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5 राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, JUIH ने दायर की PIL

5 राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, JUIH ने दायर की PIL

Jamiat Ulama-i-Hind ने PIL दायर करते हुए दावा कियाा है इन राज्यों के अधिनियमों के प्रावधान अंतर-धार्मिक विवाह में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों को FIR दर्ज करने का अधिकार देते हैं, इसके माध्यम से धर्मांतरित करने वाले व्यक्तियों को परेशान करने के लिए एक नये उपकरण के तौर पर उपयोग किया जा रहा है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : January 6, 2023 6:24 AM IST

नई दिल्ली: देश के अग्रणी इस्लामी संगठनों में से एक जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भाजपा शासित राज्यों की ओर से लाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर याचिका में उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानूनों का इस्तेमाल अंतरजातीय जोड़ों को परेशान करने और उन्हें फंसाने के लिए करने का आरोप लगाया है.

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5 राज्यों के कानून को चुनौति

अधिवक्ता एजाज मकबूल के माध्यम से दायर की गई इस जनहित याचिका में उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021, उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2018, हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2019, मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम 2021 और गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 को चुनौती दी गयी है.

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याचिका में कहा गया है कि इन सभी पांच राज्यों में जारी किए गए अधिनियमों के प्रावधान एक व्यक्ति को अपने विश्वास का खुलासा करने के लिए मजबूर करते हैं और इस तरह किसी व्यक्ति की निजता पर आक्रमण करते हैं.

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याचिका में दावा किया गया है कि इन राज्यों के अधिनियमों के प्रावधान अंतर-धार्मिक विवाह में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों को FIR दर्ज करने का अधिकार देते हैं, इसके माध्यम से धर्मांतरित करने वाले व्यक्तियों को परेशान करने के लिए एक नये उपकरण के तौर पर उपयोग किया जा रहा है.

धर्म का खुलासा करने का दबाव

याचिका में कहा गया है कि अधिनियम के तहत व्यक्तियों के धर्म का खुलासा करने के लिए बाध्य किया जाता है, जबकि किसी के धर्म का किसी भी रूप में खुलासा करना उसके विश्वास को प्रकट करने के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि उक्त अधिकार में किसी के विश्वास को प्रकट नहीं करने का अधिकार शामिल है."

याचिका में दावा किया गया है कि इस तरह के विवाह के मामलों में असंतुष्ट परिवार के सदस्यों द्वारा अधिनियमों का दुरुपयोग किया जा रहा है. अपने दावे के पक्ष में याचिकाकर्ता ने एक मीडिया संस्थान द्वारा जारी किए आंकड़े का सहारा लिया हैं.

इन अधिनियम के अनुचित प्रभाव के वाक्यांश को लेकर भी कहा गया है कि वाक्यांश 'अनुचित प्रभाव' बहुत व्यापक और अस्पष्ट है और इसका उपयोग किसी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए किया जा सकता है जो परिवर्तित व्यक्ति की तुलना में मजबूत स्थिति में है.

प्रत्येक धर्मांतरण अवैध है

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से याचिका में कहा गया है कि आपराधिक मामलों में सबूत का बोझ अभियोजन पक्ष पर है, और यह धारणा है कि अपराध करने का आरोपी व्यक्ति दोषी साबित होने तक निर्दोष है.

लेकिन इन अधिनियमों में यह धारणा मजबूत की गई है कि प्रत्येक धर्मांतरण अवैध है. याचिका में हिमाचल प्रदेश अधिनियम की धारा 12, उत्तराखंड अधिनियम की धारा 13, उत्तर प्रदेश अधिनियम की धारा 12 और गुजरात अधिनियम की धारा 12 के प्रावधान यह साबित करने का भार डालते हैं कि धर्मांतरित व्यक्ति पर धर्मांतरण अवैध नहीं है.

बुधवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने देश के अलग अलग हाईकोर्ट में पेश की गई याचिकाओं को एक साथ सुनवाई करने पर विचार करने की बात कही है. सीजेआई की पीठ हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

गौरतलब है कि पांच राज्यों में लागू किए गए इन नए कानूनों को लेकर स्थानीय हाईकोर्ट में भी कई याचिकाएं दायर की जा चुकी है.