Advertisement

कानून में घरेलू हिंसा पर कार्रवाई उसकी डिग्री के आधार पर नहीं होगी: बंबई उच्च न्यायालय

Bombay HC Observes that in a case of Domestic Violence its degree does not matter

घरेलू हिंसा को लेकर दायर की गई एक याचिका को अनुमति देते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है; अदालत का यह कहना है कि 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005' के तहत डोमेस्टिक वायलेंस पर कार्रवाई उसकी डिग्री देखकर नहीं होगी

Written By My Lord Team | Published : June 28, 2023 2:17 PM IST

नई दिल्ली: घरेलू हिंसा (Domestic Violence) से जुड़े एक मामले में, निचली अदालत के एक ऑर्डर को चुनौती देने वाली याचिका को अनुमति देते हुए बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने यह टिप्पणी की है कि घरेलू हिंसा अपने आप में एक गंभीर विषय है और ऐसे में कार्रवाई के दौरान इसकी डिग्री या मात्रा कितनी है, यह मायने नहीं रखता।

जैसा कि हमने आपको अभी बताया कि घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले में सेशन्स कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका को बंबई उच्च न्यायालय ने अनुमति दे दी है। याचिकाकर्ता का यह कहना है कि निचली अदालत के ऑर्डर में उन्होंने जिस घरेलू हिंसा का सामना किया है, उसे 'छोटा' बताया गया है।

Advertisement

इस ऑर्डर पर चुनौती देने वाली याचिका को अनुमति देते हुए बंबई हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005' (The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत यह साबित कर देती है कि उसको डोमेस्टिक वायलेंस का सामना करना पड़ा है, तो उस हिंसा की डिग्री या मात्रा कितनी है, इससे कोई मतलब नहीं है।

Also Read

More News

निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका को अनुमति दी है और कहा कि हिंसा शारीरिक या लैंगिक हो यह जरूरी नहीं, हिंसा मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक भी हो सकता है। इनमें से किसी भी मामले में अदालत अपने हिसाब से उस हिंसा को कम-ज्यादा या छोटा-बड़ा नहीं कह सकती है।

Advertisement

जानें पूरा मामला

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि याचिकाकर्ता का यह कहना है कि उनके पति ने शादी के बाद उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें यौन शोषण का भी सामना करना पड़ा है; इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता का कहना है कि उनके पति ने उनकी बेटी के साथ भी दुर्व्यवहार किया।

इस सबके चलते याचिकाकर्ता अपनी मां के घर पर रहने लगी और फिर उन्होंने 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005' के तहत अपने पति के खिलाफ जेएमएफसी कोर्ट (JMFC Court) में मामला दर्ज किया।

जेएमएफसी ने अपने ऑर्डर में कहा है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी पर घरेलू हिंसा के जो आरोप लगाए हैं तो 'छोटे' हैं और असली विवाद उनके बच्चों को लेकर है; इस सबके बाद भी जेएमएफसी ने प्रतिवादी को याचिकाकर्ता को मेंटेनेंस देने का निर्देश दिया।

अपील में इस कोर्ट के जज ने ऑर्डर रिवर्स कर दिया और कहा कि प्रतिवादी पर लगाए गए आरोप घरेलु हिंसा में नहीं आते हैं और इसलिए याचिकाकर्ता को अंतरिम मेंटेनेंस नहीं मिलेगी। उच्च न्यायालय ने इस अदालत के ऑर्डर को खारिज कर दिया है।