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लिव-इन-रिलेशनशिप का प्रचलन विदेशों में है, भारतीयों का विश्वास हमारे संस्कृति और सभ्यता में है: Allahabad High Court 

Supreme Court

मामले में एक व्यक्ति हैबियस कॉर्पस के माध्यम से लिव-इन- रिलेशनशिप दावा करते हुए याचिका दायर की . जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करने के साथ-साथ 25000 जुर्माना भी लगाया.

Written By My Lord Team | Updated : January 23, 2024 6:25 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने भारतीय समाजिक परिवेश को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. एक याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप का प्रचलन पाश्चात्य देशों (Western Countries) में सामान्य है. भारत में लोग अपने सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप जीवन जीते है.

लिव-इन पाश्चात्य परंपरा

जस्टिस शमीम अहमद ने यह बातें एक याचिका की सुनवाई करते कहीं, जिसमें एक 32 वर्षीय व्यक्ति ने 29 वर्षीय महिला मित्र के परिवार पर उसे जबरदस्ती साथ रखे जाने का आरोप लगाया. याचिकाकर्ता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) के माध्यम से याचिका दायर की. याचिका में अपने तर्कों को सर्पोट करने के लिए व्यक्ति ने फोटोग्राफ्स भी लगाया.

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सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति द्वारा दिए तर्कों के प्रति असहमति जताई. साथ ही याचिका के माध्यम से साफ कर दिया कि लिव-इन-रिलेशनशिप भारतीय सभ्यता नहीं है. भारत के लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार चलते हैं. और यह हमारे लिए गर्व की बात है.

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याचिका पूर्वाग्रह से प्रेरित

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeous Corpus) के तहत दायर यह सिर्फ लड़की और उसके परिवार को समाज में बदनाम करने की नियत से किया गया है.

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जस्टिस अहमद ने कहा,

"इस याचिका में कोर्ट को कोई ऐसे ठोस सबूत नहीं मिले, जिससे इस मामले को आगे बढ़ाये. यह याचिका केवल लड़की और उसके परिवार को समाज में नीचा दिखाने (Defame) के लिए किया गया प्रतीत होता है. अगर अदालत इस मामले की सुनवाई करती है, तो इसमें लड़की और उसके परिवार की बदनामी होगी. "

साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया, कि उसने लिव-इन रहने की बजाय शादी क्यों नहीं की? साथ ही कोर्ट ने दोनों के लिव-इन के समर्थन में दिए गए सबूतों को बेबुनियाद पाया.

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को रद्द कर दिया. साथ ही याचिकाकर्ता पर 25,000 रूपये का जुर्माना लगाया.