जानिए कोर्ट में झूठी गवाही देने पर क्या है सजा का प्रावधान
झूठी गवाही है एक गंभीर अपराध
झूठी गवाही एक निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से फसाने के उद्देश्य से दी जाती है यह एक अपराधी को निर्दोष सिद्ध करने के लिए भी दी जा सकती है और किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए भी दी जा सकती है. झूठी गवाही देने वाले को पता होता है कि वह झूठ बोल रहा है
किसी भी अपराधिक मामले में जैसे अदालत द्वारा आरोप तय किए जाते है उसके बाद अभियोजन पक्ष, शिकायत पक्ष और बचाव पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज किए जाते हैं कई बार ऐसे भी मामले देखने को मिलते हैं, जब गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं.
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लालच या दबाव में
कई बार अदालतो के बाहर भी मुख्य गवाह से लेकर दूसरे गवाह भी पैसों के लालच, सामाजिक या अन्य दबाव की वजह से झूठी गवाही देते है. लेकिन ऐसे मामलों में अदालत में ये साबित हो जाए कि गवाह ने झूठी गवाही दी है. ऐसे में झूठी गवाही देने के लिए गवाह को अदालत जेल भेज सकती है.
झूठी गवाही देने पर ना केवल शिकायतकर्ता बल्कि दोषी भी झूठे गवाह के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है. ऐसे मामलों में कोर्ट पास भी अधिकार है कि कोई गवाह शपथ लेकर झूठ बोल रहा है, तो अदालत उसके खिलाफ CRPC की धारा 340 के तहत मुकदमा चलाने के लिए आदेश दे सकती है.
क्या है सजा का प्रावधान
ऐसी स्थिती में जब एक गवाह पर अदालत में झूठी गवाही देने का अपराध साबित हो जाता है तो उसे आईपीसी की धारा 193 के तहत झूठी गवाही देने वाले व्यक्ति को अधिकतम 7 साल तक की सज़ा और जुर्माने की सज़ा सुनाई जा सकती है.
लेकिन आईपीसी की धारा 340 में सज़ा की कोई सीमा नहीं बताई गई है और कोर्ट द्वारा अपने विवेक के अनुसार कितनी भी सज़ा सुनाई जा सकती है.
मौत की सजा तक का प्रावधान
अगर किसी गवाह की गवाही के चलते निर्दोष व्यक्ति को सजा हो जाती है तो ऐसी स्थिति में अदालत झूठी गवाही देने वाले को
10 साल तक की जेल और जुर्माना की सजा दे सकती है.
यदि किसी गवाह की झूठी गवाही या झूठे दस्तावेज के चलते निर्दोष व्यक्ति को मौत की सजा दी गयी हो और उसे फांसी हो चुकी हो तब ऐसे मामले में झूठे गवाह को भी मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है.