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2023 में Supreme Court सुनाएगा इन मामलों पर फैसला

नए साल में सुप्रीम कोर्ट कई बड़े फैसले देने जा रहा है. इनमें 2016 में हुई नोटबंदी की वैधता, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए निष्पक्ष कमिटी बनाने की मांग, तमिलनाडु में सांडों को काबू करने खेल- जल्लीकट्टू और जम्मू-कश्मीर में सीटों के परिसीमन जैसे कई मुद्दे शामिल हैं.

Written By Nizam Kantaliya | Published : January 1, 2023 7:20 AM IST

नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत Supreme Court में नए साल की शुरुआत नोटबंदी जैसे अहम फैसले के साथ होगी.

नोटबंदी के साथ ही नए वर्ष में सुप्रीम कोर्ट दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच विवाद मामले, शिवसेना को लेकर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट का मामला, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाएं और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) आदि के खिलाफ 200 से अधिक याचिकाओं पर फैसले सुनाएगा.

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1 नोटबंदी demonetization सही या गलत

सुप्रीम कोर्ट में नए वर्ष की शुरुआत 2 जनवरी से होगी और इसी दिन सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ मोदी सरकार द्वारा 8 नवंबर 2016 को की गयी नोटबंदी पर अपना फैसला सुनाएगी.

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जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2016 में हुई नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर 7 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा है.संविधान पीठ का ये फैसला केंद्र की मोदी सरकार पर बहुत ज्यादा असर डालने वाला होगा.

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नतीजा पक्ष में रहा तो कोई बात नहीं लेकिन अगर ये मन माफिक नहीं हुआ तो दूसरे फैसलों को लेकर भी आवाजें उठनी शुरू हो जाएंगी. कहा तो ये भी जा रहा है कि केन्द्र और कॉलेजियम के बीच हाल ही में शुरू हुआ टकराव इस केस के चलते हुआ है.

2 जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की बयानबाजी

सुप्रीम कोर्ट साल 2023 में जनप्रतिनिधियों और नेताओं की बयानबाजी को लेकर अहम फैसला सुनाएगा. जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की बयानबाजी रोकने के लिए क्या दिशानिर्देश तैयार किए जाएंगे? इसपर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

साल 2016 में बुलंदशहर दुष्कर्म मामले में आजम खान की बयानबाजी के बाद यह मामला शुरू हुआ था.

जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता में संविधान पीठ ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रखा है.

नए साल की शुरुआत के साथ ही सुप्रीम कोर्ट इस अहम मामले पर भी अपना फैसला सुनाएगा.

3 प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991

द प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 की धारा 3 कहती है कि धार्मिक स्थलों को उसी रूप में संरक्षित किया जाएगा, जिसमें वह 15 अगस्त 1947 को था.

इस एक्ट के अनुसार मौजूदा धार्मिक स्थल को अगर इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके अभी के वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता.

इस एक्ट से सिर्फ राम मंदिर विवाद मामले को अलग रखा गया था. क्योंकि अयोध्या का मामला उस समय हाई कोर्ट में था इसलिए उसे इस क़ानून से अलग रखा गया था.

अयोध्या के बाद देश में मथुरा, काशी सहित कई धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट नए साल में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पर अपना फैसला सुनाएगा.

4 जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों का परिसीमन

देश की सर्वोच्च अदालत नए साल में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी अपना फैसला सुनाएगा. श्रीनगर के हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू ने याचिका दायर कर परिसीमन में सही प्रक्रिया का पालन नहीं करने के आधार पर चुनौती दी.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के बाद कोर्ट 1 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. आने वाले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट इस अहम मामले पर अपना फैसला सुनाएगा.

5 चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति

सुप्रीम कोर्ट मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता को लेकर दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाएगा.

जस्टिस के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 4 दिन तक चली सुनवाई के बाद 24 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखा था.

दायर की गई याचिकाओंं में अनुरोध किया गया है कि चुनाव आयुक्त का चयन चीफ जस्टिस, पीएम और नेता विपक्ष की कमेटी को करना चाहिए.

6 जल्लीकट्टू पर रोक या अनुमति

नए साल में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सुपूर्ण दक्षिण भारत के राज्यों की नजर है. वैसे तो जल्लीकट्ट केवल तमिलनाडु राज्य का खेल है लेकिन इसके साथ ही कर्नाटक के कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को अनुमति पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा.

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि इन खेलों में पशुओं के साथ क्रूरता होती है. पशु क्रूरता निरोधक कानून एक केंद्रीय कानून है. लेकिन राज्यों ने संस्कृति के संरक्षण के नाम पर अपने यहां कानून में कुछ बदलाव किए हैं. उन्हें निरस्त किया जाना चाहिए.

तमिलनाडु सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 29 के तहत संस्कृति के पालन को मौलिक अधिकार का दर्जा बताते हुए इसे जारी रखने का अनुरोध किया है. नए साल में सुप्रीम कोर्ट इस अहम मामले पर फैसला सुनाएगा.

7  सीआरपीसी की धारा 319 की व्याख्या

नए साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट को आपराधिक मुकदमों पर भी एक अहम आदेश देना है. इस फैसले में निचली अदालत के जज को मुकदमे में नए आरोपी जोड़ने का अधिकार देने वाली सीआरपीसी की धारा 319 की व्याख्या की जानी है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को यह तय करना है कि क्या आपराधिक मुकदमे में आरोपियों को दोषी ठहराए जाने के बाद भी किसी नए व्यक्ति को आरोपी के तौर पर समन भेजा जा सकता है?