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दिल्ली हाई कोर्ट ने AISC मामले में डाबर इंडिया की अपील को किया ख़ारिज

अदालत ने कहा कि विज्ञापन से यह साफ पता चलता है कि विज्ञापन अपने प्रतियोगियों को नीचा दिखाता है और जिसे बिना किसी वैज्ञानिक शोध के किया गया.

Written By My Lord Team | Published : January 10, 2023 10:43 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने 9 जनवरी को डाबर इंडिया बनाम भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (AISC) के मामले में डाबर इंडिया की अपील को ख़ारिज कर दिया. अपील ट्रायल कोर्ट के निर्देश के खिलाफ दायर की गयी थी. जिसकी सुनवाई दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस मनोज कुमार ओहरी द्वारा की गई.

क्या है मामला ?

डाबर इंडिया एक ऐसी कंपनी है जो खाने से सम्बंधित उत्पादों और आयुर्वेदिक दवाओं का उत्पादन करती है. कंपनी ने ऐसा दावा किया है कि यह पहली ऐसी कंपनी है जो वैज्ञानिक रूप से परीक्षण किए गए आयुर्वेदिक उत्पादों और अन्य स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों को प्रदान करती है.
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कुछ साल पहले ही "डाबर वीटा" के नाम से एक उत्पाद जारी किया गया , जिसमे अध्ययन और शोध का हवाला देते हुए यह दावा किया गया कि जो व्यक्ति इसका सेवन करेगा उसको दूध, जूस और फलों के उत्पादों की तुलना में दोहरी प्रतिरक्षा (Immunity) प्रदान होगी.

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डाबर इंडिया के खिलाफ उसके विज्ञापन के लिए AISC में शिकायत दर्ज की गई थीं और AISC ने अपने निष्कर्षों में शिकायतों को सही पाया और कंपनी के खिलाफ एक आदेश दिया. जिसके किहलाफ अपीलकर्ता ने ट्रायल कोर्ट में एक आवेदन दायर किया था, जिसे खारिज कर दिया गया था और अब अपीलकर्ता ने राहत के लिए दिल्ली हाई कोर्ट को संपर्क किया है.
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किस बात पर हुई शिकायत?

हालांकि AISC, जो विज्ञापन के लिए एक स्व-नियामक निकाय है उसे डाबर इंडिया के विज्ञापन जिसमे यह दावा किया गया की "भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रतिरक्षा विशेषज्ञ" और "कोई अन्य स्वास्थ्य पेय आपके बच्चे को बेहतर प्रतिरक्षा नहीं देता". इससे सम्न्बंधित दो शिकायतें मिलीं, यह जिसमे यह कहा गया है की यह विज्ञापन सिर्फ AISC के दिशा निर्देशों के खिलाफ ही नहीं है बल्कि अतिशयोक्तिपूर्ण है और लोगों को गुमराह करता है और इन बड़े-चढ़े गलत विज्ञापन से अन्य कंपनियों को नुक्सान होता है.

दोनों पक्षों ने कोर्ट में क्या दी दलीलें

अपीलकर्ता का प्राथमिक तर्क यह था कि कंपनी को बिना किसी दुर्भावनापूर्ण इरादे के केवल व्यावसायिक उद्देश्य के लिए ऐसे आकर्षक वाक्यांशों का उपयोग करने की अनुमति है.

उन्होंने आगे तर्क देते हुआ कहा की यह विज्ञापन सिर्फ ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए था और विज्ञापन में कहीं भी उन्होंने किसी अन्य कंपनी के किसी अन्य उत्पाद का उल्लेख नहीं किया है और अन्य उत्पादों को नीचा नहीं दिखाया गया.

प्रतिवादी ने तर्क देते हुए कहा कि अपीलकर्ता ने Covid-19 महामारी के चरम के दौरान प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने का दावा किया. इसके अलावा यह कहा गया कि अपीलकर्ता प्रतिवादी के नियामक निकाय और उसके आचार संहिता का हिस्सा है, जिससे प्रतिवादी के दिए गया फैसला उसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत है.

आगे यह भी कहा गया कि अपीलकर्ता यह दिखाने में विफल रहा है कि उसके खिलाफ दी गयी शिकायत बेबुनियाद है.

कोर्ट ने क्यों नहीं दी डाबर इंडिया को राहत

अदालत ने एआईएससी के निष्कर्षों के अनुसार कहा कि डाबर इंडिया के दावों का कोई वास्तविक वैज्ञानिक समर्थन नहीं था और ये दावे सिर्फ चूहों पर किए गए परीक्षणों पर आधारित थे. अदालत ने आगे कहा कि प्रतिवादियों के पास उचित अधिकार हैं क्योंकि इसे केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम (Cable Television Networks Rules),1994 में कानूनी मान्यता प्राप्त है.

अदालत ने यह कहा विज्ञापन से यह स्पष्ट होता है की विज्ञापन अपने प्रतियोगियों को नीचा दिखाता है और जिसे बिना किसी वैज्ञानिक शोध के किया गया. अदालत ने कहा कि हालांकि विज्ञापनों में आकर्षक वाक्यांशों का उपयोग करने की अनुमति है लेकिन यह भ्रामक नहीं होना चाहिए जैसा कि वर्तमान मामले में है.

अंत में अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता ने विज्ञापन कोड में उल्लिखित अन्य उपायों को इस्तेमाल नहीं किया है.

अपीलकर्ता ने प्रतिवादी द्वारा आदेश को रद्द करने के मांग किए बिना ट्रायल कोर्ट में अंतरिम आदेश की मांग की थी , जिसपे ट्रायल कोर्ट ने सही निर्णय सुनाया क्युकी अपीलकर्ता या उसके उत्पादों को कोई नुकसान नहीं हुआ है ना ही उनके उत्पादों को उत्पादन को रोका जा रहा है और सारे सबूत इनके खिलाफ थे, जिसको वो गलत साबित करने में विफल रहे. इसलिए दिल्ली हाई कोर्ट ने अपीलकर्ता की अपील को खारिज कर दी और प्रतिवादियों और निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा.