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हेड कांस्टेबल संज्ञेय अपराधों की जांच कर सकते हैं या नहीं, जानें राजस्थान हाईकोर्ट ने क्या आदेश दिया

क्या हेड कांस्टेबल को संज्ञेय अपराधों की जांच करने का अधिकार है या नहीं? सिंगल-जज की बेंच ने फैसला दिया कि हेड कांस्टेबल को संज्ञेय अपराधों की जांच करने का अधिकार नहीं हैं. साथ ही इस मामले को राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने पेश करने के निर्देश भी दिए हैं.

Written By My Lord Team | Updated : March 19, 2024 2:47 PM IST

Head Constable Roles: राजस्थान हाईकोर्ट में मुख्य हवलदारों की जिम्मेदारी तय करने को लेकर सुनवाई हुई. सुनवाई का विषय था क्या हेड कांस्टेबल को संज्ञेय अपराधों की जांच करने का अधिकार है या नहीं? सिंगल-जज बेंच ने फैसला लिखा. हेड कांस्टेबल को संज्ञेय अपराधों की जांच करने का अधिकार नहीं है. राजस्थान पुलिस नियम और सीआरपीसी की धारा 157, एएसआई रैंक से व उसके ऊपर रैंक के पुलिस अधिकारीयों को संज्ञेय अपराध की जांच करने की इजाजत देती है. हालांकि, सिंगल-जज बेंच ने इस विषय को मुख्य न्यायाधीश के सामने पेश करने के निर्देश भी दिए हैं. आइये जानते हैं कि मुख्य हवलदारों की भूमिका तय करने से जुड़े मामले की सुनवाई में क्या हुआ.....

मुख्य हवलदार नहीं कर सकते संज्ञेय अपराधों की जांच

जस्टिस अनिल कुमार उपमन ने मुख्य हवलदारों की भूमिका पर फैसला दिया है. जस्टिस ने कहा है कि एएसआई व उससे ऊपर रैंक के पुलिस अधिकारियों को इस मामले की जांच करने का ही अधिकार है. राजस्थान राज्य पुलिस नियम और सीआरपीसी में भी यहीं बातें कही गई हैं.

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चर्चा का विषय यह है. राजस्थान हाईकोर्ट ने साल 1998 में दिए अपने फैसले के विरूद्ध जाकर ऐसा किया है. पुराने फैसले में हाईकोर्ट ने एएसआई के नीचे रैंक के पुलिस अधिकारियों को संज्ञेय अपराधों के जांच की इजाजत दिया था.

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हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश करेंगे सुनवाई

फैसला देने के बाद जज ने इस विषय को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने लाने के निर्देश भी दिए है. सिंगल-जज बेंच ने मुख्य न्यायाधीश के सामने रखे जाने सवाल को लेकर भी निर्देश दिया है.

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बेंच ने कहा,

"क्या पुलिस उप-निरीक्षक (एएसआई) से नीचे के रैंक का अधिकारी संज्ञेय अपराध के मामले की जांच कर सकता है? यदि वह ऐसे मामलों की जांच करने के लिए अधिकृत नहीं है, तो उसके द्वारा की गई जांच के क्या परिणाम होंगे?"

जांच के परिणाम को नियमों के आधार पर चुनौती दी जा सकती है? उस जांच की विश्वसनीयता क्या होगी? जैसे मुद्दे कोर्ट के सामने आ सकते हैं.

बेंच ने आगे कहा,

"जैसा कि सीआरपीसी की धारा 157 और राजस्थान पुलिस नियम, 1965 के 6.1 से स्पष्ट है कि 'किसी भी पुलिस अधिकारी' को घटनास्थल जांच के लिए, अपराधी को पकड़ने और यह पता लगाने के लिए नियुक्त किया जा सकता है कि कोई संज्ञेय अपराध हुआ है या नहीं. यदि जांच के दौरान यह पाया जाता है कि संज्ञेय अपराध हुआ है, तो जांच का संचालन पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी या सहायक उप-निरीक्षक द्वारा किया जाएगा."

क्या है मामला?

कोर्ट के सामने उक्त विषय तब आया, जब एक FIR को रद्द करने की मांग की गई. FIR आईपीसी की धारा 341 (गलत तरीके से रोकने), धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना) और धारा 506 (अपराध के लिए उकसाना) के मामले से जुड़ा है जिसकी जांच हेड कांस्टेबल द्वारा की गई थी. इस पर आपत्ति जताते हुए कहा गया कि जांच उपयुक्त अधिकारी द्वारा नहीं की गई है. सिंगल-जज बेंच ने अपना फैसला सुनाने के बाद अपने रजिस्ट्रार को आदेश दिया है कि वे इस मामले को मुख्य न्यायाधीश की बेंच के सामने ले जाएं.

अब इस मामले को राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाना है.