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क़ानूनी मान्यता के अभाव में लिव-इन रिलेशनशिप में मात्र समझौते से साथ रहने वाले तलाक नही ले सकते: केरल हाईकोर्ट

मामले की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा कि अगर कोई दो कपल आपसी समझौते के आधार पर साथ रहते हैं तो इसका अर्थ ये नहीं है की वो विवाह अधिनियम के दायरे में आ जाएगें. ऐसे जोड़ों का साथ रहना विवाह नहीं है और न ही ऐसे में वो तलाक़ की मांग भी नहीं कर सकते है.

Written By My Lord Team | Published : June 14, 2023 3:54 PM IST

नई दिल्ली: लिवइन रिलेशनशिप में रहने वालों को लेकर केरल हाई कोर्ट की एक अहम् टिप्पड़ी आई है. लिवइन रेलशनशिप (Live-in Relationship) में रहने के बाद तलाक़ की मांग कर रहे दो कपल्स के मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि, इन संबंधों को शादी के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है. कोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में कोई ऐसा कानून नहीं है जो लिवइन को शादी के रूप में मान्यता प्रदान करता हो.

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा कि अगर कोई दो कपल आपसी समझौते के आधार पर साथ रहते हैं तो इसका अर्थ ये नहीं है कि वो विवाह अधिनियम के दायरे में आ जाएगें. ऐसे जोड़ों का साथ रहना विवाह नहीं है और न ही ऐसे में वो तलाक़ की मांग भी नहीं कर सकते है.

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खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए आगे कहा कि, सामाजिक संस्था के रुप में विवाह सामाजिक और नैतिक आदर्शों को दर्शाता है, जहां इनका पालन भी किया जाता है। कानून में भी इसे पुष्ट किया गया है और मान्यता दी गई है।

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वर्तमान में कानूनी रूप से लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह का दर्जा नहीं दिया गया है। कानून केवल तभी मान्यता देता है जब विवाह को व्यक्तिगत कानून के अनुसार या विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के अनुसार संपन्न किया जाता है।

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केरल के रहने वाले कपल, जिसमें एक हिन्दू है और एक ईसाई दोनों साल 2006 से लिवइन में रह रहे थे. दोनों का एक बच्चा भी है. लेकिन कुछ समय पहले दोनों ने अलग होने का फैसला लिया.

दोनों फैमिली कोर्ट पहुंचे लेकिन वहां से दोनों को निराशा ही हाथ लगी. इसके बाद कपल तलाक़ की अर्जी लेकर केरल हाई कोर्ट पहुंचे. इसी मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये टिप्पड़ी की है. कोर्ट ने ये भी कहा कि तलाक कानूनी शादी को तोड़ने का एक जरिया भर है। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों को इस तरह की कोई मान्यता नहीं दी जा सकती।