Senthil Balaji को जमानत नहीं मिली, Madras HC के स्प्लिट वर्डिक्ट के बाद Justice Karthikeyan ने सुनाया फैसला
नई दिल्ली: तमिल नाडु सरकार के विद्युत मंत्री रह चुके वी सेंथिल बालाजी (V Senthil Balaji) की जमानत याचिका पर कुछ समय पहले मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) की पीठ ने स्प्लिट वर्डिक्ट (Split Verdict) सुनाया था; अब जस्टिस सी वी कार्तिकेयन ने इसपर अंतिम निर्णय सुना दिया है।
बता दें कि वे सेंथिल बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने धन शोधन के एक मामले (Money Laundering Case) में पिछले महीने गिरफ्तार किया था जिसके बाद मंत्री की पत्नी ने उच्च न्यायालय में अपने पति की जमानत हेतु याचिका दायर की थी।
Split Verdict क्या होता है और ऐसी स्थिति में किस तरह होती है अदालत में कार्यवाही?
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V Senthil Balaji की जमानत याचिका में खंडित फैसले के बाद अब 11 जुलाई को होगी सुनवाई
स्प्लिट वर्डिक्ट के बाद बालाजी मामले में हुआ फैसला
जैसा कि हमने आपको अभी बताया, मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सी वी कार्तिकेयन (Justice CV Karthikeyan) ने स्प्लिट वर्डिक्ट के बाद सेंथिल बालाजी की जमानत के मामले में फैसला सुनाया जो यह था कि तमिल नाडु मंत्री को जमानत नहीं मिलनी चाहिए।
जस्टिस सी वी कार्तिकेयन ने यह सूचित किया है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) वी सेंथिल बालाजी को हिरासत में ले सकती है और क्योंकि यह अरेस्ट और रिमांड लीगल है, वो जस्टिस डी भरत चक्रवर्ती से सहमत हैं और इसी के चलते मंत्री को जमानत नहीं दी जाएगी। जस्टिस कार्तिकेयन ने फैसला सुनाते समय 'वाई बालाजी बनाम कार्तिक देसाई' नाम के उच्चतम न्यायालय के मामले को भी ध्यान में रखा है।
बता दें कि न्यायाधीश निशा बानु (Justice Nisha Banu) और न्यायाधीश डी भरत चक्रवर्ती (Justice D Bharatha Chakravarthy) की पीठ ने वी सेंथिल बालाजी की जमानत याचिका पर खंडित फैसला सुनाया था जिसमें जस्टिस बानु जमानत के पक्ष में थीं और जस्टिस चक्रवर्ती इसका विरोध कर रहे थे।
जस्टिस सी वी कार्तिकेयन का ऑर्डर
इस मामले में अपने ऑर्डर में जस्टिस सी वी कार्तिकेयन ने कहा है, 'यदि जांच के लिए हिरासत की आवश्यकता होती है तो अधिकार के रूप में हिरासत दी जानी चाहिए... लेकिन किसी भी आरोपी को पूछताछ को विफल करने का अधिकार नहीं है।'
ऑर्डर में आगे कहा गया है, 'अपने खराब स्वास्थ्य से पहले भी, आरोपी ने गिरफ्तारी के आधारों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और फिर दावा किया कि उसे गिरफ्तारी के आधार प्रदान नहीं किए गए थे। इसपर इस न्यायालय द्वारा विचार नहीं किया जा सकता। इसे झूठ घोषित किया जाना चाहिए... जब गिरफ्तारी संभव है, तो हिरासत की मांग करना भी स्वीकार्य है।'
जस्टिस कार्तिकेयन ने ऑर्डर देने के बाद रेजिस्ट्री से कहा कि वो अब इस मामले को मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष प्रस्तुत करें जिससे उनकी राय के आधार पर फाइनल ऑर्डर पास किया जा सके।