सुनवाई के दौरान अधिवक्ता पर भड़के CJI DY Chandrachud, बोले- 'शराफत का फायदा मत उठाएं...'
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) में मुख्य न्यायाधीश वाली पीठ ने एक जनहित याचिका (PIL) को रद्द करने की बात कही लेकिन इसके बावजूद याचिकाकर्ता अदालत में बहस करते रहे; उन्होंने कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया कि उनके अड़ियल व्यवहार से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी भड़क गए और उन्हें चेतावनी दी।
यह जनहित याचिका केरल के जंगली हाथी 'अरिकोंबन' (Arikomban) की देखभाल को लेकर थी और इसकी सुनवाई सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), न्यायाधीश पी एस नरसिम्हा (Justice PS Narasimha) और न्यायाधीश मनोज मिश्रा (Justice Manoj Misra) की पीठ कर रही थी।
अदालत ने कही याचिका खारिज करने की बात
जैसा कि हमने आपको अभी बताया, यह जनहित याचिका 'अरिकोंबन' हाथियों की देखभाल हेतु दायर की गई थी। पीठ ने इस याचिका को लेकर यह कहा कि उनके पास इस तरह की कई याचिकाएं आ चुकी हैं और अब वो इस विषय पर कोई नई याचिका एंटरटेन नहीं करेंगे। सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वो केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) जाएं और इस विषय को वहां उठाएं।
Also Read
चौंकाने वाला था याचिकाकर्ता का व्यवहार!
याचिका को रद्द करने की बात अदालत ने कई बार कही लेकिन इसके बावजूद याचिकाकर्ता भिड़े रहे और उनका व्यवहार बहुत अनौपचारिक और गलत था। जब पहली बार सीजेआई ने याचिकाकर्ता से केरल उच्च न्यायालय जाने को कहा तो याचिकाकर्ता ने कहा कि वहां इस विषय से जुड़ा कोई भी मामला लंबित नहीं है। इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि फिर वो उच्च न्यायालय में एक नई जनहित याचिका दायर कर सकते हैं।
इसपर भी याचिकाकर्ता शांत नहीं हुए, उन्होंने कह दिया कि इस मामले को खारिज करना यह दिखाता है कि ये पीठ संविधान के अनुच्छेद 32 को लेकर क्या सोचती है।
याचिकाकर्ता पर भड़के CJI
अनुच्छेद 32 वाले स्टेटमेंट पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ याचिकाकर्ता पर भड़क उठे। उन्होंने अधिवक्ता को चेतावनी देते हुए कहा कि वो इस तरह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं कर सकते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा- 'हमारी शराफत का गलत फायदा न उठाएं, हम कठोर भी सकते हैं। अदालत में आप किस तरह के बयान देते हैं, इसका खास ख्याल रखें; आपको इसके लिए आसानी से माफी नहीं मिलेगी।'
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका को खारिज किया और जबकि पहले ऑर्डर में उन्होंने याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, फाइनल ऑर्डर में यह जुर्माना हटा दिया गया था।