सुप्रीम कोर्ट में केजरीवाल की याचिका पर हुई सुनवाई, जानिए जमानत के विरोध में CBI ने क्या-कुछ कहा, फैसला रिजर्व
Arvind Kejriwal's Bail Plea: गुरुवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की रिहाई से आबकारी नीति घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कई गवाहों के मुकरने की संभावना हैं. वहीं सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सीबीआई ने ये गिरफ्तारी केवल इंश्योरेंस के तौर पर की है. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला रिजर्व रखा है.
केजरीवाल की रिहाई से गवाहों के मुकरने की संभावना हैं: CBI
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई की. केजरीवाल ने इन याचिकाओं में सीबीआई की गिरफ्तारी को चुनौती व जमानत देने की मांग की है. इस दौरान केजरीवाल की ओर से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी मौजूद हुए.
उन्होंने दावा किया कि सीबीआई ने अगस्त 2022 से दो साल तक केजरीवाल को गिरफ्तार नहीं किया, लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत पर उनकी रिहाई को लेकर जल्दबाजी में इंश्योरेंस के तौर पर गिरफ्तारी की है.
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सुप्रीम कोर्ट से केजरीवाल को जमानत पर रिहा न करने का आग्रह करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एसवी राजू ने कहा कि गोवा विधानसभा चुनाव 2022 में आम आदमी पार्टी (AAP) के कई उम्मीदवार आप सुप्रीमो की गिरफ्तारी के बाद ही केंद्रीय एजेंसी के सामने अपने बयान देने के लिए आगे आए, यदि आप केजरीवाल को जमानत पर रिहा करते हैं, तो वे (गवाह) प्रतिवादी हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि हवाला चैनलों के माध्यम से दिल्ली से गोवा में कुल 44.54 करोड़ रुपये भेजे गए हैं, जिसका इस्तेमाल विधानसभा चुनावों में विभिन्न चुनाव संबंधी खर्चों को पूरा करने के लिए किया गया है.
जमानत के लिए केजरीवाल को वापस से ट्रायल कोर्ट भेजा जाना चाहिए: सीबीआई
सीबीआई की ओर से पेश हुए एएसजी राजू ने कहा कि केजरीवाल की जमानत याचिका को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजा जाना चाहिए और उन्हें पहली बार में दिल्ली उच्च न्यायालय में जमानत के लिए याचिका दायर नहीं करनी चाहिए थी. उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से केजरीवाल के खिलाफ दायर आरोपपत्र की सामग्री पर विचार करने का आग्रह किया, जिस पर ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लिया है और 11 सितंबर को केजरीवाल के लिए प्रोडक्शन वारंट जारी किया है.
सीबीआई ने कहा कि गिरफ्तारी जांच का एक हिस्सा है और आम तौर पर, एक जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने के लिए अदालत से किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है. इस मामले में अदालत ने (गिरफ्तारी करने का) अधिकार देने का आदेश दिया था. सीबीआई ने कहा कि जब अदालत के आदेश के अनुसार गिरफ्तारी की जाती है, तो कोई आरोपी मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की दलील नहीं दे सकता.
सरकारी विधि अधिकारी ने यह भी कहा कि धारा 41ए सीआरपीसी के तहत नोटिस दिए गए किसी आरोपी को गिरफ्तार करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है और एक जांच अधिकारी उसे लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए गिरफ्तार कर सकता है.