जिला जज अपील के फैसलों में नही दे सकते एक लाइन का कारण- Bombay High Court
नई दिल्ली: Bombay High Court की औरंगाबाद पीठ ने जिला एवं सत्र अदालतों के समक्ष निचली अदालतों के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों को लेकर महत्वपूर्ण व्यवस्था को स्पष्ट किया है. जस्टिस एस जी मोहरे की पीठ ने कहा है कि निचली अदालतों के आदेशों के खिलाफ अपील में जिला जजों से सिंगल लाइन रीजनिंग की उम्मीद नहीं की जा सकती.
पीठ ने औरंगाबाद के Judicial Magistrate First Class की अदालत के फैसले को केवल एक लाइन में कारण बताते हुए रद्द करने के Additional Sessions Judge के फैसले के प्रति कड़ा ऐतराज जताया है. पीठ ने कहा कि जिला न्यायाधीशों जैसे वरिष्ठ जजों से एक लाइन के कारण की अपेक्षा नहीं की जाती है.
पीठ ने इस मामले में औरंगाबाद के Additional Sessions Judge द्वारा Judicial Magistrate First Class के आदेश के खिलाफ दिए आदेश को भी रद्द कर दिया है.
Also Read
- 'अप्रैल आखिर तक Bombay HC की नई इमारत के लिए पूरी जमीन सौंप दी जाएगी', महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया
- 11,000 करोड़ रुपये की Custom Duty की मांग के खिलाफ फॉक्सवैगन पहुंचा बॉम्बे हाई कोर्ट, अधिकारियों को गुमराह करने के भी आरोप
- Political Rally में शामिल 'शख्स' को ऐहतियाती हिरासत में रखने पर Bombay HC ने क्यों जताई नाराजगी?
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि "न्यायाधीश ने एक लाइन का कारण दर्ज किया है कि पत्नी के साथ हुई घरेलू हिंसा को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.
कानून के हिसाब से गलत
पीठ ने कहा जिला जज जैसे वरिष्ठ जज से इस तरह की सिंगल लाइन कारण की उम्मीद नहीं की जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने अपील में निर्णय लिखने के नियमों की अनदेखी की है.
पीठ ने कहा कि किसी भी अपीलीय अदालत को किसी भी मामले की सुनवाई करनी चाहिए जैसे कि यह एक परीक्षण है और अपना निर्णय देते समय रिकॉर्ड कारण बताया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि "अपील में फैसला लिखना फैसले को फिर से लिखना है अपीलीय अदालत को सबूतों की फिर से सराहना करनी होगी और इसके निष्कर्ष के लिए कारण बताना होगा.
अदालत ने कहा कि सबूतों, रिकॉर्ड में रखी गई सामग्री और उचित परिप्रेक्ष्य में सामने आए तथ्यों पर विचार किए बिना सिर्फ एक लाइन लिखना कानून के हिसाब से गलत है.
क्या है मामला
औरंगाबाद के एक पति और पत्नी के बीच विवाद के चलते पत्नी ने की ओर से पति के खिलाफ कई मामले दायर किए गए. पत्नी की ओर से दायर घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण (डीवी) अधिनियम के तहत एक पत्नी को गुजारा भत्ता देने को लेकर दायर वाद पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया थरा.
मजिस्ट्रेट के फैसले से असंतुष्ट पत्नी ने इस मामले में अपील करते हुए औरंगाबाद Additional Sessions Judge के समक्ष अपील दायर की.
अपील पर सुनवाई करते हुए Additional Sessions Judge पत्नी की अपील को स्वीकार करते हुए 3,000 रुपये प्रति माह और घर के रखरखाव की अनुमति दी प्रतिवादी/पत्नी को रु. 3,000/- प्रति माह का किराया देने का आदेश दिया.
पति ने Additional Sessions Judge के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर करते हुए कहा कि Additional Sessions Judge ने अपने फैसले में Judicial Magistrate First Class के फैसले को रद्द करने का कोई तार्किक कारण नही बताया गया है और केवल एक लाइन में ही फैसला दे दिया गया है.
हाईकोर्ट ने बहस सुनने के बाद Additional Sessions Judge औरंगाबाद के फैसले को रद्द करते हुए Judicial Magistrate First Class के आदेश को सही बताया.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा "इस अदालत का विचार है कि यह उचित आदेश है और सही निष्कर्षों के साथ है कि पत्नी घरेलू हिंसा को साबित करने में विफल रही। हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि सत्र न्यायाधीश ने रिकॉर्ड की सही ढंग से जांच नहीं की, ना ही सबूतों की सराहना करने के नियम पर विचार किया और यांत्रिक रूप से आदेश पारित किया.
पीठ ने Additional Sessions Judge के आदेश को अवैध, अनुचित और गलत बताया.