दिल्ली उच्च न्यायालय ने शहर के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के लिए जारी किया ये आदेश
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने दिल्ली के जिला न्यायालयों (District Courts) के लिए एक नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत अब डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स में हाइब्रिड हियरिंग (Hybrid Hearings) की अनुमति दे दी गई है। हाइब्रिड हियरिंग क्या है और इसका प्रोसेस क्या रहेगा, दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बारे में क्या कहा है, जानिए यहां.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक कार्यालय आदेश (Office Order) जारी किया है जिसके तहत दिल्ली के सभी जिला न्यायालय (Delhi District Courts) अब अपने समक्ष मामलों की हाइब्रिड हियरिंग करेंगे, उन्हें वादकारी (Litigant) और वकील (Counsel), दोनों को हाइब्रिड हियरिंग की अनुमति देनी होगी।
क्या होती है हाइब्रिड हियरिंग?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हाइब्रिड हियरिंग के तहत अब वादकारी और वकील दो तरह से अदालती कार्यवाही पूरी कर सकेंगे। अगर वो चाहें तो वो खुद कोर्ट आकर कार्यवाही कर सकते हैं और अगर वो कोर्ट नहीं आ सकते, तो वो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ऐसा कर सकेंगे; उन्हें इसके लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।
Also Read
- पब्लिक प्लेस से अवैध धार्मिक संरचनाओं को हटाने का मामला, Delhi HC ने सरकार से मांगी कार्रवाई की पूरी जानकारी
- CLAT 2025 के रिजल्ट संबंधी सभी याचिकाओं को Delhi HC में ट्रांसफर करने का निर्देश, SC का अन्य उच्च न्यायालयों से अनुरोध
- जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना: Delhi HC ने सरकार को कोचिंग फीस का भुगतान करने का आदेश दिया
दिल्ली के जिला कोर्ट में ज्यादातर कार्यवाही फिज़िकल ही थी, वादकारी और वकीलों को कोर्ट में आकर कार्यवाही को पूरा करना होता था। अब तक, वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए अपियर होने के लिए वादकारी/वकील को लिखित में या फिर ईमेल के जरिए, कार्यवाही के कम से कम एक दिन पहले, एक फॉर्मल रिक्वेस्ट देनी पड़ती थी। अब इसकी कोई जरूरत नहीं होगी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कही ये बात
बता दें कि दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यालय आदेश में यह भी कहा गया है कि हाइब्रिड मोड में सुनवाई करवाने वाले न्यायिक अधिकारी (Judicial Officer) को इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि इस सुनवाई में मामले से जुड़े वकील और पार्टी के अलावा कोई और डिजिटली इसका हिस्सा न बन सके।
इसमें शादी, यौन अपराध, महिलाओं के खिलाफ लिंग भेद, 'लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012' (Protection of Children from Sexual Offices (POCSO) Act, 2012) और 'किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015' (Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015) से जुड़े मामले शामिल होंगे।
कोई भी सुनवाई, जिसमें इन-कैमरा कार्यवाही शामिल हो, जहां क्रॉस-इग्ज़ैमिनेशन या रिकॉर्डिंग हो, या फिर जो 'गर्भ का चिकित्सकीय समापन आदिनीयम, 1971' (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) के मामले की हो, उसमें भी कोई थर्ड पार्टी एंटर नहीं कर सकती है।