BCI अध्यक्ष मनन मिश्रा की 'राज्यसभा सदस्यता' करें रद्द, याचिका खारिज करते हुए Delhi HC ने लगाया 25000 रूपये का जुर्माना
दिल्ली उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के अध्यक्ष के रूप में कथित रूप से लाभ का पद’ धारण करने के लिए राज्यसभा से अयोग्य ठहराने के अनुरोध वाली याचिका खारिज कर दी है. अदालत ने इस याचिका को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते हुए याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है. याचिका में आरोप लगाया गया था कि मिश्रा संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ए) के तहत अयोग्य हैं, लेकिन अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया है.
याचिका कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि वकील अमित कुमार दिवाकर द्वारा दायर याचिका में कोई दम नहीं है और यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है. इसलिए याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया. अदालत ने सात अक्टूबर के आदेश में यह राशि चार सप्ताह के भीतर दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने का निर्देश दिया. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि मिश्रा संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ए) के तहत उस प्रतिबंध के कारण एकसाथ राज्यसभा के वर्तमान सदस्य और बीसीआई के अध्यक्ष के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं. यह अनुच्छेद भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाले संसद सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित है.
याचिका में दावा किया गया है कि बीसीआई के अध्यक्ष का पद लाभ के पद के रूप में है क्योंकि इसकी भूमिका में वैधानिक कार्य, महत्वपूर्ण प्रशासनिक जिम्मेदारियां, अर्ध-न्यायिक कार्य और वित्तीय शक्तियां शामिल हैं. हालांकि, न्यायमूर्ति नरूला ने कहा कि संविधान संसद के किसी भी सदस्य की अयोग्यता से निपटने के लिए एक अच्छी तरह से परिभाषित तंत्र प्रदान करता है और वरिष्ठ वकील को अयोग्य ठहराने के लिए कदम उठाने के लिहाज से कानून और न्याय मंत्रालय को निर्देश देने संबंधी याचिकाकर्ता की याचिका समुचित नहीं है.
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चुनाव याचिका दायर करते, ना कि रिट याचिका
अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 102(1) के तहत अयोग्यता केवल कुछ आरोपों या अनुमानों के आधार पर स्वतः ही नहीं हो सकती. इसके लिए संविधान द्वारा निर्धारित औपचारिक जांच और तर्कपूर्ण निर्धारण की आवश्यकता है. यह अस्पष्ट आरोप संवैधानिक प्रक्रिया की अवहेलना करते हुए मंत्रालय को निर्देश जारी करने के लिए इस अदालत के लिए आधार नहीं बन सकता. इसलिए, निर्णय में विधि एवं न्याय मंत्रालय और भारत के निर्वाचन आयोग को निर्देश देने के अनुरोध को अविचारणीय पाया गया. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने आवश्यक रूप से मिश्रा के राज्यसभा के लिए निर्वाचन को चुनौती दी है और इसका उपाय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार चुनाव याचिका दायर करना था, न कि रिट याचिका (मंत्रालय को निर्देश देने के अनुरोध वाली).