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POCSO bail hearings के दौरान पीड़िता की मौजूदगी को लेकर Delhi High Court ने जारी किये दिशा निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि POCSO मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान जब भी पीड़िता अदालत में पेश होती है, उस समय उसके साथ सहयोगी व्यक्ति को साथ रहने देना चाहिए ताकि उससे उसे मनोवैज्ञानिक सहायता मिल सके.

Written By Nizam Kantaliya | Published : January 19, 2023 8:25 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO केस में आरोपी की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान पीड़िता की व्यक्तिगत उपस्थिति को लेकर गाइडलाइन जारी  करते हुए कई निर्देश दिए है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यह पीड़िता के हित में है कि कोर्ट की कार्यवाही में उपस्थित होकर विभत्स घटना को दोबारा जीने से उसे बार-बार आघात न लगे. इसके लिए जरूरी है पीड़िता के लिए ऐसे मौके कम से कम आए जब वो आरोपी का सामना करे.

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POCSO के एक मामले में आरोपी की ओर से दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई के दौरान जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ के समक्ष पॉक्सो पीड़िताओं की परेशानी का उजागर किया गया.

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अपीलकर्ता आरोपी के साथ ही दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव की ओर से अदालत को बताया गयाा कि POCSO में आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान पीड़िताओं को व्यक्तिगत या वर्चुअल माध्यम से पेश होने के लिए मजबूत किया जा रहा है.

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अदालत को बताया गया कि जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कई बार ऐसी स्थिति भी पैदा होती है जहां पीड़िता को ना केवल संभावित रूप से आरोपी व्यक्ति के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर किया गया बल्कि जब अपराध के संबंध में बहस की जा रही थी या सुनवाई हो रही थी तो अदालत में  भी पीड़िता को उपस्थित रखा गया.

होता है मनोवैज्ञानिक प्रभाव

प्राधिकरण के सचिव की ओर से दिए गए तर्को से प्रभावित होते हुए पीठ ने माना कि POCSO के मामलों में याचिका पर सुनवाई और बहस के दौरान पीड़िता की मौजूदगी उसके मानस पर मनोवैज्ञानिक प्रतिकूल प्रभाव डालते है.

इस तरह की स्थिति से दलीलों  के दौरान पीड़िता की अदालत में उपस्थित होने पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव गंभीर होता है क्योंकि बहस और दलीलों के दौरान पीड़िता, उसके परिवार आदि की सत्यनिष्ठा, चरित्र आदि पर संदेह, अभियोग, आरोप लगाए जाते है.

अदालत ने कहा कि बहस का वो समय पीड़िता के मानस पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, इस तरह पीड़िता को अभियुक्त के साथ अदालत में उपस्थित होने के लिए मजबूर किया जाता है, जो वही व्यक्ति है जिसने कथित रूप से उसके साथ कृत्य किया था.

11 दिशानिर्देश जारी

जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने इस मामले में पॉक्सो पीड़ितों की मदद के लिए प्राधिकरण के सचिव के साथ अपीलकर्ता के अधिवक्ताओं को सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया था. उनके द्वारा दिए गए सुझाव को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि वे इस बात को स्वीकार करते है कि अगर सही भावना और इरादे से ये दिशा निर्देश लागू किए जाते है तो POCSO पीड़िताओं को मिलने वाला दर्द को बहुत हद तक कम कर सकते है.

पीठ ने इस मामले में पॉक्सो पीड़िताओं की मदद के लिए 11 दिशानिर्देश जारी किए है.

1 -केस का जांच अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि पीड़िता को जमानत आवेदन के नोटिस की समय पर तामील की जाए, जिससे उसकी उपस्थिति दर्ज करने और अपनी दलीलें पेश करने के लिए उचित समय मिल सके.

2 -जांच अधिकारी पीड़िता/अभियोजिका को जमानत आवेदन का नोटिस या समन देते समय पीड़िता और उसकी परिस्थितियों के बारे में प्रासंगिक पूछताछ करेगा और जमानत आवेदन की सुनवाई में अदालत की सहायता के लिए और प्रभावी प्रतिनिधित्व की सुविधा के लिए उसी का दस्तावेजीकरण करेगा.

जांच अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की पूछताछ करते समय पीड़ित को असहज महसूस न कराया जाए या किसी अपराध में सह अपराधी की तरह पूछताछ न की जाए. पीड़िता से घटना की पूछताछ करते समय जांच अधिकारी को आवश्यक संवेदनशीलता बरतनी होगी.

3 -पीड़िता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सहयोग से जांच अधिकारी या एक सहयोगी के साथ वर्चुअल तरीके से पेश किया जा सकता है.

पेश होने के दौरान पीड़िता के इस अधिकार का ध्यान रखा जाएगा कि पीड़िता और आरोपी का आमना सामना नही हो, जिससे पीड़िता को तकलीफ ना पहुंचे.

