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मैरिटल रेप की संवैधानिक वैधता पर बहस, जानें सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई में क्या हुआ

मैरिटल रेप मामले में याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में अपवाद की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि पति और पत्नी के बीच यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जाता है.

Written By Satyam Kumar | Published : October 17, 2024 6:16 PM IST

आज सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की (Supreme Court Hears Pleas on Marital Rape). फिलहाल भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं है. केंद्र सरकार ने अदालत में एक हलफनामा दायर किया है जिसमें किसी भी अदालती हस्तक्षेप का विरोध किया है. केंद्र ने कहा कि विवाहित महिलाओं को घरेलू हिंसा और विवाहित महिलाओं के प्रति क्रूरता के खिलाफ अन्य कानूनों के माध्यम से सुरक्षा प्राप्त है. केंद्र ने कहा कि विवाह में सहमति की मामले को अलग तरीके से देखना चाहिए, लेकिन यह भी कहा कि पति को अपनी पत्नी को उसकी इच्छा के खिलाफ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए.

याचिकाकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में अपवाद की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि पति और पत्नी के बीच यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जाता है. यह प्रावधान भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 में भी मौजूद है, जो धारा 375 आईपीसी की जगह पर आई है.

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मैरिटल रेप को अपराध बनाने की मांग

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. पीठ ने याचिकाकर्ताओं की राय जाननी चाही कि इस तरह के कृत्यों को दंडनीय बनाने से वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा तथा विवाह की संस्था भी प्रभावित होगी. एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने दलीलें शुरू कीं और वैवाहिक दुष्कर्म पर आईपीसी तथा बीएनएस के प्रावधानों का जिक्र किया है.

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चीफ जस्टिस ने कहा कि यह एक संवैधानिक प्रश्न है. हमारे सामने दो निर्णय हैं और हमें फैसला लेना है. मुख्य मुद्दा संवैधानिक वैधता का है.

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नंदी ने कहा कि अदालत को एक प्रावधान को रद्द कर देना चाहिए जो असंवैधानिक है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

आप कह रहे हैं कि यह (दंडात्मक प्रावधान) अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है... संसद ने जब अपवाद खंड लागू किया था, तो उसका आशय यह था कि जब कोई पुरुष 18 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ यौनाचार में संलग्न होता है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जा सकता.’’

नंदी ने कहा कि नए अपराध की परिभाषा में मुख्य ध्यान अपराध के कार्य पर है, जिसमें बलात्कार के विभिन्न प्रकार शामिल हैं. सीजेआई ने स्पष्ट किया कि अलग हुए पति के मामले में अपराध तो है, लेकिन सजा की डिग्री कम है, जिसे 7 साल की जेल में निर्धारित किया गया है.

महिलाओं की यौन स्वायत्तता शादी के बाद भी यथावत

नंदी ने यह तर्क किया कि पति, अजनबी या अलग हुए पति द्वारा बलात्कार की स्थिति में नुकसान की मात्रा समान होती है. यदि विवाह के दौरान गंभीर हिंसक कृत्य किए जाते हैं, तो क्या यह बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता...नंदी ने जोर देकर कहा कि यदि अनैतिक यौन संबंध बिना सहमति के होते हैं, तो यह बलात्कार के अंतर्गत आता है, चाहे वह वैवाहिक संबंध में हो या न हो. नंदी ने जोसेफ शाइन मामले का हवाला दिया, जिसमें IPC की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया गया और विवाह में महिलाओं को संपत्ति के रूप में देखने की आलोचना की गई. नंदी ने अदालत के सामने यह चुनौती पेश की कि वर्तमान प्रावधान असंवैधानिक हैं और इनका नकारात्मक पक्ष की न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता है.

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि महिला की यौन स्वायत्तता उसके सम्मान और स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है और इसे नियंत्रित करना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायनण पेश हुए, तो सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अपनी दलीलें अगले मंगलवार को रखने को कहा है.