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SC verdicts for women in 2022: जाने सुप्रीम कोर्ट द्वारा महिलाओं के हक में लिए गए छ: फैसले

पहली बार देश में पुरुष प्रधानता को महिला प्रधानता के साथ खड़े करने के लिए ना केवल समानता का अधिकार दिया गया, बल्कि देश की सेना में शामिल होने के लिए महिलाओं के लिए भी एक नया रास्ता बनाया.

Written By Nizam Kantaliya | Published : December 23, 2022 7:42 AM IST

देश की न्यायपालिका ने वर्ष 2022 को एक तरह से महिलाओं के अधिकारों का वर्ष बना दिया. देश की सर्वोच्च अदालत ने महिलाओं के हक में कुछ ऐसे फैसले दिए है जिनका आजादी के बाद से ही इंतजार किया जा रहा था. पहली बार देश में पुरुष प्रधानता को महिला प्रधानता के साथ खड़े करने के लिए ना केवल समानता का अधिकार दिया गया, बल्कि देश की सेना में शामिल होने के लिए महिलाओं के लिए भी एक नया रास्ता बनाया. यू तो देश की सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2022 में  महिलाओं को लेकर कई बड़े फैसले सुनाए है. लेकिन हम आपको बता रहे है सुप्रीम कोर्ट के 2022 में लिए गए उन 6 ऐतिहासिक फैसलो के बारे में, जिनका प्रभाव सदियों तक बना रहेगा.

सेना में स्थायी कमीशन

भारतीय सेना में बेटियों को उनका हक और समान अवसर दिलाने के लिए देश की अदालत ने 2022 में ऐतिहासिक फैसला दिया. सेना में महिला अधिकारियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में ये साफ कर दिया है कि उनके साथ कोई भी भेदभाव नजरअंदाज नहीं किया जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में SSC यानी शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत नियुक्त सभी महिला अफसरों के लिए स्थायी कमीशन के लिए कहा था. पहले स्थायी कमीशन के लिए केवल पुरुष अधिकारी ही आवेदन कर सकते थे. स्थायी कमिशन का सेना में ये अर्थ है कि इस कमीशन के तहत कोई अफसर रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में काम कर सकता है और इसके बाद वह पेंशन का भी हकदार होगा. बता दें कि इस आदेश से पहले सेना और नेवी में महिलाएं पहले शॉर्ट सर्विस कमीशन के अंतर्गत नियुक्त होकर ही काम करती थीं, लेकिन इस फैसले के बाद उन्हें पुरुष अफसरों की तरह स्थायी कमीशन के लिए आवेदन का मौका मिल सकेगा.

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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी 2022 में सेना में महिला अधिकारियों के साथ भेदभाव का मामला सामने आया है.सेना की 34 महिला अधिकारियों ने प्रमोशन में देरी का आरोप लगाया था. तब कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था. चीफ जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा था, 'हम चाहते हैं कि सभी महिलाओं को वरिष्ठता दी जाय. कोर्ट ने सेना की ओर से पेश हुए वकील आर बालासुब्रमण्यम से पूछा था कि आप पुरुष अधिकारियों के लिए चयन बोर्ड का गठन कर रहे हैं. जबकि महिलाओं के लिए नहीं. आखिर ऐसा क्यों. पीठ ने कहा, हमें लगता है कि आप (सेना) इन महिला अधिकारियों के प्रति निष्पक्ष नहीं रहे हैं. बेहतर होगा कि आप अपने घर को दुरुस्त'' करें और हमें बताएं कि आप उनके लिए क्या कर रहे हैं.''

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अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार

साल 2022 में भारत की सर्वोच्च अदालत ने महिलाओं के हक में कई ऐतिहासिक फैसले लिए. कोर्ट ने कहा कि अविवाहित महिलाओं को भी गर्भपात का अधिकार है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति उसे उसके अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकार से नहीं रोक सकती है. कोर्ट ने कहा कि भारत में गर्भपात कानून के तहत विवाहित और अविवाहित महिलाओं में भेद नहीं किया गया है. गर्भपात के उद्देश्य में रेप और वैवाहिक रेप भी शामिल है.

