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Delhi Riots Case: दंगे के 11 आरोपियों को Delhi Court ने दी राहत, सबूतों के अभाव में हुए बरी

कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले में 11 आरोपियों को बरी किया है.

Written By My Lord Team | Published : March 8, 2024 12:29 PM IST

Delhi Riots Case: दिल्ली दंगे के ग्यारह आरोपियों कड़कड़डूमा कोर्ट ने राहत दी है. कोर्ट ने आरोपियों को रिहा किया. इन ग्यारह आरोपियों को दंगा करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ सबूतों और संदेहों की कमी पाते हुए आरोपों से मुक्त कर दिया है. बता दें, कि साल 2022 में CAA के विरोध में  राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में दंगे हुए थे. ये मामला राज्य और अजमत अली एवं अन्य के बीच है.  [State v. Ajmat Ali & Ors.]

सबूतों के अभाव में मिली राहत

अपर सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचल ने इस मामले को सुना है. जज ने कोर्ट के समक्ष रखे गए तथ्यों और सबूतों को जांच करने के बाद आरोपियों को रिहा कर दिया. 

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कोर्ट ने कहा, 

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"असल में,  शिकायतों से संबंधित घटना में कोई विशेष सबूत नहीं है, जिन्हें इस मामले में जांच के दौरान जोड़ा गया था और जिन पर एक ही आरोप पत्र में मुकदमा चलाया जा रहा है. आरोपी सुलेमान और मोहम्मद फईम को कथित घटनाओं से नहीं जोड़ते हैं,''

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कुल तीन चार्जशीट हुई दायर

चार्जशीट के अनुसार, 23 फरवरी 2023 के दिन दयालपुर स्टेशन में एक फोन आया. फोन के दौरान शेरपुर चौक की किसी घटना होने की बात कहीं गई. सूचना पाते ही एसिस्टेंट सब इंस्पेक्टर हुकुम सिंह पुलिस बल घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल पर दो गुट आपस में भिड़ते दिखे. दोनो पक्ष CAA से जुड़े नारे लगा रहे थे, एक गुट पक्ष में तो दूसरा विरोध में. एएसआई ने थानाध्यक्ष को सूचित किया. इस दौरान हालात काफी गंभीर हो गए. दोनो पक्ष एक-दूसरे पर पत्थर चलाने लगे. इस दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्ति को काफी क्षति पहुंचाई गई. 

घटना में दो चार्जशीट फाइल की गई. पहला, 27 अप्रैल, 2020 में जिसमें 11 लोगों को आरोपी बनाया गया. इन पर आईपीसी तथा सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर रोक लगाने को लेकर (पीडीपीपी एक्ट) के तहत के अपराध करने का मुकदमा लगाया गया. दूसरी चार्जशीट फरवरी, 2022 में दायर हुई.  इसके बाद 14 दिसम्बर, 2023 को एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर हुआ. इस चार्जशीट में स्थानीय लोगों द्वारा शिकायत करने पर आरोप लगाया गया था. 

CrPC के सेक्शन 161 में बयान दर्ज

दो गवाह, दीपक और सचिन के बयान दर्ज किया गया. बयान में कहा गया कि CAA का विरोध कर रहे दंगाईयों ने जय श्री राम के नारे लगाते हुए एक दुकान को जला दिया गया.  

कोर्ट ने जताई आपत्ति

कोर्ट ने कहा. ऐसा नहीं हो सकता है. मुस्लिम समुदाय से आने वाले लोग जय श्री राम के नारे या किसी मुस्लिम व्यक्ति की पिटाई करें.

कोर्ट ने कहा,

"इसलिए, मोहम्मद मुमताज के सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान में किया गया उपरोक्त बातें चार्जशीट में कृत्रिम रूप से जोड़ा गया प्रतीत होता है, जहां तक ​​यह उसकी दुकान में प्रवेश करने वाली भीड़ की प्रकृति का वर्णन करने से संबंधित है, वे सीएए का विरोध कर रहे थे. इसलिए, इसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए."

कोर्ट ने सचिन और दीपक के बयान पर आपत्ति जताई. कोर्ट ने कहा कि उन्होंने घटनास्थल पर हुई घटना को सही तरीके से बयां नहीं किया है. 

"इन दोनों गवाहों के बयान न तो संभावित हैं और ना ही वास्तविक. यदि यहां सभी आरोपी  वास्तव में मोहम्मद मुमताज की दुकान पर हुई घटना में शामिल थे, तो मोहम्मद मुमताज भी उनकी पहचान सत्यापित कर सकता था. हालांकि, आईओ ने पीड़ित से गिरफ्तार किए गए आरोपियों से पहचान नहीं कराई है." 

कोर्ट ने कहा,

"यह IO की ओर से एक बड़ी चूक है, खासकर जब उसे पीड़ित के साथ हुई घटना के पीछे के सभी दोषियों का पता लगाना था."

कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के आधार पर, आरोपियों के खिलाफ कोई संदेह उत्पन्न नहीं होता है, जिससे उनकी संलिप्तता दिखे. अत: उन्हें आरोंपो से बड़ी किया जाता है. कोर्ट ने 11 आरोपियों को आरोंपो से मुक्त कर दिया.