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अदालत की अवमानना के मामले में Delhi High Court ने वकील कों 6 माह की सजा सुनाई

Justice MANMEET PRITAM SINGH ARORA ने मामले में अवमानना के आरोपी अधिवक्ता द्वारा बिना शर्त माफी को अस्वीकार करते हुए कहा कि अदालत प्रतिवादी द्वारा की गई बिना शर्त माफी से संतुष्ट नहीं है और इसे खारिज कर दिया गया है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : March 17, 2023 10:46 AM IST

नई दिल्ली: किराए पर लिए गए परिसर को खाली करने और बकाया किराए का भुगतान करने के अदालती आदेश की अवमानना (Contempt of Courts) करने के मामले में Delhi High Court ने एक अधिवक्ता को 6 माह जेल की सजा सुनाई है.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर वकील को जानबुझकर की गई गलती और अदालत के आदेश के उल्लंघन का परिणाम नहीं भुगतना पड़ता है, तो यह उसे भविष्य में कानून की प्रक्रिया का इसी तरह दुरुपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करेगा.

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बिना शर्त माफी अस्वीकार

जस्टिस MANMEET PRITAM SINGH ARORA ने मामले में अवमानना के आरोपी अधिवक्ता द्वारा बिना शर्त माफी को अस्वीकार करते हुए कहा कि अदालत प्रतिवादी द्वारा की गई बिना शर्त माफी से संतुष्ट नहीं है और इसे खारिज कर दिया गया है.

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हाईकोर्ट ने कहा कि अधिवक्ता एक लॉ ग्रेज्यूएट होने के साथ ही राज्य बार काउंसिल से रजिस्टर्ड है जिसे संभवतः कानून से अच्छी तरह से वाकिफ है. अदालत के आदेशों की बाध्यकारी प्रकृति के बारे में जागरूक होने के बावजूद कानूनी प्रक्रिया के लिए कोई सम्मान नहीं दिखाया है.

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कानून का दुरूपयोग

हाईकोर्ट ने कहा कि अधिवक्ता ने कानून के अपने ज्ञान का दुरूपयोग करते हुए भूमि मालिज की संपंति पर कब्जे का प्रयास किया है.

अदालत ने कहा कि इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि प्रतिवादी ने अपने शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने से मालिकों के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा की राहत की मांग करते हुए एक वादी के रूप में दीवानी मुकदमा दायर कर दिया.

अदालत ने कहा यह कानून प्रक्रिया का दुरूपयोग था जिससे वह मकान मालिक को ना केवल प्रतिमाह किराया देने से बच सके बल्कि मकान मालिक को अपनी ही संपत्ति के अपने आनंद में हस्तक्षेप करने से रोका जा सके.

हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि यह एक उचित मामला है जहां अदालत द्वारा दिखाई गई किसी भी उदारता को कमजोरी के रूप में गलत समझा जाएगा.

क्या है मामला

याचिकाकर्ता मकान मालिक की सपंति मुखर्जी नगर के Kingsway Camp में स्थित है. इस संपंति के एक परिसर को अवमाननाकर्ता अधिवक्ता ARVIND MALIK ने किराए पर लिया था.

कुछ समय बाद ही अधिवक्ता ने उक्त परिसर का किराया देना बंद कर दिया. जिसके बाद याचिकाकर्ता ने परिसर खाली कराने और​ किराए के रूप में बकाया राशि के भुगतान के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया.

मामले में हाईकेार्ट की एक पीठ ने 25 फरवरी 2021 को मकानमालिक याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया और अधिवक्ता को परिसर खाली करने के साथ बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया.

पीठ के समक्ष अधिवक्ता ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह दो महीने के भीतर तीन किश्तों में पूरी बकाया राशि का भुगतान करेगा और वह मई 2021 तक संपत्ति खाली कर देगा.

अदालत के आदेश के बावजूद आरोपी अधिवक्ता ने अपने हलफनामें के विपरित दिसंबर 2021 में परिसर खाली किया और उसके बाद भी अब तक बकाया राशि का भुगतान नहीं किया.