दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्नाव रेप केस के दोषी कुलदीप सेंगर की अंतरिम ज़मानत की अवधि को घटाया
नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस पूनम ए बंबा की पीठ ने शुक्रवार को कुलदीप सेंगर को उनकी बेटी की शादी के लिए दी गई अंतरिम ज़मानत की अवधि को कम कर दिया. कुलदीप सेंगर को उन्नाव रेप मामले में दोषी करार किया गया था. दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा 16 जनवरी को कुलदीप सेंगर को दो सप्ताह की अंतरिम ज़मानत की मंजूरी दी गई थी.
आज दिल्ली हाई कोर्ट की उसी पीठ ने अंतरिम ज़मानत की अवधि को कम कर दिया. सेंगर को 27 जनवरी, शुक्रवार की सुबह ज़मानत पर जेल से रिहा किया गया था.
सेंगर की रिहाई के बाद, पीड़िता ने अपनी और अपने परिवार और अन्य गवाहों के जान को खतरा में होने का हवाला देते हुए सेंगर की रिहाई के खिलाफ याचिका दायर की. पीड़िता के आवेदन के बाद, अदालत ने अपने ज़मानत आदेश को संशोधित किया और कहा कि कुलदीप सेंगर अपनी बेटी के तिलक संस्कार, जो 30 जनवरी को है, उसको पूरा करने के बाद एक फरवरी को पुलिस के सामने अपने आप को आत्मसमर्पण करेंगे.
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कोर्ट ने आगे कहा कि वह 6 फरवरी को फिर से जेल से छोड़े जायेंगे क्योंकि 8 फरवरी को उनकी बेटी की शादी तय है और 10 फरवरी को वह फिर से आत्मसमर्पण करेंगे.
इससे पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने 16 जनवरी के आदेश में सेंगर को 27 जनवरी से 10 फरवरी तक के लिए ज़मानत दी थी. इससे पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने भी कोर्ट से कहा था कि वह कुलदीप सेंगर को ज़मानत देने के अपने आदेश को वापस ले.
कोर्ट में क्या दलीले दी गई
याचिकाकर्ता ने अदालत में तर्क दिया कि अगर सेंगर को ज़मानत पर रिहा किया जाता है तो इससे याचिकाकर्ता और उसके परिवार की जान को खतरा है. याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि सेंगर का बहुत प्रभाव है क्योंकिसारे सरकारी अधिकारी सेंगर द्वारा ही नियुक्त किये गए है.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सेंगर के जेल में होने के बावजूद पीड़िता पर हमेशा खतरा मंडराता रहा है. याचिकाकर्ता का कहना है कि जहां सामान्य लोगों को शाम को ज़मानत पर रिहा किया जाता है, वहीं सेंगर को सुबह जल्दी रिहा किया गया है, जो उसके प्रभाव को दर्शाता है.
प्रतिवादी याचिकाकर्ता के तर्कों से सहमत नहीं थे और कहा कि कोर्ट ने पहले से ही सेंगर पर एहतियात के लिए शर्तें लगाई हैं और इसलिए उनके अंतरिम ज़मानत आदेश को वापस लेने की कोई आवश्यकता नहीं है. प्रतिवादी ने आगे कहा कि यदि अदालत चाहे तो वह अवधि कम करने के बजाय सेंगर को अपने घर में रहने के लिए कह सकती है.
क्या है पूरा मामला
सेंगर पर 2017 में नाबालिग के अपहरण और बलात्कार का आरोप लगाया गया था और बाद में बलात्कार पीड़िता के पिता की हत्या का भी आरोप लगाया गया था. वही ट्रायल कोर्ट ने 2019 में सेंगर को नाबालिग के अपहरण और बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसके लिए उसने हाई कोर्ट में अपील की थी और मामला अभी भी लंबित है.
जबकि 2020 में सेंगर को पीड़िता के पिता की हत्या के लिए 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी.