अगर बच्चे करते हैं अपराध तो क्या है IPC में विशेष प्रावधान
बच्चों को पवित्र और नेक दिल माना जाता है इसलिए बच्चों को मन का सच्चा कहा जाता है, लेकिन जब बच्चे ही अपराध में शामिल हो जाए तो उन्हे एक अपराधी नहीं माना जाता, बल्कि हमारे देश का कानून उनमें सुधार की उम्मीद देखता है. इसलिए बच्चों को समाज की मुख्यधारा में वापस जोड़ने की कवायद की जाती है.
बच्चो के लिए आईपीसी की धारा 82 और 83 में विशेष प्रावधान बनाए गए हैं और इसके अलावा किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) बनाया गया है, जो उनकी सुरक्षा करता है और उन्हें कारावास से बचाता है.
बाल अपराध क्या है?
जब कोई बच्चा कोई ऐसा अपराध करता है जो किसी कानून के विपरीत होता है, तो उसे बाल अपराध कहा जाता है. कानून के अनुसार बच्चे वे हैं जो 18 वर्ष से कम आयु के हैं लेकिन भारतीय दंड संहिता के अनुसार, यह केवल बारह वर्ष से कम आयु के बच्चों की सुरक्षा करता है. जबकि, किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार, जो बच्चे अपराध करते हैं, उन्हें "कानून के साथ संघर्ष में बच्चे" (children in conflict with law) कहा जाता है.
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बच्चे जिनकी उम्र सात साल से कम है
IPC की धारा 82 में कहा गया है कि सात साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया गया कोई भी काम कभी भी अपराध नहीं माना जाएगा, चाहे वह कितना भी वीभत्स, जघन्य या गंभीर क्यों न हो. यह खंड सात वर्ष से कम आयु के बच्चों को उन सभी दायित्वों से बचाता है जिनका एक वयस्क को सामना करना पड़ता है. इस प्रावधान के पीछे मूल अवधारणा यह है कि बच्चों का बुरा इरादा नहीं हो सकता है । एक आपराधिक कानून में सजा साबित करने के लिए बहुत ही बुनियादी अवधारणा यह है कि व्यक्ति का आपराधिक इरादा था लेकिन जहां सात साल से कम उम्र का बच्चा अपराध करता है तो उन मामलों में माना जाता है कि उसका आपराधिक इरादा नहीं है क्योंकि वह एक आपराधिक और दुर्भावनापूर्ण इरादा बनाने के लिए बहुत छोटा है और इसलिए बच्चा किसी भी प्रकार के दंड या जुर्माने का भागी नहीं होगा.
7 से 12 साल के बच्चे
IPC की धारा 83 के अनुसार सात से बारह वर्ष की आयु के बीच का कोई भी बच्चा जो अपराध करता है वह इसके लिए दोषी नहीं होगा और धारा 82 की तरह ही इस धारा में भी यही उपधारणा प्रयोग की जाती है कि एक बच्चा अपराध नहीं कर सकता और उसके पास एक आपराधिक इरादा नहीं हो सकता. हालांकि यह खंड इसमें एक पहलू और भी जोड़ता है, जो एक बच्चे को सजा के लिए उत्तरदायी बना सकता है.
इस धारा के तहत बच्चे की मानसिक क्षमता की जांच करना भी जरूरी है कि क्या वह इस तरह की हरकत करने में सक्षम है.बच्चों की परिपक्वता का विश्लेषण किया जाएगा कि वह कितना परिपक्व है और क्या वह अच्छे और बुरे के पहलू को समझता है और क्या उसे पता था की जो उसने किया है वह गलत है. जबकि यदि यह पाया जाता है कि वे अपनी उम्र की तुलना में परिपक्व हैं, तो उन पर किशोर न्याय अधिनियम में निर्धारित नियमों के अनुसार मुकदमा चलाया जाएगा.
बच्चे जो बारह साल से बड़े हो
बारह वर्ष से अधिक और 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर किशोर न्याय अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act, 2015) के तहत मुकदमा चलाया जाता है. इस अधिनियम के तहत बच्चों पर उनके द्वारा किए गए अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाता है, लेकिन यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह अधिनियम बच्चो के अनुकूल बनाया गया है, जिसमें उनकी सुरक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है और सामान्य अदालतों की तुलना में कम साल की जेल या जुर्माना लगाया गया है. इस अधिनियम के तहत बच्चों के हित में निर्णय लिया जाता है.
जहां वह बच्चों को घर जाने या जुर्माना भरने या समूह परामर्श या सामुदायिक सेवा में भाग लेने या बच्चों को तीन साल तक के समय तक विशेष ग्रहों (special homes) में रहने के लिए निर्देशित करने का निर्णय ले सकते है, जहां उन्हें फिर से सुधरने के साथ-साथ, शिक्षा भी दी जाएगी और हर बुनियादी जरूरतों और सुविधाओं का आराम होगा.
निर्भया कांड के बाद बदलाव
निर्भया कांड के बाद किशोरों को लेकर IPC की धारा 181 और 182 में बदलाव किए गए. इनमें रेप से जुड़े नियमों को सख्त किया गया. IPC की धारा 181 और 182 में बदलाव के अलावा 22 दिसंबर 2015 को राज्यसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हो गया था.
नए कानून के अनुसार प्रावधान किया गया कि 16 साल या उससे अधिक उम्र के किशोर को जघन्य अपराध करने पर एक वयस्क मानकर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए और उस पर मुकदमा चलाया जाए.