Extra Marital Affair को 'लिव इन' बताना निंदनीय', मद्रास HC ने 'पार्टनर की संपत्ति' पर व्यक्ति के दावे को किया खारिज
Live In Relationship: आज कल की जीवन पद्धति में लिव इन रिलेशनशिप में रहने का प्रचलन सामान्य है. कानूनन तौर पर Live In Relatioship कब वैध साबित होंगे. मद्रास हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप की वैधता पर अहम टिप्पणी की है. मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि अगर दोनों पार्टनर में एक भी, शादीशुदा है, तो लिव इन रिलेशनशिप को वैध नहीं माना जाएगा.साथ ही लिव इन पार्टनर दूसरे की संपत्ति पर अपना दावा पेश नहीं कर सकते है.
विवाहेतर संबंध को 'लिव इन' बताना निंदनीय: HC
मद्रास हाईकोर्ट में, जस्टिस आरएमटी टीका रमण (Justice RMT Teeka Raman) बेंच ने लिव रिलेशनशिप रह रहे पार्टनर की संपत्ति पर हक की मांग वाली याचिका को सुना. बेंच ने एक्सट्रा मैरिटल अफेयर अफेयर (विवाहेतर) संबंध को 'लिव इन'कहने पर आपत्ति जताई है.
बेंच ने कहा,
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दो अविवाहित, व्यस्क (adult) होने के नाते अपनी तरीके से जीवन शैली को चुनते हैं. ये मामला अलग है. वहीं, अगर एक्सट्रा मैरिटल अफेयर (विवाहेतर) मामले में लिप्त व्यस्क 'लिव इन' को संबंध के रूप में लेबल कर रहे हैं. ये गलत हैं. इसकी निंदा की जानी की जानी चाहिए."
बेंच ने आगे कहा,
“वर्तमान मामले में अपीलकर्ता यह जानते हुए कि वह एक विवाहित व्यक्ति है, जिसकी पत्नी और पाँच बच्चे हैं, अरुलमोझी मृतक) के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में आया. "
बेंच ने ये भी कहा,
"यहां कानून यह मानता है कि वे वैध विवाह के परिणामस्वरूप साथ-साथ रह रहे हैं, यह लागू नहीं होगा."
अदालत ने एक्सट्रा मैरिटल अफेयर को लिव इन संबंध बताने को लेकर आपत्ति जताई. अदालत ने 'विवाहेतर संबंध को लिव इन कहने' से आपत्ति जताई है.
क्या है मामला?
पी जयचंद्रन ने मद्रास हाईकोर्ट ने याचिका दायर की. पी जयचंद्रन ने अपने पार्टनर अरूलमोझी के नाम ली गई संपत्ति पर अपने दावे को लेकर, ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. जयचंद्रन पहले से विवाहित थे. उनके पांच बच्चे थे. इसके बावजूद वे मार्गरेट अरुलमोझी के साथ विवाहेतर संबंध में रह रहे थे. इस दौरान दोनों ने अरुलमोझी के नाम से एक घर खरीदी. अरूलमोझी का निधन हो गया. उसके बाद जयचंद्रन ने घर को अपने नाम कराने की कोशिश की. संपत्ति पर अरूलमोझी के पिता ने भी दावा किया. ट्रायल कोर्ट ने पिता की दावे को मजबूत पाते हुए संपत्ति उसके नाम करने की इजाजत दी. पी जयचंद्रन ने ट्रायल कोर्ट के इसी फैसले को अदालत में चुनौती दी थी.
हालांकि, उपरोक्त टिप्पणी करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज कर दी.