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Delhi Govt Vs Centre: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, केंद्र ने एलजी की शक्तियां बरकरार रखने वाला 'राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विस अथॉरिटी' अध्यादेश जारी किया

L.G Vinai Kumar Saxena and Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal

अध्यादेश के अनुसार, अथॉरिटी का नेतृत्व दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे, और इसमें दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और गृह सचिव भी शामिल होंगे. अथॉरिटी का उद्देश्य दिल्ली सरकार में सेवारत ग्रुप 'ए' अधिकारियों और DANICS अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर फैसला लेना है.

Written By My Lord Team | Published : May 20, 2023 11:46 AM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पिछले सप्ताह के फैसले में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पास सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार के नियंत्रण के आदेश के कुछ ही दिनों बाद शुक्रवार की रात को केंद्र सरकार ने दिल्ली में 'राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विस अथॉरिटी' अध्यादेश जारी किया.

अध्यादेश के अनुसार, अथॉरिटी का नेतृत्व दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे, और इसमें दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और गृह सचिव भी शामिल होंगे. अथॉरिटी का उद्देश्य दिल्ली सरकार में सेवारत ग्रुप 'ए' अधिकारियों और DANICS अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर फैसला लेना है.

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खबरों के अनुसार, स्थायी अथॉरिटी का गठन अनुच्छेद 239AA के पीछे मंशा और उद्देश्य को प्रभावी करने के लिए तथा उपराज्यपाल (एलजी) को ट्रांसफर पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों के संबंध में सिफारिशें करने के लिए किया जा रहा है.

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अधिसूचना में स्पष्ट कहा गया है की, "देश की राजधानी में लिया गया कोई भी निर्णय या कोई भी कार्यक्रम न केवल राष्ट्रीय राजधानी के निवासियों को बल्कि देश के बाकी हिस्सों को भी प्रभावित करता है और साथ ही राष्ट्रीय प्रतिष्ठा, छवि, विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने की क्षमता रखता है."

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अध्यादेश में यह भी कहा गया है की मतभेद की स्थिति में एलजी का निर्णय अंतिम होगा, साथ ही "केंद्र सरकार अथॉरिटी के परामर्श से अथॉरिटी को उसके कार्यों के निर्वहन में सहायता करने के लिए आवश्यक अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की प्रकृति और श्रेणियों का निर्धारण करेगी और ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ अथॉरिटी प्रदान करेगी, जैसा वह उचित समझे."

अध्यादेश पारित होने के साथ ही तर्क प्रस्तुत होने लगे की अध्यादेश का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट की संविधान न्यायाधीश पीठ, जिसमे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे, के हाल ही में दिए गए फैसले को पलटने के लिए लाया गया है.

पीठ ने फैसले में कहा था की एलजी राष्ट्रपति द्वारा सौंपी गई प्रशासनिक भूमिका के तहत शक्तियों का प्रयोग करेंगे. कार्यकारी प्रशासन केवल उन मामलों तक ही विस्तारित हो सकता है जो विधानसभा के बाहर आते हैं लेकिन राष्ट्रपति द्वारा सौंपी गई शक्तियों तक सीमित है और इसका मतलब पूरे एनसीटीडी पर प्रशासन नहीं हो सकता है... अन्यथा दिल्ली में एक अलग निर्वाचित निकाय होने का उद्देश्य व्यर्थ हो जाएगा.

पीठ ने कहा था की लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार का अपने अधिकारियों पर नियंत्रण होगा. अगर एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को अपने अधिकारियों को नियंत्रित करने और उन्हें जवाबदेह ठहराने की अनुमति नहीं है, तो विधायिका और जनता के प्रति इसकी जिम्मेदारी कम हो जाती है. अगर अधिकारी सरकार को जवाब नहीं दे रहा है तो सामूहिक जिम्मेदारी कम हो जाती है. अगर अधिकारी को लगता है कि वे निर्वाचित सरकार से अछूते हैं तो उन्हें लगता है कि वे जवाबदेह नहीं हैं.

संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में भूमि, पुलिस और कानून व्यवस्था के अलावा सेवाओं पर एनसीटीडी के फैसले से बंधे होंगे. साथ ही यह भी कहा था कि उपराज्यपाल GNCTD को अपने विधायी डोमेन से बाहर किए गए लोगों के अधीन सेवाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए.

प्रविष्टि 41 के तहत एनसीटीडी की विधायी शक्ति आईएएस तक विस्तारित होगी और यह उन्हें एनसीटीडी द्वारा भर्ती नहीं किए जाने पर भी नियंत्रित करेगी. हालांकि यह उन सेवाओं तक विस्तारित नहीं होगा जो भूमि, कानून और व्यवस्था और पुलिस के अंतर्गत आती हैं.