ठोस सबूत होने पर ही गलत निर्णय के लिए जज पर की जा सकती है अनुशासनात्मक कार्रवाई: Patna HC
नई दिल्ली: पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में स्पष्ट किया है कि किसी जज के खिलाफ अनुशासनात्म कार्रवाई तब ही कि जा सकती है, जब जज के खिलाफ लगे आरोपो या बाहरी बातों के "ठोस सबूत" हों.
जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस हरीश कुमार की पीठ ने आरोपी महिला न्यायिक अधिकारी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही है.
हाईकोर्ट ने महिला जज संगीता रानी को दी गयी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा को रद्द करते हुए हाईकोर्ट प्रशासन को तत्काल महिला जज की बहाली का आदेश दिया है.
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पीठ ने अपने आदेश में कहा कि "एक न्यायिक अधिकारी के खिलाफ एक गलत आदेश के लिए विभाग से अलग करना न्यायपालिका की किसी बिमारी, या किसी सरकारी विभाग की किसी समस्या का इलाज नहीं हो सकता। वास्तव में, लापरवाह कार्यवाही केवल न्यायपालिका के मनोबल को कम करती है.
इसके साथ ही पीठ ने प्रशासन के आदेश में संशोधन करते हुए महिला जज की तीन वेतन वृद्धियों को संचयी प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया है.
पीठ ने कहा कि हम इस विचार से सहमत नहीं हैं कि यदि गलत निर्णय/आदेश पारित किए जाते हैं तो कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, लेकिन इस तरह की कार्रवाई तभी शुरू की जानी चाहिए जब निश्चित और स्पष्ट सबूत हों कि गलत निर्णय/आदेश बाहरी कारणों या विचार से प्रभावित होकर पारित किया गया है और उन कारणों के कारण नहीं जो किसी मामले की फाइल में उपलब्ध हैं.
पीठ ने कहा कि हर गलत निर्णय/आदेश पर भ्रष्टाचार और भ्रष्ट आचरण के निष्कर्ष पर पहुंचना, उद्देश्य की पूर्ति करने वाला नहीं है.
क्या है मामला
पटना में उप-न्यायाधीश-सह-अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत होने के दौरान महिला ने एक आपराधिक मामले में एक आरोपी को बरी करने का फैसला दिया. आरोपी पर एक लाख रुपये का चेक बाउंस होने का आरोप था.
आरोपी को बरी करने के आदेश के खिलाफ शिकायतकर्ता ने महिला जज के खिलाफ एक शिकायत दी जिसके बाद, न्यायिक अधिकारी के खिलाफ एक अनुशासनात्मक जांच शुरू की गई.
अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने अधिकारी के आरोपों को सही पाया और उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा सुनाई.
पीठ ने महिला जज की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दिया गया निर्णय कुछ बुनियादी तथ्यों से अलग हो गयाा है. लेकिन पीठ ने न्यायिक अधिकारी के रूप में याचिकाकर्ता को संदेह का लाभ देने की इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि जज ने शायद जल्दबाजी में आदेश पारित किया हो.
पीठ ने स्पष्ट किया कि एक न्यायिक अधिकारी को न्यायिक कार्य करते समय ऐसी कई भूलों से बचना चाहिए, लेकिन सेवा में इतनी प्रारंभिक अवस्था में न्यायिक अधिकारी को लापरवाही के एक कार्य के लिए बर्खास्त करना अन्यायपूर्ण होगा.