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मेरिट के आधार पर दी गई Default Bail को भी किया जा सकता है रद्द: Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने ये महत्वपूर्ण फैसला उनके समक्ष आए इस मुद्दे पर बहस के बाद दिया है कि क्या 90 दिनों के भीतर CRPC के तहत चार्जशीट दाखिल नहीं करने पर दी गई जमानत को, चार्जशीट पेश करने के आधार पर रद्द किया जा सकता है.

Written By My Lord Team | Published : January 17, 2023 4:55 AM IST

नई दिल्ली: किसी मामले में अदालत द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चार्जशीट पेश होने के बाद भी मेरिट के आधार पर डिफॉल्ट जमानत को रद्द किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने ये महत्वपूर्ण फैसला उनके समक्ष आए इस मुद्दे पर बहस के बाद दिया है कि क्या 90 दिनों के भीतर CRPC के तहत चार्जशीट दाखिल नहीं करने पर दी गई जमानत को, चार्जशीट पेश करने के आधार पर रद्द किया जा सकता है.

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जस्टिस एम आर शाह और सी टी रविकुमार की पीठ ने पूर्व कांग्रेसी नेता और सांसद वाई एस विवेकानंद रेड्डी की हत्या के मामले में सीबीआई की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते इस मामले में तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है.

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सीबीआई की अपील पर फैसला

तेलंगाना हाईकोर्ट ने चार्जशीट पेश होने में देरी के आधार पर हत्या के इस मामले में आरोपी एरा गंगी रेड्डी को डिफ़ॉल्ट जमानत दी थी. चार्जशीट दायर करने के बाद सीबीआई ने तेलंगाना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए एरा गंगी रेड्डी को मिली डिफ़ॉल्ट जमानत को रद्द करने का अनुरोध किया था.

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तेलंगाना हाईकोर्ट ने सीबीआई की याचिका को खारिज करते हुए आरोपी एरा गंगी रेड्डी को दी हुई Default Bail को रद्द करने से इंकार कर ​दिया. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि डिफ़ॉल्ट जमानत को योग्यता के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे जांच एजेंसियों की कार्यवाही को और देरी से करने पर मजबूर कर देगा.

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि जब आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत दी गई थी, तो वह केवल इस आधार पर दी गई थी कि पुलिस द्वारा 90 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं की गई थी, ना की मामले की मैरिट्स (Merits) को ध्यान में रखकर दी गई थी.

हाईकोर्ट के आदेश को किया रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस बात पर कोई रोक नहीं है कि एक बार किसी व्यक्ति को डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा कर दिया गया है, तो उसे मेरिट और जांच में सहयोग नहीं करने जैसे आधारों पर उसकी जमानत को रद्द नहीं किया जा सकता है.

जमानत रद्द करने की इस व्यवस्था को और भी स्पष्ट करते हुए पीठ ने कहा है कि केवल चार्जशीट दायर करने पर ही डिफ़ॉल्ट जमानत को रद्द नहीं किया जाएगा, अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी के खिलाफ मजबूत मामला पेश करने के पश्चात ही मैरिट्स के आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत को रद्द किया जा सकता है.

सर्वोच्च अदालत ने इसके साथ ही  वाईएस विवेकानंद रेड्डी की हत्या के मामले में आरोपी एरा गंगी रेड्डी को दी गई जमानत का मामला पुन: तेलंगाना हाईकोर्ट को भेजते हुए जमानत रद्द करने के बिंदु पर कहा है कि रेड्डी द्वारा एक गैर-जमानती अपराध किया गया है, और मेरिट के आधार पर उनकी जमानत पर विचार किया जा सकता है.

क्या है मामला

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी के चाचा विवेकानंद रेड्डी की मार्च 2019 में, उनके आवास पर चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी। 2020 में, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने हत्या की जांच सीबीआई को स्थानांतरित कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर में हत्या के मामले की सुनवाई को हैदराबाद की विशेष सीबीआई अदालत में स्थानांतरित कर दिया था।

सीबीआई के द्वारा दायर की गई अपील में, सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य सवाल था कि “क्या चार्जशीट पेश करने के बाद क्या डिफ़ॉल्ट जमानत को रद्द किया जा सकता है?”

क्या होती है डिफ़ॉल्ट जमानत/बाध्यकारी जमानत

आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 167(2) के अंतर्गत दी जाने वाली जमानत को 'बाध्यकारी जमानत' या 'वैधानिक जमानत' या 'डिफ़ॉल्ट जमानत' कहा जाता है। इसके तहत अपराध की प्रकृति के अनुसार यदि पुलिस यथास्थिति 90 दिन या 60 दिन की निर्धारित समय सीमा के भीतर न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र/चार्जशीट दाखिल करने में असफल रहती है तो आरोपी द्वारा जमानत साधिकार मांगी जा सकती है।

मृत्युदंड, आजीवन कारावास और कम से कम 10 साल के कारावास से दंडित अपराधों में पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिन का समय और अन्य अपराधों में 60 दिन का समय दिया जाता है। यह समय सीमा केवल भारतीय दंड सहिंता में दिए गए अपराधों पर लागू होती है। ऐसे भी अधिनियम हैं जिनके अंतर्गत पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए ज़्यादा समय भी दिया गया है।

जैसे कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (The Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985) के तहत पुलिस को 180 दिन का समय दिया गया है जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है.