Same-sex marriage मामले में जमीयत उलमा ए हिंद पहुंचा Supreme Court, कहा-इस्लाम में मान्यता प्राप्त नहीं
नई दिल्ली:समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इंटरवीन बनने के लिए इंटरवीन एप्लीकेशन {Intervention Application} दायर करते हुए समलैंगिक विवाह का विरोध किया है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हस्तक्षेप याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में पक्षकार बनाने का अनुरोध किया है.
दायर की गई हस्तक्षेप याचिका में जमीयत की ओर से कहा गया कि समलैंगिक विवाह परिवार प्रणाली पर हमला करता है और यह पश्चिमी सभ्यता से आयात होने वाली व्यवस्था है जिसे इस्लाम में मान्यता प्राप्त नहीं है.
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थोपा नहीं जाना चाहिए
याचिका मेंं जमियत की ओर से कहा गया है कि प्रो-LGBTQIA+ आंदोलनों की जड़ें पश्चिमी, नास्तिक समाजों और मूल्य प्रणालियों की है.
याचिका में कहा गया है कि Same-sex marriage जैसी धारणाएं पश्चिमी संस्कृति से उत्पन्न होती हैं, जिनके पास कट्टरपंथी नास्तिक विश्वदृष्टि है और इसे भारत पर थोपा नहीं जाना चाहिए.
अपने तर्क के सहमत जमीयत ने याचिका में कहा है कि याचिकाकर्ता Same-sex marriage की अवधारणा पेश करके एक फ्री-फ्लोटिंग सिस्टम शुरू करने और विवाह जैसी स्थिर संस्था की अवधारणा को कमजोर करने की मांग कर रहे है.
इस्लाम में मान्यता प्राप्त नहीं
जमियत ने कहा कि Same-sex marriage परिवार प्रणाली पर हमला करता है ना कि इसके जरिए परिवार बनाया जाता है.
याचिका में कहा कि दुनिया के एक हिस्से में यह प्रथा कानूनी है, इस आधार पर Same-sex marriage को सही ठहराने के लिए संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत को लागू करना, दूसरे हिस्से की सामाजिक व्यवस्था के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है.
अधिवक्ता एमआर शमशाद के जरिए दायर की गई हस्तक्षेप याचिका में कहा गया है कि इस्लाम केवल जैविक पुरुषों और महिलाओं के बीच विवाह को मान्यता देता है.