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सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच गर्भपात के अधिकार को मिटाते हुए अपने फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सिंगल और अविवाहित महिलाओं के पास मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट (MTP) के तहत 24 हफ्ते के भीतर गर्भपात कराने का अधिकार है. साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर सिर्फ विवाहित महिलाओं को अनुमति होगी और अविवाहित महिलाओं को नहीं होगी, तो ये अनुच्छेद 14 में दिए गए स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा.

दहेज हत्या पर कोर्ट सख्त

दहेज प्रताड़ना और दहेज हत्या के अपराध पर सख्त रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि समाज में कड़ा संदेश जाना चाहिए कि जो भी दहेज हत्या का अपराध करेगा उससे सख्ती से निपटा जाएगा. कोर्ट ने कहा कि कानून निर्माताओं ने दहेज जैसी बुराई से कड़ाई से निपटने के लिए कानून में आईपीसी की धारा 304 बी (दहेज हत्या) जोड़ी थी. दहेज हत्या के मामले में विधायिका की इस मंशा का ध्यान रखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि धारा 304 बी दहेज हत्या का अपराध समाज के खिलाफ अपराध है और इस अपराध का समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड में देवघर के दहेज हत्या के एक मामले में दोषी सास अझोला देवी व ससुर गोविंद महतो की याचिका खारिज करते हुए दहेज हत्या के मामले कई दिशा निर्देश भी जारी किए.

बच्चे का सरनेम का अधिकार

जुलाई 2022 में सर्वोच्च अदालत ने महिलाओं के हक में फैसला सुनाते हुए बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार मां को दिया. यानी बच्चे का सरनेम क्या होगा ये फैसला पूरी तरह से मां का होगा. पुनर्विवाह करने वाली महिलाओं के लिए यह महत्वपूर्ण फैसला है, जिसमें कहा गया कि बच्चे का एकमात्र प्राकृतिक अभिभावक मां होती हैं. इसलिए बच्चे का उपनाम तय करने का अधिकार भी मां का होना चाहिए.

लिव-इन रिलेशन पर बड़ा फैसला

वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने  लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में भी बड़ा फैसला देते हुए कहा कि "अगर पुरुष और महिला सालों तक पति-पत्नी की तरह साथ रहते हैं, तो मान लिया जाता है कि दोनों में शादी हुई होगी और इस आधार पर उनके बच्चों का पैतृक संपत्ति पर भी हक रहेगा". ये पूरा मामला संपत्ति विवाद को लेकर था. 2009 में केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में पैतृक संपत्ति पर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे पुरुष-महिला के बेटे को पैतृक संपत्ति पर अधिकार देने से मना कर दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया और जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा, 'अगर एक पुरुष और महिला लंबे समय तक पति-पत्नी के रूप में साथ रह रहे हों, तो माना जा सकता है  कि दोनों में शादी हुई थी. ऐसा अनुमान एविडेंस एक्ट की धारा 114 के तहत लगाया जा सकता है.' हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि इस अनुमान का खंडन भी किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए साबित करना होगा कि दोनों भले ही लंबे समय तक साथ रहे थे, लेकिन शादी नहीं हुई थी.

विवाहित महिला के साथ दुष्कर्म भी 'मैरिटल रेप'

आजादी के बाद से देश में विवाहित महिलाओं के साथ उनकी बिना इजाजत किए जाने वाले संबंधों को लेकर कोई कानून नही था.विवाहित महिला के साथ पति द्वारा किया जाने वाला रैप की कोई श्रेणी नहीं थी. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप को लेकर वर्ष 2022 में महत्वपूर्ण फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति द्वारा महिलाओं के साथ जबरदस्ती या यौन हमले को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 'मैरिटल रेप' को 3B में शामिल किया जाएगा.