झूठे सबूत या झूठा प्रमाणपत्र देने पर होती है 7 साल तक की जेल, जानिए IPC की धारा 196
झूठे सबूत या झूठा प्रमाणपत्र देने पर होती है 7 साल तक की जेल, जानिए IPC की धारा 196
क्या आपको पता है हमारे देश के कानून में इस तरह के अपराध को गंभीर अपराध माना गया है, क्योकि झूठे सबूत या झूठे प्रमाण पत्र या बयान किसी के जीवन को भी प्रभावित कर सकते है.
IPC में झूठे सबूत या गवाही देने वाले व्यक्ति के साथ-साथ उन झूठे साक्ष्यों को इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को भी सख्त सज़ा का प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं, झूठे सबूत, प्रमाणपत्र या घोषणा को सच्चा बताकर इस्तेमाल करने का क्या मतलब है और न्यायालय में ऐसे सबूत जमा करने पर क्या हो सकती है भारतीय दंड सहिंता (IPC) के तहत कार्रवाई.
Written By My Lord Team | Published : January 5, 2023 11:45 AM IST
नई दिल्ली: हमारे देश के कानून में गवाह और सबूत को अपराध साबित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. कई बार अपराधी अपने अपराध को छुपाने के लिए तो कई बार किसी निर्दोष को फंसाने के लिए भी झूठे सबूत और झूठे प्रमाणपत्र भी अदालतों में पेश किए जाते है. क्या आपको पता है हमारे देश के कानून में इस तरह के अपराध को गंभीर अपराध माना गया है, क्योकि झूठे सबूत या झूठे प्रमाण पत्र या बयान किसी के जीवन को भी प्रभावित कर सकते है.
IPC में झूठे सबूत या गवाही देने वाले व्यक्ति के साथ-साथ उन झूठे साक्ष्यों को इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को भी सख्त सज़ा का प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं, झूठे सबूत, प्रमाणपत्र या घोषणा को सच्चा बताकर इस्तेमाल करने का क्या मतलब है और न्यायालय में ऐसे सबूत जमा करने पर क्या हो सकती है भारतीय दंड सहिंता (IPC) के तहत कार्रवाई.
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सबूत का उपयोग करना भी अपराध
IPC की धारा 196 उस अपराध के बारे में बात करती है जहां कोई व्यक्ति किसी भी सबूत का उपयोग करता है या उपयोग करने की कोशिश करता है, यह जानते हुए कि वह साक्ष्य झूठा है या सच नहीं है. ऐसे व्यक्ति को इस धारा के तहत, उसी तरह से दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने ही झूठा साक्ष्य दिया हो या गढ़ा हो.
भारतीय दंड संहिता की धारा 197 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति एक प्रमाणपत्र जारी करता है या उस पर हस्ताक्षर करता है, जिसे साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जाना है या अदालत द्वारा किसी भी रूप में इस्तेमाल किया जाना है और वह जानता है कि यह प्रमाणपत्र किसी भौतिक तथ्य (Material Point) पर झूठा है तो ऐसे व्यक्ति को उसी तरीके से दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने ही झूठा सबूत दिया हो.
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झूठे प्रमाणपत्र का उपयोग
भारतीय दंड संहिता की धारा 198 का संबंध धारा 197 से है. इस धारा के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति किसी प्रमाणपत्र को यह जानते हुए कि यह किसी भौतिक तथ्य के संबंध में गलत/झूठा है सही साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करता है तो ऐसे व्यक्ति को उसी तरह दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने ही गलत साक्ष्य दिया हो।
झूठा बयान या घोषणा
IPC की धारा 199 धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति एक घोषणा करता है या उस पर हस्ताक्षर करता है, यह जानते हुए कि वह घोषणा किसी भौतिक तथ्य के संबंध में झूठी है या सच नहीं है और वह घोषणा किसी न्यायालय या लोक सेवक या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल की जानी है, तो उस व्यक्ति को उसी तरीके से दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने ही झूठा सबूत दिया हो.
झूठा बयान या घोषणा का उपयोग
IPC की धारा 200 के अनुसार झूठे बयान या घोषणा का उपयोग करने वाला व्यक्ति भी उसी तरह के अपराध का साझीदार है जिस तरह से उस व्यक्ति को IPC की धारा 199 के तहत दोषी माना जाता है. यानी झूठे बयान या घोषणा को ऐसी घोषणा के सच के रूप में इस्तेमाल करना भी अपराध है.
ये है सजा का प्रावधान
IPC की धारा 196, 197, 198, 199 और 200 में किए गए अपराध के लिए आरोपी को उसी तरीके से सज़ा दी जाती है. जिस तरह से गलत साक्ष्य देने या गढ़ने पर अपराधी को IPC की धारा 193 के तहत दंडित किया जाता है.
IPC की धारा 193 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding) में झूठे साक्ष्य देने या गढ़ने का दोषी पाया जाता है तो उसे अधिकतम 7 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
किसी अन्य तरह की कार्यवाही में दोषी पाए जाने पर उसे अधिकतम 3 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
निष्कर्ष
आम तौर पर, ऐसे साक्ष्य देने का मुख्य उद्देश्य दोषसिद्धि प्राप्त करना या निर्दोष व्यक्ति को दोषी ठहराना होता है। ऐसे मामलों में झूठे साक्ष्य देने वाले व्यक्ति के साथ-साथ झूठे साक्ष्य को सच के रूप में इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति भी बराबर का दोषी होता है। इसलिए न्याय व्यवस्था में नागरिकों का विश्वास बनाए रखने के लिए इन व्यक्तियों को भी दंडित किए जाने के प्रावधान बनाए गए हैं।