वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता समझौते का मसौदा तैयार करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने जारी किए दिशा निर्देश
नई दिल्ली: वैवाहिक मामलों में अदालत कोशिश करती है कि दोनों पक्षों में समझौते या मध्यस्थता से निवारण किया जाए. ऐसे ही एक वैवाहिक मामले की सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट सेटलमेंट एग्रीमेंट का मसौदा तैयार करते समय मध्यस्थों द्वारा पालन करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं.
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने एक और महत्वपूर्ण निर्देश दिया और कहा है कि ऐसे समझौतों को अंग्रेजी के अलावा हिंदी भाषा में भी प्रकाशित किया जाना चाहिए.
यह निर्देश जारी करते हुए उन्होंने कहा कि मध्यस्थों के लिए सुसंगतता, निरंतरता और स्पष्टता के साथ समझौतों का मसौदा तैयार करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन विवाद को अविलंब समाप्त करके और विवाद में शामिल पक्षों को भविष्य में मुकदमों से बचाकर "जरूरतमंदों के जीवन को ठीक करने" में काफी मदद करेगा.
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कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि, "The lives of people embroiled in matrimonial litigation are often in state of turmoil, and thus, the mediation as a method of alternate dispute resolution has to come to their rescue instead of further extending the state of turmoil. Guidance needed by the mediators to draft agreements with degree of coherence, consistency, and unambiguity will come a long way in healing the lives of those in need of such healing by immediately putting an end to a dispute and further insulating them from future litigation."
निर्णय में कहा गया कि, "This Court by way of this judgment only aims to ensure that challenges to such mediation agreements due to lack of clarity or missing out on the crucial aspects of the agreement are minimized."
हाई कोर्ट के निर्देशनुसार, एक मध्यस्थता समझौते में सभी पक्षों के नाम विशेष रूप से होने चाहिए और 'प्रतिवादी', 'प्रतिवादियों', 'याचिकाकर्ता' या 'याचिकाकर्ताओं' जैसे शब्दों से बचना चाहिए, कोर्ट ने कहा की इससे अस्पष्टता और आगे मुकदमेबाजी होती है.
कोर्ट के निर्देश में कहा गया कि, “नियमों और शर्तों की पूर्ति की टाइमलाइन के साथ-साथ उन्हें निष्पादित करने की टाइम-लाइन का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, जहां तक संभव हो कोई अस्थायी तिथियां नहीं होनी चाहिए. समझौते में एक डिफ़ॉल्ट क्लॉज शामिल किया जाना चाहिए और उसके परिणामों को समझाया जाना चाहिए और समझौते में ही सूचीबद्ध किया जाना चाहिए.”
दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी निर्देशित किया कि आईपीसी की धारा 498ए से जुड़े मामलों में, समझौते में उन सभी पक्षों के नाम शामिल होने चाहिए, जिनका नाम एफआईआर में दर्ज किया गया है. साथ ही यह भी कहा की एफआईआर को रद्द करने के लिए दावों का समग्र रूप से निपटारा किया गया है भी दर्ज किया जाना चाहिए.
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि समझौते में इस्तेमाल भाषा पार्टियों के वास्तविक इरादे और उन लक्ष्यों को समझने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए जिसे वे समझौते के जरिए हासिल करना चाहते हैं.
मध्यस्थता केंद्रों के संबंधित प्रभारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जहां तक संभव हो अंग्रेजी भाषा के अलावा हिंदी भाषा में भी मध्यस्थता समझौते तैयार किए जाएं.
कोर्ट के अनुसार, ऐसा निर्देश इसलिए जारी किया जाता है क्योंकि अधिकांश मामलों में पक्षकार अंग्रेजी नहीं समझते हैं, और उनकी मातृभाषा हिंदी होती है.
कोर्ट ने कहा, "इस फैसले की एक प्रति प्रभारी, दिल्ली हाईकोर्ट मध्यस्थता और सुलह केंद्र (समाधान) के साथ-साथ दिल्ली के सभी जिला न्यायालयों में सभी मध्यस्थता केंद्रों के संबंधित प्रभारी को ध्यान देने और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अग्रेषित की जाए. एक प्रति निदेशक (अकादमिक), दिल्ली न्यायिक अकादमी को भी भेजी जाए.”