दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिक विवाहों की मान्यता से संबंधित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित किया
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को विशेष विवाह अधिनियम (1954), हिंदू विवाह अधिनियम (1955) और विदेशी विवाह अधिनियम (1969) के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने की मांग करने वाली लगभग आठ याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी को विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता प्रदान करने के संबंध में दायर की गई सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने और विस्तृत निर्णय देने के उद्देश्य से, अपने पास स्थानांतरित करने का आदेश पारित किया था.
इसी आदेश का पालन करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने, स्वयं के समक्ष लंबित सभी ऐसी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट को संदर्भित किया है.
मुख्य तौर पर सभी याचिकाओं का एक तर्क है कि समलैंगिक विवाह को विवाह से संबंधित भारतीय कानूनों के तहत मान्यता ना देना संविधान के अनुच्छेद (Article) 14 के तहत समानता का अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. इसलिए वह चाहते हैं, न्यायालय अपने निर्णय के जरिए घोषणा करे कि LGBTQIA+ समुदाय के जोड़ों को विषमलैंगिक जोड़ों (Heterosexual Couples) के समान विवाह का अधिकार है.
Also Read
- बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन करने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट; RJD, TMC सहित इन लोगों ने दायर की याचिका, अगली सुनवाई 10 जुलाई को
- BCCI को नहीं, ललित मोदी को ही भरना पड़ेगा 10.65 करोड़ का जुर्माना, सुप्रीम कोर्ट ने HC के फैसले में दखल देने से किया इंकार
- अरूणाचल प्रदेश की ओर से भारत-चीन सीमा पर भूमि अधिग्रहण का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर देने के फैसले पर लगाई रोक, केन्द्र की याचिका पर जारी किया नोटिस
अगस्त 2017 में, के एस पुट्टुस्वामी बनाम भारत संघ के मामले में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था. इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा था कि यौन अभिविन्यास (Sexual Orientation) किसी भी व्यक्ति की पहचान का एक अनिवार्य घटक है और LGBTQIA+ समुदाय के व्यक्तियों के निजता के अधिकार का सम्मान किया जाना अनिवार्य है.
इस निर्णय ने समलैंगिक व्यक्तियों के बीच यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का मार्ग प्रशस्त किया था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ के मामले में 6 सितंबर 2018 को सर्वसम्मत निर्णय में कहा था कि निजी आवास या स्थल पर बालिग समलैंगिक व्यक्तियों या अलग-अलग लैंगिक पहचान रखने वाले बालिग व्यक्तियों के बीच सहमति से यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं आता है यानि इस तरह के यौन संबंध भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध नहीं हैं. उन्होंने पाया था कि इस तरह के यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखना समानता और सम्मान के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है.
LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक न्यायालयों द्वारा इतने सारे सकारात्मक कदम उठाए जाने के बावजूद, वे अभी भी समलैंगिक विवाहों को मान्यता न देने के कारण भेदभाव का सामना करते आ रहे हैं. इसी लिए देश के कई राज्यों के हाई कोर्ट के समक्ष समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के सन्दर्भ में याचिकाएं दाखिल की गई हैं. जिनको अब सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करना है ताकि एक आधिकारिक निर्णय पारित किया जा सके.