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शादी का वादा तोड़ने पर सहमति से किया गया यौन संबंध बलात्कार नहीं: उड़ीसा हाई कोर्ट

Orissa High Court Order

अदालत ने कहा कि अगर किसी रिश्ते में खटास आ जाती है और कोई व्यक्ति अपने साथी से शादी नहीं करने का फैसला करता है, तो पहले हुई शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं माना जाना चाहिए।

Written By My Lord Team | Published : July 8, 2023 2:04 PM IST

नई दिल्ली: उड़ीसा हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से होती है और यह रिश्ता आगे बढ़ जाता है। पुरुष, लड़की से शादी का वादा करता है और वह सहमति से शारीरिक संबंध बना लेता है।

अगर इसके बाद रिश्ते में घटास आ जाती है तो आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म संबंधी आपराधिक कानून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यानी शादी का वादा कर सहमति से शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जायेगा। यह फैसला जस्टिस आरके पटनायक की पीठ ने 3 जुलाई सुनाया।

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अदालत ने कहा कि अगर किसी रिश्ते में खटास आ जाती है और कोई व्यक्ति अपने साथी से शादी नहीं करने का फैसला करता है, तो पहले हुई शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं माना जाना चाहिए।

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जस्टिस पटनायक ने कहा

इस कृत्य को शादी के झूठे वादे के तहत यौन संबंध बनाने को विपरीत करार दिया और कहा , ''अच्छे विश्वास के साथ किया गया वादा, लेकिन बाद में पूरा नहीं किया जा सकने वाला वादा तोड़ने और शादी का झूठा वादा करने के बीच एक छोटा अंतर है। पहले मामले में ऐसी किसी भी शारीरिक संबंध के लिए आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध नहीं बनता है। जबकि बाद वाले मामले में यह इस आधार पर आधारित है कि शादी का वादा शुरू से ही झूठा या नकली था, जो अभियुक्त द्वारा इस समझ पर दिया गया है कि इसे अंततः तोड़ दिया जाएगा।''

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समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, अदालत ने शिकायत और अन्य सामग्रियों पर विचार करते हुए कहा कि उसका मानना है कि सामने आई पूरी कहानी दोस्ती और उसके बाद अलग-अलग परिस्थितियों में विकसित हुए रिश्ते के अस्तित्व को उजागर करती है। शुरुआती अवधि के दौरान, याचिकाकर्ता दूसरे पक्ष से शादी करने की इच्छुक थी, जिस पर वह बाद में सहमत हो गई और 4 फरवरी 2021 को समझौता भी हो गया।

आरोप है कि याचिकाकर्ता द्वारा ब्लैकमेल किए जाने के बाद धमकी या दबाव के तहत दूसरा पक्ष शादी के लिए राजी हो गया। दिलचस्प बात यह है कि महिला भी बाद में सहमत हो गई और 2021 में याचिकाकर्ता के साथ एक लिखित समझौता भी किया। यह दर्शाता है कि दोनों को एक-दूसरे के साथ व्यवहार करने और अपने रिश्ते को प्रबंधित करने में कठिन समय का सामना करना पड़ा, जो अंततः खराब हो गया।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा

शिकायत और दलीलों पर विचार करने के बाद कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाना उचित नहीं होगा। जस्टिस पटनायक ने देखा कि पक्ष शिक्षित हैं और परिणामों के बारे में काफी जागरूक थे। अभी भी खुद को एक ऐसे रिश्ते में शामिल कर रहे थे जो दूर से एकतरफा प्रतीत होता है, लेकिन ऐसा नहीं था।

कानून को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाना उचित नहीं होगा। हालांकि, जहां तक अन्य आरोपों का सवाल है, इसे पूछताछ और जांच के लिए खुला छोड़ दिया जाना चाहिए। अदालत ने इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित आईपीसी की धारा 376 (यौन उत्पीड़न) के तहत आरोप को खारिज कर दिया।