LGBTQ: समलैंगिक विवाह पर SC में सनुवाई आज,केन्द्र ने किया याचिका का विरोध
नई दिल्ली: केन्द्र सरकार ने Supreme Court में समलैंगिक विवाह की याचिका का किया विरोध करते हुए कहा हैं कि किसी विशेष प्रकार के सामाजिक संबंध की मान्यता के लिए कोई मौलिक अधिकार नहीं हो सकता है.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्य पीठ इस मामले में आज सुनवाई करेगी. सुनवाई से एक दिन पूर्व रविवार को ही केन्द्र सरकार ने हलफनामें के जरिए अपना पक्ष रखा है.
अपने जवाब में केन्द्र ने समलैंगिक जोड़ों द्वारा समलैंगिक विवाह को कानून के तहत मान्यता देने की मांग को दायर याचिका का विरोध किया है.
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परिवार की अवधारणा नहीं
रविवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए अपने जवाब में केन्द्र सरकार ने कहा है कि समान लिंग वाले व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध रखना और समलैंगिक विवाह भारतीय परिवार की अवधारणा नहीं है,
सरकार ने कहा कि उत्तरार्द्ध को एक 'पति' के रूप में एक जैविक पुरुष, एक 'पत्नी' के रूप में एक जैविक महिला और दोनों के मिलन से पैदा हुए बच्चों की आवश्यकता होती है.
केन्द्र ने कहा कि "पारिवारिक मुद्दे एक ही लिंग के व्यक्तियों के बीच विवाह की मान्यता और पंजीकरण के परे हैं.
ये मौलिक अधिकार नहीं
केन्द्र ने अपने जवाब में कहा है कि यह निश्चित रूप से सच है कि सभी नागरिकों को अनुच्छेद 19 के तहत संघ बनाने का अधिकार है, कोई सहवर्ती अधिकार नहीं है कि ऐसे संघों को आवश्यक रूप से राज्य द्वारा कानूनी मान्यता प्रदान की जानी चाहिए. न ही ऐसे मामले में अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को रखा जा सकता है.
केंद्र ने अपने हलफनामे में तर्क दिया है कि समान लिंग के व्यक्तियों के विवाह के पंजीकरण के परिणामस्वरूप मौजूदा व्यक्तिगत और साथ ही संहिताबद्ध कानून प्रावधानों का उल्लंघन होगा, जैसे 'निषिद्ध संबंध की डिग्री', 'विवाह की शर्तें' और 'अनुष्ठान और अनुष्ठान की आवश्यकताएं'.
केन्द्र ने कहा है कि "विधायिका की मंशा एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह के कानूनी संबंध की मान्यता तक सीमित थी, जिसे एक पति और पत्नी के रूप में दर्शाया गया है. याचिकाकर्ताओं की याचिका, जनहित याचिका/रिट क्षेत्राधिकार में स्पष्ट रूप से विधायी को फिर से लिखने की मांग करती है.
घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए, केंद्र ने कहा है कि उपरोक्त उद्धृत और अन्य वैधानिक प्रावधानों को समान-लिंग विवाह में व्यावहारिक बनाना असंभव है.
सरकार ने आगे स्पष्ट किया कि हालांकि समान यौन संबंध गैरकानूनी नहीं हैं, लेकिन राज्य केवल विवाह के तरीके के लिए विषमलैंगिक संबंधों को मान्यता देता है. केन्द्र ने कहा "राज्य इन अन्य प्रकार के विवाहों या संघों या समाज में व्यक्तियों के बीच संबंधों की व्यक्तिगत समझ को मान्यता नहीं देता है, लेकिन ये गैरकानूनी नहीं हैं"
क्या है मामला
गौरतलब है हैदराबाद में रहने वाले दो समलैंगिक पुरुषों सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग की ओर से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.
याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 25 नवंबर को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था.इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से भी जवाब मांगा था.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने देशभर में समलैंगिको से जुड़ी याचिकाओं को भी सुप्रीम कोर्ट में स्थानान्तरित करने के आदेश दिए थे.