न्यायिक अधिकारी राजनीतिक पृष्ठभूमि से दूर रहते है, हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति के मामले में बढाया जाए इनका कोटा
नई दिल्ली:मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति का विवाद अभी शांत भी नहीं हुआ है कि अब देशभर में हाईकोर्ट में होने वाली जजों की नियुक्ति के मामले में न्यायिक अधिकारियों का कोटा बढ़ाये जाने की मांग की गई है.
जिला न्यायपालिका के इन्फ्रास्ट्रक्चर सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में All India Judges Association ने याचिका दायर कर रखी है. इसी याचिका की सुनवाई के दौरान Judicial Service Association of Delhi ने भी प्रार्थना पत्र दायर करते हुए न्यायिक अधिकारियों के कोटे को 33 से 50 प्रतिशत तक बढ़ाने की मांग की.
सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति में न्यायिक अधिकारियों का कोटा 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की मांग को लेकर दायर इस प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार और दिल्ली हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया हैं.
Also Read
- शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन नहीं देना ज्ञान का अपमान... सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के संविदा प्राध्यापकों के हक में सुनाया ये फैसला
- आवारा कुत्तों को खाना देने पर SC का नया आदेश, नियम तोड़ने पर लगेगा भारी जुर्माना, जान लें पूरा फैसला
- 'वोटर लिस्ट से बाहर हुए नामों को सार्वजनिक करें', सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दिया अहम आदेश
Judicial Service Association of Delhi के अध्यक्ष राजीव रंजन द्विवेदी की ओर से दायर किए गए इस प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि चूंकि न्यायिक अधिकारी लंबे समय तक राजनीतिक पृष्ठभूमि से दूर रहते है और उनके बारे में जानकारी जुटाना भी आसान है इसलिए देश के हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के मामले में उनका कोटा बढ़ाया जाना चाहिए.
संविधान में नही प्रावधान
एसोसिएशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया गया कि वर्तमान में देश के हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए न्यायिक अधिकारियों का कोटा 33 प्रतिशत वही बार से चयन के लिए 65 प्रतिशत है. जबकि जबकि संविधान में न्यायिक सेवा या बार से हाईकोर्ट में नियुक्ति को लेकर किसी तरह के अनुपात या कोटा का संरक्षण नहीं करता है.
गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 217 (2) में देश के हाईकोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति का उल्लेख किया गया है. लेकिन इस अनुच्छेद में बार और न्यायिक सर्विस के कोटे का कोई प्रावधान नहीं किया गया है.
एसोसिएशन की ओर से अपने पक्ष में तर्क पेश करते हुए कहा गया कि संविधान के निर्माताओं ने न्यायिक संस्थाओं को संभालने वाले व्यक्तियों पर अधिक जोर और जिम्मेदारी देते हुए दोनों को समान रूप से व्यवहार किया है. यदि जिला न्यायपालिका से अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है, तो इससे हाईकोर्ट में मामलों के बेहतर निपटान के साथ-साथ बेहतर निर्णय भी होंगे.
आसानी से उपलब्ध है जानकारी
प्रार्थना पत्र में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया कि न्यायिक अधिकारियों के मामले में हर तरह की जानकारी प्रत्येक हाईकोर्ट में मौजूद होती है. चूंकि जिला न्यायपालिका हाईकोर्ट के अधीनस्थ है इसलिए न्यायिक सेवा के अधिकारियों का समय के साथ परीक्षण और पर्यवेक्षण बेहद आसान है. इसके साथ ही ऐसे उम्मीदवारों लेखन कौशल और अन्य साख के बारे में भी जानकारी आसानी से उपलब्ध होती है.
प्रार्थना पत्र के समर्थन में कहा गया कि बार के जरिए अधिवक्ताओं की नियुक्ति के मामले में उनके आचरण के परीक्षण और त्रुटि का प्रश्न संभव है. अधिवक्ता ने कहा कि इसके साथ ही न्यायिक सेवा के लोग वैसे भी लंबे समय से किसी भी राजनीतिक विचारधारा से दूर रहते है.
एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि देश के हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के मामले में यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किए जाए कि हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति में बार और न्यायिक सेवा का अनुपात समान रूप से 50—50 किया जाए. इसके साथ ही न्यायिक कोटे की रिक्तियों को शीघ्र भरा जाए.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के बाद Union Law Ministry और Delhi High Court को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है.