Rape मामलों में पीड़ित-आरोपी के बीच सुलह होने का कोई मतलब नहीं, कहकर केरल HC ने मुकदमा रद्द करने से किया इंकार
Rape Case: हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने रेप केस को रद्द करने से इंकार करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में पीड़ित और आरोपी के बीच सुलह मान्य नहीं है, साथ ही यह पब्लिक पॉलिसी के भी विरूद्ध हैं. ऐसा कहकर केरल हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी की मांग को खारिज कर दिया. वहीं, आरोपी ने आपसी सुलह होने को आधार बनाकर प्राथमिकी रद्द (To Quash FIR) करने की मांग की थी.
समझौते का उद्देश्य सार्वजनिक अपराध से संबंधित अभियोजन को दबाना है, केरल HC ने खारिज की मांग
केरल हाईकोर्ट में जस्टिस बदरूद्दीन ने बलात्कार के मामले को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि यह स्थापित कानून है कि कोई भी समझौता या अनुबंध इस कारण से मान्य नहीं होगा, यदि उसका विचार सार्वजनिक नीति के विरुद्ध है. इसी प्रकार, मुकदमा से हटाने के लिए अनुबंध या समझौता कुछ और नहीं बल्कि सार्वजनिक अपराध से संबंधित अभियोजन को दबाना है और यह भी पब्लिक पॉलिसी के विरुद्ध है,
अदालत ने कहा,
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"शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौते का समर्थन करने के लिए रखे गए अनुबंध का उद्देश्य बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में अभियोजन पक्ष को दबाना है. इसलिए, ये अवैध हैं और इन्हें कार्यवाही को रद्द करने का एकमात्र आधार नहीं माना जा सकता है."
अदालत ने आरोपी की मांग को मानने इंकार करते हुए मुकदमा रद्द करने से इंकार कर दिया है.
पूरा मामला क्या है?
मामले में अब्दुल जलील, ग्राम पंचायत में सहायक सचिव, के खिलाफ 2018 में बलात्कार मामला दर्ज कराया जाता है. जिस पर पीड़िता, ग्राम पंचायत की महिला कर्मचारी, ने 13 मार्च 2016 के दिन बलात्कार करने का आरोप लगाया. पीड़िता ने दावा किया कि उसने डर व झिझक से आरोपी से चिकित्सा सहायता मांगी, इसके आरोपी ने उससे शादी करने की बात कही, और उसके बाद उसका यौन शोषण करना जारी रखा.
महिला ने जब शिकायत दर्ज कराई तो अब्दुल जलील ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि पीड़िता पैसे ऐंठने के लिए उसे झूठे मामले में फंसा रही है. उसने अपने दावे को साबित करने के लिए अपने और शिकायतकर्ता के बीच हुए दो समझौते भी अदालत के सामने रखे. साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि अगर यौन संबंध बना भी था, तो यह सहमति से हुआ.
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि केवल समझौतों के आधार पर मामले को खारिज नहीं किया जा सकता है.अदालत ने फैसले में ये भी कहा कि 2016 की घटना को प्रथम दृष्टया सहमति से नहीं माना जा सकता है. केरल हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से मना कर दिया.