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पीसी एक्ट के तहत चार्जशीट में नहीं है अपराध, तो सीबीआई नहीं कर सकती जांच-Meghalaya High Court

हाईकोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलो में जब पीसी अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराधों को चार्जशीट से हटा दिया जाता है तो सीबीआई को अपना अभियोजन जारी रखने के लिए राज्य सरकार की विशिष्ट सहमति की आवश्यकता होती है, क्योंकि सीबीआई का अधिकार क्षेत्र ऐसी चार्जशीट दाखिल करने की तारीख से ही समाप्त हो जाएगा.

Written By Nizam Kantaliya | Published : February 14, 2023 10:56 AM IST

नई दिल्ली: भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में सीबीआई की जांच को लेकर मेघालय हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि भ्रष्टाचार के मामलो में दायर की गई र्जशीट में अगर पीसी एक्ट के तहत अपराध शामिल नहीं है तो ऐसे मामलों की जांच सीबीआई के अधिकार क्षेत्र में नही है.

मेघालय हाईकोर्ट के जज Justice W. Diengdoh ने याचिकाकर्ता टी.पथव की ओर से सीबीआई व अन्य के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सीबीआई को आईपीसी के तहत अपराधों की जांच करने का अधिकार है, बशर्ते कि वे भ्रष्टाचार अधिनियम की रोकथाम के तहत अपराधों के साथ जुड़े हुए हो.

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सीबीआई का अधिकार क्षेत्र

हाईकोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलो में जब पीसी अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराधों को चार्जशीट से हटा दिया जाता है तो सीबीआई को अपना अभियोजन जारी रखने के लिए राज्य सरकार की विशिष्ट सहमति की आवश्यकता होती है, क्योंकि सीबीआई का अधिकार क्षेत्र ऐसी चार्जशीट दाखिल करने की तारीख से ही समाप्त हो जाएगा.

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याचिकाकर्ता ने उसके खिलाफ सीबीआई की शिलांग शाखा की ओर से दायर एफआईआर को रदृ करने की गुहार लगाई थी. याचिका में कहा गया कि सीबीआई की ओर से  मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, शिलांग के समक्ष चार्जशीट दायर की जा रही हैं. याचिका सीबीआई द्वारा चार्जशीट दायर करने का विरोध करते हुए बताया गया कि उसके खिलाफ मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं बनता है, बल्कि इसके बजाय केवल IPC के तहत अपराध बनते है.

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याचिका में कहा गया कि चूंकि इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं है ऐसे में सीबीआई का कार्यक्षेत्र नही होने के चलते सीबीआई चार्जशीट दायर नहीं कर सकती.

क्या है मामला

याचिकाकर्ता एक निजी सुरक्षा कंपनी का चेयरमैन था जो विभिन्न संस्थानों को मैन पावर की सप्लाई करता था.एक निविदा के जरिए उसे North Eastern Indira Gandhi Regional Institute of Health and Medical Sciences संस्थान में मैन पावर सप्लाई का कार्य मिला था. इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा उपलब्ध कराए गए मैनपॉवर को दिए जाने वाले EPF and ESI के मामलो में गबन किया.

शिकायत पर सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने अनुबंध की शर्तो को पूरी तरह से जानते हुए भी विभिन्न श्रेणियों में लगाई गई  कर्मचारियों का पंजीकरण नहीं कराया गया और ईपीएफ व ईएसआई ने टेंडर के नियम व शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन किया गया. इसके जरिए भारत सरकार को करीब 46.79 लाख का नुकसान हुआ.

मामले की जांच होने पर जांच अधिकारी ने तब मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, शिलॉन्ग की अदालत के समक्ष सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अंतिम रिपोर्ट दायर की, जिसमें अपर्याप्त साक्ष्य के आधार पर क्रमशः दो लोक सेवकों की भूमिका को दोषमुक्त किया गया, लेकिन याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 420, 406 के तहत कथित रूप से धोखाधड़ी और बेईमानी से 20,93,305/- रुपये की राशि का गलत उपयोग करने का आरोप तय किया गया.

इस आधार पर याचिकाकर्ता ने दावा किया कि चूंकि इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं है ऐसे में सीबीआई का कार्यक्षेत्र नही होने के चलते सीबीआई चार्जशीट दायर नहीं कर सकती.

सीबीआई का तर्क

याचिका का विरोध करते हुए सीबीआई ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 के तहत IPC के तहत अपराधों की जांच करने का अधिकार दिया गया, जिसमें क्रमशः आईपीसी की धारा 420 और 406 के तहत अपराध शामिल हैं.  उक्त डीएसपीई अधिनियम की धारा 3 के तहत केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने की ताकत है.

क्या कहा हाईकोर्ट ने

हाईकोर्ट ने सीबीआई की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 पूरी तरह से स्पष्ट है कि यदि सीबीआई को किसी भी राज्य में काम करना है तो ऐसी राज्य सरकार की अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के प्रयोग के लिए सहमति आवश्यक है.

पीठ ने अपने फैसले में कहा सीबीआई पीसी अधिनियम के तहत अपराधों से जुड़े मामलों की ही जांच कर सकती है. हालांकि, जब आईपीसी के तहत अपराधों की बात आती है, जो आमतौर पर राज्य द्वारा उठाए जाते हैं और जांच की जाती है, अगर किसी विशेष मामले में पीसी अधिनियम के साथ-साथ आईपीसी के तहत अपराधों के प्रावधान शामिल हैं, तब ही सीबीआई ऐसे मामलों की जांच करने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकती है.