ करते थे।