Jamia violence case: तत्काल सुनवाई के लिए Delhi High Court की सहमति, 13 फरवरी को होगी सुनवाई
नई दिल्ली: 2019 के जामिया हिंसा मामले में छात्र नेता शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा सहित 11 लोगों को आरोपमुक्त करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने तत्काल सुनवाई की सहमति दे दी है.
चीफ जस्टिस सतीश चन्द्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने दिल्ली पुलिस की अेार से दायर याचिका को 13 फरवरी सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए है. शुक्रवार को दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की तत्काल सुनवाई के लिए याचिका को मेंशन किया.
एसजी ने किया मेंशन
दिल्ली पुलिस की ओर से एसजी ने पीठ से अनुरोध से तत्काल सुनवाई का अनुरोध करते हुए कहा कि जिला अदालत के 4 फरवरी के आदेश को चुनौति देते हुए 7 फरवरी को ही याचिका दायर कर दी गई है, लेकिन रजिस्ट्री ने याचिका में कुछ आपत्तियां उठाई हैं.
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सॉलिस्टर जनरल ने पीठ से अनुरोध किया कि याचिका की मेरिट को देखते हुए तत्काल सुनवाई की अनुमति दी जाए.जिसके बाद पीठ ने याचिका की खामिया को दूर करते हुए सोमवार को सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए है.
अदालत ने किया था आरोप मुक्त
गौरतलब है कि 4 फरवरी को दिल्ली की साकेत अदालत ने जामिया मिलिया इस्लामिया में दिसंबर 2019 में हुई हिंसा से जुड़े मामले में आरोपी शरजील इमाम, सफूरा जरगर और आसिफ इकबाल तन्हा सहित 11 आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया था. .
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरूल वर्मा ने इस मामले में दिल्ली पुलिस को केवल कल्पना के आधार पर चार्जशीट दायर करने पर फटकार लगाते हुए कहा था कि दिल्ली पुलिस का यह केस सबूतों के बिना दायर किया.
अदालत ने जिन आरोपियों को आरोपमुक्त किया उनमें शरजील इमाम, तन्हा और जरगर के अलावा, जिन अन्य लोगों को इस मामले से आरोप मुक्त किया है उनमें मोहम्मद अबुजर, उमैर अहमद, मोहम्मद शोएब, महमूद अनवर, मोहम्मद कासिम, मोहम्मद बिलाल नदीम, शाहजर रजा खान और चंदा यादव शामिल हैं.
टिप्पणियों से पुलिस को झटका
अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि इस मामले में ऐसा कोई चश्मदीद गवाह नहीं है जो पुलिस के इस कथन की पुष्टि कर सके कि आरोपी व्यक्ति किसी भी तरह से अपराध करने में शामिल थे.
अदालत ने अपने आदेश में टिप्पणीकरते हुए कहा था कि वह यह मानती है कि उस दिन भीड़ ने हिंसा करते हुए तबाही और व्यवधान पैदा किया, लेकिन पुलिस वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में विफल रही और इमाम, तन्हा, जरगर और अन्य को "बलि का बकरा" बनाया.
जज वर्मा ने अपने आदेश में कहा कि "चार्जशीट और तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट के अवलोकन से सामने आए तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि पुलिस अपराध करने वाले वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में असमर्थ थी, लेकिन निश्चित रूप से यहां लोगों को फंसाने में कामयाब रही.
जज अरूल वर्मा ने अपने आदेश में असहमति को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि असहमति को बढ़ावा देना चाहिए न कि दबाना चाहिए. लेकिन इसके साथ चेतावनी यह भी है कि असहमति बिल्कुल शांतिपूर्ण होनी चाहिए और इसे हिंसा में नहीं बदलना चाहिए."
ये है पूरा मामला
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और एनआरसी के विरोध में दिसंबर 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया और उसके आसपास हिंसा और विरोध प्रदर्शन के मामले में दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए 12 लोगों को आरोपी बनाया था.
दिल्ली पुलिस की एफआईआर में कथित रूप से दंगा करने और गैरकानूनी रूप से एकत्र होने का आरोप है, जिसमें आईपीसी की धारा 143, 147, 148, 149, 186, 353, 332, 333, 308, 427, 435, 323, 341, 120 बी और धारा 34 के तरह अपराध दर्ज किया गया.
इमाम, तनहा और सफूरा जरगर को स्पेशल सेल के मामले में आरोपी बनाया गया है, जिसमें 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश का आरोप लगाया गया था.
पुलिस ने 21 अप्रैल, 2020 को मोहम्मद इलियास के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी, इसके बाद 11 अन्य आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दूसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई थी, उन्हें इस मामले में आरोप मुक्त कर दिया गया है।.
आरोप पर दलीलें जारी रहने के दौरान हाल ही में 1 फरवरी, 2023 को तीसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी दायर की गई थी.
इस पुरे मामले में दिल्ली पुलिस और अभियोजन पक्ष ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि गवाहों ने कुछ तस्वीरों के आधार पर आरोपी व्यक्तियों की पहचान की है.
चार्जशीट पर भी टिप्पणी
दिल्ली पुलिस की इस मामले में तीसरी चार्जशीट को लेकर भी अदालत ने विशेष टिप्पणी की थी. अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस नए सबूत पेश करने में विफल रही और इसके बजाय एक और सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर करके "आगे की जांच" की आड़ में पुराने तथ्य पेश करने की कोशिश की.
अदालत ने कहा था कि "वर्तमान मामले में पुलिस के लिए एक चार्जशीट और एक नहीं बल्कि तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करना सबसे असामान्य रहा है, जिसमें वास्तव में कुछ भी नया नहीं है."
अदालत ने कहा कि यह चार्जशीट दाखिल करना बंद होना चाहिए, अन्यथा यह आड़ महज अभियोजन से परे कुछ दर्शाता है और आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों को रौंदने का प्रयास होगा.