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सीवर सफाई के दौरान कर्मचारी की मौत मामले में मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, परिवार को दस लाख मुआवजा देने का आदेश

सीवर और सफाईकर्मी (सांकेतिक चित्र)

फैसले में मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को दोष देना आसान हैं, जबकि नागरिक खुद सीवर में अंधाधुंध कचरा-समान डाल रहे हैं. शहर में बने सीवर, हमारे मस्तिष्क में रक्त ले जाने वाली धमनियों की तरह है, उन्हें ब्लॉकेज फ्री रखा जाना चाहिए.

Written By Satyam Kumar | Published : January 9, 2025 1:34 PM IST

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में चेन्नई महानगर जल आपूर्ति और सीवेज बोर्ड  को साल 2000 में हाथ से मैला ढोने के दौरान मृत श्रीधर के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. फैसले में अदालत ने लोगो की सीवर में अंधाधुंध रवैये से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें इस तरह से गंदगी फैलाने से बचना चाहिए. यह मामला साल 2000 का यह मामला सीवर सफाई के दौरान एक सफाईकर्मी श्रीधर की मौत से जुड़ा है. हादसे को लेकर श्रीधर के पिता ने लेबर कमिश्नर के सामने दावा किया कि उसे सीवर सफाई करने के लिए कोई सुरक्षा उपकरण नहीं दिया गया था, हालांकि उनकी मुकदमे की सुनवाई के दिन उनकी अनुपस्थिति की वजह से डिप्टी लेबर कमिश्नर ने श्रीधर के पिता की याचिका खारिज कर दी थी.

सीवर, शरीर में बने धमनियों की तरह: HC

मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस भरत चक्रवर्ती ने महात्मा गांधी के विचारों का जिक्र करते हुए कहा कि अधिकारियों को दोष देना आसान हैं, जबकि नागरिक खुद सीवर में अंधाधुंध कचरा-समान डाल रहे हैं. शहर में बने सीवर, हमारे मस्तिष्क में रक्त ले जाने वाली धमनियों की तरह है, उन्हें ब्लॉकेज फ्री रखा जाना चाहिए.

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मद्रास हाईकोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ मामला को आधार बनाते हुए, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सीवर सफाई में मरने वाले व्यक्ति के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया था, को आधार बनाते हुए श्रीधर के परिवार को दस लाख मुआवजा देने का निर्देश दिया.

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मद्रास हाईकोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि यदि सीवर की सफाई के लिए उपयोग किए जानेवाले सुरक्षा उपकरणों का उपाय किसी ठेकेदार ने नहीं किया है, तो उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई किया जाना चाहिए.

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क्या है मामला?

यह मामला साल 2000 की घटना से जुड़ा है, जब चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वाटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड (CMWSSB) द्वारा नियोजित ठेकेदार सेल्वम ने श्रीधर को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के भूमिगत सीवर की सफाई के लिए लगाया गया था. सफाई कार्य के दौरान दम घुटने से उसकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनके पिता कन्नैयन ने मुआवजे के लिए श्रम कर्मकार उपायुक्त (Deputy Labour Commissioner) के पास राहत की मांग को लेकर गए. हालांकि, सुनवाई के दिन कन्नैयन की अनुपस्थिति के चलते लेबर कमिश्नर ने उसका मामला खारिज कर दिया.

कन्नैयन ने देरी को माफ करने के लिए याचिका दायर की, लेकिन उपायुक्त ने इसे फिर से खारिज कर दिया. कन्नैयन के एडवोकेट प्रभाकर रेड्डी ने कहा कि उपायुक्त का निर्णय अनुचित था. उन्होंने यह भी बताया कि ठेकेदार ने श्रीधर को बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करने की अनुमति दी, जिसके गंभीर परिणाम हुए. हादसे के लिए पीड़ित के परिवार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, डिप्टी लेबर कमिश्नर को एक उदार दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता थी. फैसले के खिलाफ सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को श्रीधर के परिवार को मुआवजा तुरंत देना चाहिए था. इसके अलावा, लेबर कमिश्नर को मामले के तथ्यों के प्रति जागरूक रहना चाहिए था. नाराजगी जताते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, जिसने श्रीधर को बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करने दिया.