4 -अगर पीड़िता यह लिखित रूप में देती है कि जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान उसके वकील,माता-पिता,अभिभावक या अन्य कोई सहयोगी व्यक्ति उसकी ओर से उपस्थित होकर तर्क पेश करना चाहते है, तो ऐसी स्थिति में पीड़िता को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए दबाव नहीं दिया जाएगा.

पीड़िता की ओर से इस तरह का लिखित आवेदन अगर जांच अधिकारी के जरिए पेश किया जाता है तो यह पर्याप्त माना जाएगा.

5 -जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान अगर पीड़िता एक तारीख पर अदालत में पेश होती है तो बाद की तारीखों में उसे उपस्थिति से छूट दी जा सकती है. साथ ही अदालत में पीड़िता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील, माता-पिता, अभिभावक या समर्थक व्यक्ति को तर्क पेश करने की अनुमति दी जा सकती है.

पीड़िता की पहली पेशी के दिन ही जमानत अर्जी के आधार पर उसकी दलीलें अदालत दर्ज कर सकती है जिसका इस्तेमाल जमानत अर्जी पर फैसला सुनाने के लिए किया जा सकता है.

जमानत आवेदन के अंतिम निस्तारण में जज पीड़िता से हुई पहली बातचीत को मेंशन करते हुए फैसले के लिए उस बातचीत पर भरोसा कर अपना फैसला ले सकते है.

6 -कुछ असाधारण परिस्थितियों या मामलों में सुनवाई के दौरान अदालत में जज पीड़िता के साथ कक्ष में बातचीत कर सकते है. कक्ष में हुई बातचीत को जमानत अर्जी के लिए दी गई प्रस्तुति के रूप में शामिल करते हुए आदेश में शामिल की जा सकती है.

नहीं हो सीधे सवाल

7 -जमानत याचिका पर पीड़िता का पक्ष, आपत्ति या विरोध में दी गई दलीले दर्ज किए जाने के दौरान पीड़िता से उचित सवाल किए जाने चाहिए. पीड़िता से यह सीधा सवाल नहीं किया जा सकता कि "क्या आप आरोपी को जमानत देना चाहते हैं या नहीं?".

पीड़िता से इस तरह के सीधे सवाल किए जाने की बजाए यह सवाल किए जा सकते हैं कि मामले में अभियुक्त को जमानत दिए जाने की स्थिति में उसकी आशंकाएं और भय क्या हैं, या उसे जमानत देने से क्या उन पर कोई प्रभाव पड़ेगा.

8 -जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान जब भी पीड़िता अदालत में पेश होती है, उस समय उसके साथ सहयोगी व्यक्ति को साथ रहने देना चाहिए ताकि उससे उसे मनोवैज्ञानिक सहायता मिल सके.

9 -यह स्पष्ट किया जा सकता है कि POCSO अधिनियम के तहत मामलों में पीड़िता की उपस्थिति पर जोर नहीं दिया जा सकता है, जहां अभियुक्त कानून का उल्लंघन करने वाला भी बच्चा हो, क्योंकि ऐसे मामलों में जब कानून का उल्लंघन करने वाला भी बच्चा हो तो जमानत पीड़िता की आशंका पर निर्भर नहीं होती है.

Juvenile Justice (Care and Protection) Act, 2015 की धारा 12 बच्चों को जमानत देने के लिए अलग-अलग मापदंड निर्धारित करती है. इस तरह के मामलों में पीड़िता के बयान का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.

आदेश की प्रति दी जाए

10 -जमानत याचिका के निस्तारण के बाद आदेश की एक प्रति पीड़िता को अनिवार्य रूप से भेजी जानी चाहिए. क्योकि इस तरह के मामलो में आरोपी के जमानत पर रिहा होने पर की स्थिति में पीड़िता की सुरक्षा की चिंता बढ़ जाती है. जमानत आदेश की प्रति पीड़िता को मिलने से उसे यह ज्ञात होगा कि आरोपी को अदालत ने जमानत के लिए किन शर्तों के लिए पाबंद किया गया है.

आदेश की प्रति मिलने से आरोपी द्वारा जमानत शर्तों का उल्लंघन करने की स्थिति में पीड़िता जमानत रद्द करने के लिए अदालत जाने का अधिकार रखती है.

11 -अदालत में आरोपी के साथ पीड़िता के संपर्क को कम से कम संभव करने की आवश्यकता के बारे में न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाया जाए और पीड़िता को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए जोर देने के बजाय जमानत आवेदन की सुनवाई के समय अदालत में एक अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से पीड़िता का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जाए.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि  न्यायिक अधिकारियों को इस हद तक संवेदनशील बनाया जा सकता है कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 24 सितंबर 2019 को जारी किए गए दिशा निर्देश, सुप्रीम कोर्ट के Reena Jha v. Union of India और “Miss G’ (Minor) through her Mother v. State of NCT of Delhi के फैसले में जारी किए गए निर्देशो का पालन हो सके.