Supreme Court के पूर्व जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त
नई दिल्ली: राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस नजीर हाल ही में 4 जनवरी 2023 को अपने पद से सेवानिवृत हुए थे.
जस्टिस एस अब्दुल नजीर देश के लिए बेहद महत्वूपूर्ण और ऐतिहासिक अयोध्या बाबरी केस का फैसला देने वाली पीठ का भी हिस्सा थे.
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सुप्रीम कोर्ट में 6 साल रहे जज
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता क्रम में तीसरे वरिष्ठ जज के रूप में जस्टिस एस अब्दुल नजीर करीब 6 साल के कार्यकाल के बाद 4 जनवरी को सेवानिवृत हुए थे. नए साल में सेवानिवृत्ति से पूर्व उनके पास केवल 3 दिन का कार्यकाल था जिसमें उन्होने नोटबंदी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे के साथ ही तीन अहम मामलों पर अपना फैसला सुनाया था
देश में धार्मिक मामलो पर सुप्रीम कोर्ट के चर्चित फैसलों में उनकी मौजूदगी रही है. वो चाहे अयोध्या से जुड़ा मामला हो या फिर तीन तलाक से जुड़ा मामला.
अयोध्या का ऐतिहासिक फैसला
जस्टिस एस अब्दुल देश के सबसे ज्यादा बहुचर्चित रहे अयोध्या केस में फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच में एकमात्र मुस्लिम जज के रूप में मौजूद थे.
9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद मामले में पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उन्होने अपनी राय दी थी. जस्टिस नजीर अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षों के तर्कों से सहमत नहीं थे और विवादित 2.77 एकड़ भूमि के अधिकार पर सर्वसम्मत फैसले का हिस्सा बने.
अयोध्या के फैसले के बाद सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए केन्द्र सरकार ने जस्टिस एस अब्दुल नजीर और उनके परिवार को जेड कैटेगरी की सुरक्षा देने का फैसला किया था.
तीन तलाक और निजता का अधिकार
जस्टिस नजीर तीन तलाक’ मामले में फैसला सुनाने वाली पांच सदस्यीय पीठ का भी हिस्सा थे, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 3:2 से फैसला सुनाते हुए मुस्लिमों में फौरी तीन तलाक’ की 1,400 साल पुरानी प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक ठहराया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करते हुए ऐतिहासिक फैसला दिया था. जस्टिस नजीर सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की उस बेंच का भी हिस्सा थे जिसने ये फैसला दिया था.
20 वर्ष की वकालत के बाद जज
5 जनवरी 1958 को कर्नाटक स्थित छोटे से गाँव बेलुवइ में जन्मे जस्टिस अब्दुल नजीर ने श्री धर्मस्थल मंजूनाथेश्वर लॉ कॉलेज, मैंगलोर से कानून की डिग्री हासिल की. डिग्री के बाद 1983 में एक वकील के रूप रजिस्टर्ड हुए और कर्नाटक हाईकोर्ट में ही प्रैक्टिस करने लगें.
कर्नाटक हाईकोर्ट में 20 वर्ष की वकालात के बाद उन्हे 2003 में एडिशनल जज नियुक्त किया गया. करीब एक वर्ष बाद ही उन्हे सितंबर 2004 में कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थायी जज के रूप में नियुक्ति दी गयी.
सुप्रीम कोर्ट आने वाले तीसरे जज
फरवरी 2017 में उन्हे हाईकोर्ट जज से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया. वे देश की सर्वोच्च अदालत में नियुक्त होने वाले तीसरे ऐसे जज थे जिन्हे हाईकोर्ट से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया था. जस्टिस नजीर की नियुक्ति के जरिए सुप्रीम कोर्ट में सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के उचित प्रतिनिधित्व को बनाए रखा गया.
जस्टिस नज़ीर की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में ऐसे समय में कि गयी थी जब देश की सर्वोच्च अदालत में एक भी मुस्लिम जज नही होने को लेकर आलोचना चरम पर थी.
जस्टिस नजीर आगामी आज अपने पद से सेवानिवृत होने जा रहे है. सेवानिवृत होने से पहले जस्टिस नजीर द्वारा इन महत्वपूर्ण मामलों पर फैसला सुनाया गया.
नोटबंदी के फैसलो को ठहराया था सही
सुप्रीम कोर्ट ने 8 नवंबर 2016 में भारत सरकार द्वारा की गयी नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन किया था. जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता में 5 सदस्य संविधान पीठ ने विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ के मामले में सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा.
7 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक नोटबंदी (Demonetisation) के सरकार के 2016 के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड को पेश करने का निर्देश देते हुए फैसला सुरक्षित रखा है.
शीतकालीन अवकाश के बाद 2 जनवरी को इस मामले पर 4:1 से फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि नोटबंदी सही फैसला था.
नोटबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर अनेक याचिकाओं में सरकार के फैसले की संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए और साथ ही लोगों को हुई दिक्कतों के सन्दर्भ में भी प्रश्न उठाए गए थे. जस्टिस नजीर ने इस मामले में सहमति व्यक्त की थी
जनप्रतिनिधियों के भाषणों पर प्रतिबंध
जस्टिस नजीर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान पीठ ने बुलंदशहर दुष्कर्म पीड़िता के पिता द्वारा दायर याचिका पर भी अपना फैसला सुनाया था
इस मामले उनकी पीठ ने स्पष्ट किया कि मंत्रियों, विधायकों और अन्य सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा दिए गए बयानों और भाषणों पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) दिए गए प्रतिबंधों से अधिक प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते.
जस्टिस नजीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सुनवाई के बाद 15 नवंबर 2022 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस पीठ में जस्टिस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी टी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना शामिल थे. जस्टिस बी वी नागरत्ना ने इस मामले में अपनी अलग राय जाहित की थी