21 नाबालिगों से दुष्कर्म के आरोपी की जमानत को Gauhati High Court ने किया रद्द, कहा यह लापरवाही है
गुवाहाटी: पांच महीने से जमानत पर रिहा चल रहे 21 नाबालिग छात्र-छात्राओं के बलात्कार के आरोपी पर गुवाहाटी हाई कोर्ट शिकंजा कसने को तैयार है. कोर्ट ने शुक्रवार को मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए जमानत रद्द करने की कार्यवाही शुरू कर दी है. आईए डालते हैं पूरे मामले पर एक नजर.
खबर एजेंसी से मिली जानकारी के मुताबिक अदालत ने यह कदम तब उठाया जब आरोपी की जमानत से जुड़ी खबर को दो समाचार पत्रों, "पूर्वांचल प्रहरी" और "द अरुणाचल टाइम्स" में प्रकाशित किया गया.
15 छात्राएं और 12 छात्र पीड़ित
जानकारी के लिए आपको बता दें कि आरोपी का नाम युमकेन बागरा है. वह अरुणाचल प्रदेश के शि योमी जिले के मोनिगोंग के कारो गांव में सरकारी आवासीय विद्यालय के छात्रावास का वार्डन था. आरोपी वार्डन पर 2019 से 2022 के बीच 15 लड़कियों और 6 लड़कों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप है. सभी पीड़ितों की उम्र 15 साल से कम बताई जा रही है.
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आरोपी को जमानत पर मिली रिहाई पर गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संदीप मेहता ने आश्चर्य व्यक्त किया. खबरों के अनुसार आरोपी पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) के तहत आरोप लगाया गया है. इस केस की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश ने 23 फरवरी को आरोपी को जमानत दे दी थी.
आरोपी की रिहाई, पीड़ितों के लिए खतरा
मुख्य न्यायाधीश मेहता ने अपने आदेश में कहा कि "जिस तरह से बिना कोई ठोस कारण बताए मुख्य आरोपी को जमानत दिया गया. इससे जाहिर होता है कि इतने गंभीर और संवेदनशील प्रकृति के मामले को पूरी तरह से लापरवाही से निपटाया गया है. यौन उत्पीड़न के भयानक कृत्य के आरोपी की रिहाई से पीड़ितों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है. जो अदालत के लिए चिंता का विषय बन गया है. इसके साथ ही उन्होंने ट्रायल अदालतों, विशेष रूप से POCSO अपराधों से निपटने वाली अदालतों को संवेदनशील बनाने की दिशा पर काम करने के लिए सुझाव दिया.
दिया जाएगा प्रशिक्षण
मुख्य न्यायाधीश मेहता ने असम न्यायिक अकादमी के निदेशक को असम, नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में POCSO मामलों से निपटने वाले सभी न्यायिक अधिकारियों के लिए एक प्रशिक्षण संवेदीकरण कार्यक्रम शुरू करने का आदेश दिया.
मुख्य न्यायाधीश ने महाधिवक्ता को निर्देश दिया कि वह राज्य भर में यौन उत्पीड़न के नाबालिग पीड़ितों को सुरक्षा देने के लिए अरुणाचल प्रदेश राज्य द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में अदालत को सूचित करें.
इस मामले में सह-आरोपी डेनियल पर्टिन के फरार रहने के कारण केस की सुनवाई रुक जाने के बाद आरोपी को जमानत दे दी गई थी. हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि छात्रावास वार्डन के मुकदमे को सह-अभियुक्तों के मिलने का इंतजार किए बिना, उनके मुकदमों को अलग करके जारी रखा जा सकता था.
जमानत के नियम
मुख्य न्यायाधीश के अनुसार, चूंकि इस केस में आईपीसी की धारा 376एबी भी लागू होता है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 439(1ए) के आधार पर जमानत के लिए आवेदन की सुनवाई के समय मुखबिर या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करना अनिवार्य है.
उच्च न्यायालय ने फटकार लगाते हुए कहा कि विशेष अदालत ने खुद कहा था कि पीड़ितों के बयानों ये यह पता चलता है कि इस गंभीर अपराध को अंजाम दिया गया था. इसके बावजूद आरोपी को जमानत दी गई. साथ ही जमानत देने के लिए विशेष अदालत द्वारा जो कारण बताए गए वह भी बहुत कमजोर है.
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि वार्डन होने के नाते आरोपी को छात्रावास में रहने वाले बच्चों की सुरक्षा का कर्तव्य सौंपा गया था, लेकिन ऐसा लग रहा कि आरोपी बागरा ने बच्चों की रक्षा के बजाए "राक्षसी तरीके से काम किया" और इस घृणित कृत को अंजाम देने से पहले बच्चों को अश्लील सामग्री से अवगत भी कराया.
गवाहों की सुरक्षा
इस बीच न्यायालय ने आदेश दिया कि गवाह संरक्षण योजना के तहत सभी पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि पीड़ितों के परिवार के सदस्यों को जमानत रद्द करने की कार्यवाही के बारे में सूचित किया जाए, ताकि यदि वे चाहें तो अदालत के समक्ष अपनी बात रख सकें. हाई कोर्ट ने इस मामले पर आरोपी और अरुणाचल प्रदेश सरकार से प्रतिक्रिया मांगी और मामले की अगली सुनवाई 27 जुलाई को तय की है.