UP, Haryana और Punjab राज्य की सीमा बदलने की मांग Delhi High Court में, जानें कोर्ट ने सुनवाई के दौरान क्या कुछ कहा
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने यूपी, हरियाणा और पंजाब राज्य (UP, Punjab and Haryana) की सीमा बदलने (परिसीमन) की मांग से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने इस PIL को खारिज करते हुए कहा कि ये हमारा कार्य नही है. याचिका में हरियाणा (Haryana) की राजधानी को चंडीगढ़ से कुरूक्षेत्र करने की मांग भी है. ये जेपी सिंह vs भारत संघ & अन्य का मामला है. [JP Singh vs Union of India & Ors]
राज्य की सीमा से जुड़ा मामला Parliament
दिल्ली हाईकोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन (Acting Chief Justice Manmohan) और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा (Justice Manmeet Pritam Singh Arora) ने की डिवीजन बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने PIL को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये मामला हमारे कार्यक्षेत्र का हिस्सा नहीं है. इस समस्या का समाधान भारतीय संसद ही कर सकती है.
कोर्ट ने कहा,
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“अब तक जो कसर बाकी रह गया था, वो आज पूरा हो गया है. अब हमें भारत का नक्शा फिर से बनाना होगा. आप केवल उत्तर इंडिया का मामला ही सामने क्यों लाए, देश के अन्य राज्यों सीमा समस्या भी ले आते.”
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद -3 के अनुसार, देश की संसद ही राज्य की सीमा से जुड़ी मामलों पर सुनवाई कर सकती है.
एक्टिंग चीफ मनमोहन ने आगे कहा,
“हम संसद को इस मामले में कोई निर्देश नहीं दे सकते हैं …राज्य की सीमाओं का परिसीमन केवल केन्द्र ही कर सकती है. हम ये तय नहीं कर सकते कि इस मामले में कौन-सा हाईकोर्ट क्या कार्य करेगा.”
क्या है मामला?
जेपी सिंह नामक व्यक्ति की याचिका दायर की. याचिका में मांग किया कि पंजाब और हरियाणा के लिए कॉमन हाईकोर्ट को विभाजित किया जाना चाहिए और साथ ही जालंधर में पंजाब के लिए एक अलग हाईकोर्ट स्थापित करने के निर्देश देने की मांग की है. बता दें कि, हरियाणा और पंजाब की एक ही राजधानी है, चंडीगढ़. जिसे अलग करने की मांग अक्सर होती रहती है.
परिसीमन (Delimitation) क्या होता है?
देश में निर्वाचन या न्यायिक क्षेत्रों की सीमा को तय करना. हाल ही में भारतीय संसद में जम्मू-कश्मीर में हुई परिसीमन काफी चर्चा में रहा है. राज्य की सीमाओं को बदलने का मामला भी परिसीमन से जुड़ा है. और अधिकार संविधान के अनुच्छेद-3 के अनुसार भारतीय संसद को है. जिसके विषय पर जस्टिस ने याचिकाकर्ता को निर्देश भी दिया है.