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जानें कब मिलता हैं आपको आत्मरक्षा का अधिकार, क्या है IPC के प्रावधान

एक नागरिक अपने ऊपर हो रहे हमले को रोकने के लिए, दुष्कर्म, चोरी, डकैती, हमले में मृत्यु की आशंका, गंभीर चोट, अप्राकृतिक दुष्कर्म, अपहरण, एसिड हमले की आशंका की स्थिति में खुद को किसी भी हमले से बचाने के लिए हमलावर पर वार करना कोई अपराध नहीं माना जाता बल्कि यह एक अधिकार है.

Written By nizamuddin kantaliya | Published : December 14, 2022 10:18 AM IST

संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने का अधिकार है. इसी जीवन जीने के अधिकार के तहत खुद की सुरक्षा और अपनी संपत्ति की रक्षा करने का मौलिक अधिकार भी शामिल है. इसलिए आत्मरक्षा का अधिकार सिर्फ कानूनी ही नहीं बल्कि मौलिक अधिकार भी है. देश की सर्वोच्च अदालत ने भी अपने फैसले में आत्मरक्षा कानून (Self Defense Law) को जीवन का अधिकार माना है.

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कानून के अनुसार प्रत्येक नागरिक को आत्मरक्षा के साथ अपने परिजनों की सुरक्षा का भी अधिकार मिला हुआ है. इसे कानून की भाषा में आत्मरक्षा का अधिकार यानी राइट टू सेल्फ डिफेंस कहा जाता है. आईपीसी की धारा 96 से लेकर 106 तक तक आत्मरक्षा के अधिकार की विस्तृत व्याख्या की गयी है.

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क्यों मिला है ये अधिकार

किसी भी देश में मौजूद सभी नागरिकों की सुरक्षा और उनकी रक्षा की जिम्मेदारी वास्तविक रूप में राज्य या उसके अधीन स्थापित संस्थाओं का होता है लेकिन कोई भी राज्य हर एक व्यक्ति पर हुए हमले के समय या स्थिति में उसकी रक्षा के लिए उपस्थित नहीं हो सकता है.

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ऐसी स्थिति में जब राज्य या उसके अधीन की सुरक्षा संस्था नागरिक की रक्षा के लिए तत्काल मौजूद नहीं हो सकती है. तो ऐसी स्थिति में नागरिक या व्यक्ति खुद अपनी रक्षा के लिए आवश्यकता अनुसार बल का प्रयोग करते हुए आत्मरक्षा कर सकता है और करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता है.

क्या है कानूनी प्रावधान

आत्मरक्षा के अधिकार को आईपीसी की धारा 100 में स्पष्ट किया गया है. इसके अनुसार हमारे देश में रह रहे हर एक नागरिक का देश पर समान भागीदारी होती है और इसके तहत देश  के हर एक व्यक्ति की जिम्मेदारी भारत सरकार या राज्य सरकार की है. लेकिन सरकार हर एक व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती, इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक को खुद की रक्षा करने का अधिकार है.

एक नागरिक अपने ऊपर हो रहे हमले को रोकने के लिए, दुष्कर्म, चोरी, डकैती, हमले में मृत्यु की आशंका, गंभीर चोट, अप्राकृतिक दुष्कर्म, अपहरण, एसिड हमले की आशंका की स्थिति में खुद को किसी भी हमले से बचाने के लिए हमलावर पर वार करना कोई अपराध नहीं माना जाता बल्कि यह एक अधिकार है.

क्या कहती है आईपीसी 96 से 106

आईपीसी की धारा 96 से 106 तक अलग अलग धाराओं में इस आत्मरक्षा का अधिकार(right to self defence) का विस्तृत प्रावधान किया गया है.

IPC की धारा 96— इस धारा के अनुसार किसी भी व्यक्ति द्वारा आत्मरक्षा में किया गया कोई भी कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता है.

IPC की धारा 97— किसी व्यक्ति के खुद के शरीर, संपत्ति या अन्य व्यक्ति के शरीर या संपत्ति के खिलाफ कोई हमला हो रहा है तो व्यक्ति को आत्मरक्षा कानून के तहत बल प्रयोग का अधिकार है.

IPC की धारा 98— किसी पागल या विकृत मानसिकता के व्यक्ति द्वारा आप पर किए गए हमले के दौरान आपको आत्मरक्षा में बल का प्रयोग करने का अधिकार है.

IPC की धारा 99— इस धारा के अनुसार कुछ परिस्थितियों में आत्मरक्षा के लिए बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता है. खासतौर से किसी लोक सेवक या लोक सेवक के निर्देश पर अन्य व्यक्तियों द्वारा आपके शरीर या संपत्ति पर संकट उत्पन्न होता है ऐसी स्थिति में आत्मरक्षा का अधिकार सीमित हो जाता है. जैसे किसी व्यक्ति के खिलाफ वारंट जारी होने पर पुलिस उसे गिरफ्तार करने आती है.

IPC की धारा 100— इस धारा में उन 7 परिस्थितियों का जिक्र किया गया है जब एक नागरिक आत्मरक्षा में  भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अंतर्गत ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है जब शरीर की निजी प्रतिरक्षा या आत्मरक्षा में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

IPC की धारा 101— इस धारा के तहत ऐसी परिस्थितियां तय की गयी है जब निजी प्रतिरक्षा या आत्मरक्षा में बल का प्रयोग करते हुए किसी व्यक्ति को जान से नहीं मारा जा सकता है.

IPC की धारा 102— इस धारा के अंतर्गत यह प्रावधान है किया गया है कि शरीर की आत्मरक्षा या निजी प्रतिरक्षा का अधिकार कब से कब तक लागू होगा.

IPC की धारा 103— इस धारा में उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है.लूट, रात्रि में घर में घुसना, आग लगने की स्थिति और घर में चोरी के समय में व्यक्ति द्वारा अपनी प्रतिरक्षा में बल प्रयोग करते अगर सामने वाले व्यक्ति की मौत हो जाने की स्थिति बताई गयी है.

IPC की धारा 104— इस धारा में उस स्थिति की जानकारी दी गयी है जिसके अनुसार एक व्यक्ति अपनी संपत्ति की रक्षा करते हुए किसी की जान लेने का अधिकार नहीं रखता.

IPC की धारा 105— इस धारा में यह वर्णन किया गया है कि एक व्यक्ति के लिए उसकी संपत्ति की रक्षा का अधिकार कब से कब तक बना रहता है. इसके अनुसार प्रतिरक्षा का अधिकार तब तक बना रहता है जब तक आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता है अथवा पुलिस नहीं आ जाती है.

IPC की धारा 106— किसी व्यक्ति पर अगर कोई भीड़ आक्रमण कर देती है और उससे बचने के लिए किसी को चोट पहुंचानी पड़े तो यह आत्मरक्षा की श्रेणी में आता है.चाहे भीड़ में से कोई निर्दोष ही क्यों ना हो.