EWS Reservation: दिल्ली हाईकोर्ट का स्कूलों को आदेश, 'पड़ोस' के मानदंड पर नहीं मना कर सकते हैं एडमिशन
नई दिल्ली: स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के बच्चों के लिए एडमिशन पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक आदेश दिया है। दिल्ली की अदालत ने विद्यालयों को कहा है कि वो 'पड़ोस' के मानदंड (Neighbourhood Criteria) के आधार पर एडमिशन नहीं मना कर सकते हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) की न्यायाधीश मिनी पुष्करणा (Justice Mini Pushkarna) ने यह कहा है कि अगर 'पड़ोस' के मानदंड को पूरा करने के चक्कर में स्कूलों में सीट्स खाली छोड़ी जा रही हैं, तो यह सही नहीं है. इस तरह, 'आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग' के बच्चों के आरक्षण का पूरा उद्देश्य बेकार हो जाएगा।
अदालत का यह कहना है कि अगर ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पीछे का सामाजिक उद्देश्य बहुत बड़ा है और महत्वपूर्ण भी है। ऐसे में, इस आरक्षण के तहत एडमिशन देते समय 'पड़ोस' के मानदंड का बहुत सख्ती से पालन करना जरूरी नहीं है।
Also Read
- अब 45 साल की उम्र तक शिक्षक बहाली परीक्षा में शामिल हो सकेंगे EWS कैंडिडेट, एमपी HC ने ऐज रिलैक्सेशन में 5 साल की छूट दी
- पब्लिक प्लेस से अवैध धार्मिक संरचनाओं को हटाने का मामला, Delhi HC ने सरकार से मांगी कार्रवाई की पूरी जानकारी
- CLAT 2025 के रिजल्ट संबंधी सभी याचिकाओं को Delhi HC में ट्रांसफर करने का निर्देश, SC का अन्य उच्च न्यायालयों से अनुरोध
इस याचिका के आधार पर अदालत ने सुनाया फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट में दो आवेदकों की याचिका आई थीं जिनमें यह बताया गया था कि उन आवेदकों को दिल्ली के प्रिंसिपल हैप्पी आवर्स स्कूलों (Delhi Principal Happy Hours Schools) में शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित किए गए लकी ड्रॉ के जरिए सीटें मिली थीं. उन्हें स्कूल में एडमिशन पहले इसलिए मना कर दिया या था क्योंकि वो स्कूल से करीब चार किलोमीटर दूर रहते थे, और इस तरह वे पड़ोस के मानदंड को पूरा नहीं कर रहे थे।
इस केस के बारे में सुनकर जस्टिस पुष्करणा ने न सिर्फ स्कूल की आपत्ति को खारिज किया बल्कि उन्हें यह आदेश दिया कि वो याचिकाकर्ताओं को ईडब्ल्यूएस श्रेणी (EWS Category) के अंतर्गत, पहली कक्षा में उन्हें एडमिशन दें।
अदालत ने स्पष्ट किया है कि ये आदेश इस बात को ध्यान में रखते हुए दिया गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को भी अच्छे विद्यालयों में शिक्षा के लिए बराबर के मौके मिलने का हक है।