सच्चाई का क्षय अदालतों में अपना रास्ता तलाश रहा है-सिंगापुर मुख्य न्यायाधीश
नई दिल्ली: देश की न्यायपालिका में आज का दिन एक ऐतिहासिक अध्याय के तौर पर दर्ज हो गया है. देश के 50 वें मुख्य न्यायाधीश की पहल पर सुप्रीम कोर्ट अपनी स्थापना कें 73 वें साल में अपना पहला स्थापना दिवस मना रहा है.
आजादी के करीब तीन साल बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान के तहत देश में न्याय के सर्वोच्च मंदिर यानी सुप्रीम कोर्ट को मंजूरी मिली थी. 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू होने के दो दिन बाद 28 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई थी.
संविधान के भाग 5 के अध्याय 4 के तहत इसे स्थापित किया गया है. सुप्रीम कोर्ट अभी तक अपना स्थापना दिवस नहीं मनाता था. इससे पहले 26 नवंबर के दिन संविधान दिवस मनाने की परंपरा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी स्थापना के 73 साल बाद आज अपना पहला स्थापना दिवस मनाया है.
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इस मौके पर आयोजित हुए स्थापना दिवस समारोह में सिंगापुर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुंदरेश मेनन मुख्य अतिथी के रूप में शामिल हुए.
सिंगापुर के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुंदरेश मेनन ने स्थापना दिवस के पहले आयोजन के अवसर पर बदलती दुनिया में न्यायपालिका की भूमिका विषय पर अपना व्याख्यान दिया.
लोगों का भरोसा जरूरी
अपने संबोधन में जस्टिस मेनन ने कहा कि पूरे विश्व में न्यायपालिका के सामने एक समान चिंताएं हैं कि उसे राजनीतिक और सामाजिक विवादों का निपटारा इस तरह से करना है कि लोगों का विश्वास बना रहे. उन्होने कहा कि न्याय प्रक्रिया पर लोगों का भरोसा बना रहना बहुत ज़रूरी है.
जस्टिस मेनन ने न्यायपालिका के सामने आई नई चुनौतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि कोविड महामारी के दौरान दुनिया भर में न्यायपालिका ने नई चुनौतियों का सामना किया. स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े मामले अंतर्राष्ट्रीय स्तर के होते हैं. इस पर सभी देशों की न्यायपालिका को सामंजस्य के साथ काम करना चाहिए.
सच्चाई का क्षय विनाश का कारण
जस्टिस मेनन ने कहा कि भले ही न्यायपालिका दुनिया के सामने मौजूद कुछ समस्याओं से निपटने के लिए सुसज्जित न हो, फिर भी इसे समझने के लिए तैयार रहना चाहिए.
उन्होने कहा कि तथ्यों को छुपाने वाले अधिवक्ताओं की तरह, यदि अदालतों में सत्य के क्षय को नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो न्यायाधीशों की आवाज विचारों के कोलाहल में एक और आवाज बन जाएगी.
जस्टिस मेनन ने कहा कि हमेंशा ही सच्चाई न्याय प्रणाली की नींव रही हैं, फिर भी सच्चाई का क्षय अदालतों में अपना रास्ता तलाश रहा है. सच्चाई का क्षय न्याय व्यवस्था में विश्वास के विनाश का कारण बनता है."
उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि विश्व की 1 अरब से ज़्यादा आबादी की अभी भी अदालतों तक पहुंच नहीं है.
वैश्विक चुनौतियां
पहले स्थापना दिवस समारोह के अपने व्याख्यान में जस्टिस मेनन ने कहा कि न्यायपालिका की चुनौतियां भी अब वैश्विक रूप से समान होने वाली है. उन्होने कहा कि नई वैश्विक चुनौतियां पहले राजनीतिक होंगी, लेकिन कानूनी आयाम भी होंगी.
जस्टिस मेनन ने कहा कि वे दिन गए कि जब अदालतें न्यायिक साइलो यानी एकांकी में काम करती थीं. उन्होने कहा कि वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक जुड़ाव की जरूरत है, न्यायिक कूटनीति की जरूरत है जिसमें औपचारिक और अनौपचारिक सहयोग हो दोनों शामिल हो.
जस्टिस मेनन ने कहा कि हमें अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रणाली को विकसित करने की दिशा में काम करना चाहिए, क्योंकि विज्ञान की उन्नति मन की स्थिति जैसे मुद्दों को मनोरोग के क्षेत्र में बदल सकती है. और इस तरह के विवाद के जटिल और समय लेने वाले होंगे.
भविष्य की चिंताए
जस्टिस मेनन ने कहा कि हमें भविष्य में क्रिप्टो मुद्रा जैसे नए कानूनी मुद्दों का सामना करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.उन्होंने कहा कि हमें और अधिक जजों की जरूरत होगी, साथ ही हमें न्यायशास्त्र के विकास के प्रति पूरी तरह जागरूक होकर संवेदनशील होना होगा.
जस्टिस मेनन ने न्याय प्रदान करने में प्रौद्योगिकी की सहायता लेने पर जोर देते हुए कहा कि भले ही अदालतें निष्पक्ष रहती हैं, उन्हें अदालत के उपयोगकर्ताओं के प्रति सहायक रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह तकनीक के माध्यम से हासिल किया जा सकता है.
उन्होने कहा कि हमें सहायक प्रौद्योगिकी के निर्वहन के लिए प्रौद्योगिकी की विशाल क्षमता पर ध्यान देना चाहिए. हमारे पारिवारिक न्यायालयों में तलाक ई-सेवा उन मामलों में स्व-प्रतिनिधित्व की अनुमति देती है, जहां हम न्याय प्रदान करने में लगातार नवाचार कर सकते हैं.
जेंडर इक्वेलिटी का मजबूत समर्थक- सीजेआई
सुप्रीम कोर्ट के पहले स्थापना दिवस पर आयोजित हुए समारोह को मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ ने भी संबोधित किया. सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन में कहा कि चाहे वह विरासत के कानून की व्याख्या हो या सशस्त्र बलों में महिलाओं के प्रवेश को सुनिश्चित करना हो, हमारी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट लैंगिक समानता के एक मजबूत समर्थक के रूप में उभरा है.
उन्होने कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत के लिए के लिए कोई केस छोटा या बड़ा नहीं होता, बल्कि हर मामला महत्वपूर्ण है. सीजेआई ने कहा कि नागरिकों की शिकायतों से जुड़े छोटे मामलों में ही संवैधानिक और न्यायशास्त्रीय महत्व के मुद्दे सामने आते हैं. ऐसी शिकायतों को सुलझाने में अदालत हमेशा ही संवैधानिक दायित्वों का पालन करती है.