बेटी की शादी से परिवार में उसकी स्थिति नहीं बदलती - Gujarat High Court
नई दिल्ली: पैतृक संपत्ति में बेटियों की हिस्से को लेकर गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री ने बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है.
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा है कि समय आ गया है जब लोगों की इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है कि परिवार में एक बार बेटी की शादी हो जाने के बाद उसे कोई संपत्ति नहीं दी जानी चाहिए.
गौरतलब है कि हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी इसी तरह की टिप्पणी करते हुए कहा था कि सिर्फ शादी से परिवार में बेटी की स्थिति नहीं बदल जाती. अगर एक पुत्र विवाहित हो या अविवाहित, फिर भी पुत्र रहता है, तो एक पुत्री विवाहित या अविवाहित होने पर उसकी स्थिति कैसे बदल सकती हैं वह भी एक पुत्री ही बनी रहेगी.
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कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि विवाह के अधिनियम से पुत्र की स्थिति में परिवर्तन नहीं होता है, ऐसी स्थिति में विवाह का कार्य किसी की स्थिति को नहीं बदल सकता है और ना ही बेटी की स्थिति को बदल सकता है.
पैतृक संपत्ति से जुड़ा मामला
मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष एक ऐसा मामला सूचीबद्ध था जिसमें जिला अदालत द्वारा पैतृक संपत्ति से जुड़े मामले में पारित किए गए अवार्ड या निर्णय का क्रियान्वयन करने का अनुरोध किया गया.
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि इस मामले में अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि प्रतिवादी ने अपना अधिकार उसके लिए छोड़ दिया है या नही, क्योकि अब तक उसके द्वारा त्यागनामा पंजीकृत नहीं किया गया है.
क्या बहन को नही देना चाहते कुछ
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के कथन पर पीठ ने जानना चाहा कि कौन है जो जिला अदालत के अवार्ड के प्रति अपने अधिकार को त्याग रहा है.
जिस पर याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इस मामले में उसकी बहन है.पीठ के समक्ष यह सामने आने के बाद की बहन का जिक्र किया जा रहा है.
मुख्य न्यायाधीश ने इस पर याचिकाकर्ता से सवाल किया कि क्या वह अब अपनी बहन को कुछ भी देने को तैयार नहीं है.मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को संबोधित करते हुए कहा कि अब आप शायद उसे कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं, ठीक है? शादी हो गई बहन की तो अब क्यू दू कुछ भी.
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने इस मामले की सुनवाई तीन सप्ताह बाद तय की है.