'इस्लाम हरा आतंक', 'ईसाई सफेद आतंक' कहने वाली अधिवक्ता को जज बनाने की सिफारिश, विरोध हुआ शुरू
नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा हाल ही में केंद्र को भेजी गयी सिफारिश में एक महिला अधिवक्ता की सिफारिश को लेकर विरोध शुरू हो गया है.
17 जनवरी 2023 को ही सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्ति के लिए लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी सहित पांच वकीलों के नामों की सिफारिश की थी.
कॉलेजियम द्वारा गौरी के नाम की सिफारिश किए जाने के साथ ही सोशल मीडिया पर उनके नाम की चर्चा होने लगी. उनके भाजपा से जुड़े होने के दावे के साथ पूर्व में दिए उनके द्वारा दिए गए साक्षात्कार के कई वीडियो भी वायरल होने लगे.
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सोशल मीडिया पर अधिवक्ता गौरी के भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव होने का भी दावा किया जा रहा है.
वरिष्ठ अधिवक्ताओं का विरोध
कॉलेजियम की सिफारिश के करीब दो सप्ताह बाद म्रदास हाईकोर्ट के वकीलों के एक समूह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर कॉलेजियम द्वारा की गई इस सिफारिश का विरोध किया है.
हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं के समूह ने वरिष्ठ अधिवक्ता गौरी द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिए गए विवादित बयानों का उल्लेख करते हुए उनके चयन से न्यायपालिका को गंभीर नुकसान होने की बात कही है.
राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र में वकील और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी द्वारा मुस्लिम और ईसाई वर्ग के खिलाफ की गई टिप्पणियों के उदाहरण दिए गए है.
1 फरवरी को भेजे गए पत्र में मद्रास हाईकोर्ट बार के 22 वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अधिवक्ता गौरी द्वारा यूट्यूब चैनल को दिए गए इंटरव्यू का भी हवाला दिया है.
परेशान करने वाले तथ्य
अधिवक्ताओं ने अपनी शिकायत में कहा है कि गौरी के बयान स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए उचित नहीं है और उनसे जुड़े कई "परेशान करने वाले तथ्य" हैं.
लिखे गए पत्र में वरिष्ठ अधिवक्ता आर वैगई, डी नागसैला और टी मोहन, अधिवक्ता एनजीआर प्रसाद, वी सुरेश सहित वरिष्ठ वकीलों ने मुस्लिमों और ईसाइयों के खिलाफ गौरी द्वारा किए गए समस्याग्रस्त सार्वजनिक बयानों और अभद्र भाषा को आधार बनाते हुए कहा है कि उनके बयान हैट स्पीच को बढावा देते है और सुप्रीम कोर्ट हाल ही में इन हैट स्पीच मामले पर अपनी राय जाहिर कर चुका है.
राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र में अधिवक्ता गौरी के दो साक्षात्कारों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, जो कि उनके द्वारा YouTube चैनल को दिए गए थे.
क्या कहा था गौरी ने
पत्र के अनुसार अपने पहले साक्षात्कार में जो कि 27 फरवरी 2018 से पहले लिया गया था. इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति के लिए अधिक खतरा? जिहाद या ईसाई मिशनरी? विषय पर अधिवक्ता गौरी ने अपने साक्षात्कार में कहा कि "इस्लाम समूहों की तुलना में ईसाई समूह अधिक खतरनाक हैं. लव जिहाद के संदर्भ में दोनों समान रूप से खतरनाक हैं.
इसी साक्षात्कार में उन्होने कहा कि जैसा की इस्लाम हरा आतंक है, ईसाई सफेद आतंक है.
वही एक दूसरे 5 जून, 2018 को दिए गए इंटरव्यू में गौरी कहती है कि "भरतनाट्यम को ईसाई गीतों के लिए नृत्य नहीं किया जाना चाहिए"
इसके साथ ही अधिवक्ताओं के समूह ने गौरी द्वारा लिखे गए और वर्ष 2012 में आरएसएस के प्रकाशन ऑर्गनाइजर में प्रकाशित एक लेख का भी हवाला दिया है.
राष्ट्रपति को लिखे पत्र में बार सदस्यों ने कहा है कि अधिवक्ता गौरी के साक्षात्कार अभद्र भाषा के समान हैं, और सांप्रदायिक कलह और हिंसा को भड़काने और फैलने की संभावना रखते है.
लौटाई जाए सिफारिश
समूह ने सवाल करते हुए पूछा है कि क्या ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति से मुस्लिम या ईसाई समुदाय से संबंधित कोई भी वादी अदालत में न्याय पाने की उम्मीद कर सकती है.
पत्र में बार सदस्यों ने राष्ट्रपति से अधिवक्ता गौरी की सिफारिश को वापस लौटाने का अनुरोध किया है. साथ ही यह स्पष्टीकरण भी मांगा है कि कैसे एक व्यक्ति जिसने देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण दिए है उसकी सिफारिश उच्च संवैधानिक संस्थान हाईकोर्ट में जज बनाने के लिए की गई.