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150 रुपए की रिश्वत लेने का आरोपी क्लर्क 38 साल बाद बरी

राजस्थान हाईकोर्ट ने 1979 में रिश्वत लेने के आरोपी क्लर्क को बरी करते हुए स्पष्ट किया है कि रिश्वत के अपराध के लिए रिश्वत की मांग और रिश्वत की राशि को स्वीकार करना साबित करना जरूरी हैं.

Written By Nizam Kantaliya | Published : February 22, 2023 3:52 AM IST

नई दिल्ली: राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकारी विभाग के एक क्लर्क को 150 रुपए की रिश्वत लेने के मामले में 38 साल बाद बरी करने का आदेश दिया है.

क्लर्क हरिनारायण शर्मा राजस्थान के सीकर जिले के जिला परिवहन कार्यालय का क्लर्क था, जिसे वर्ष 1985 में 150 रुपए की रिश्वत लेने के मामले में जयपुर की एसीबी अदालत ने 3 साल की जेल और 1500 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी.

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एसीबी अदालत के फैसले के खिलाफ आरोपी हरिनारायण शर्मा ने हुए राजस्थान हाईकोर्ट में अपील दायर की थी. सालो चले मुकदमे के बाद मंगलवार को इस मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस नरेंद्र सिंह ढड्ढा की पीठ ने फैसला सुनाते हुए उसे बरी करने का आदेश दिया.

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पैसे की वसूली ही रिश्वत का आधार नहीं

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा हैं कि रिश्वत की मांग और उसकी स्वीकृति साबित नही हो पायी है.

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हाईकोर्ट ने कहा कि केवल पैसे की वसूली ही रिश्वत मांगने का आधार नहीं हो सकता. रिश्वत के आरोप को साबित करने के लिए आरोपी द्वारा रिश्वत की मांग किया जाना और उसके द्वारा राशि को स्वीकार करना साबित करना होगा.

क्या है मामला

वर्ष 1979 में शिकायतकर्ता सुल्ताना राम ने भ्रष्टाचार निवारण ब्यूरो में गाड़ी के कागज बनाने के नाम पर क्लर्क हरिनारायण द्वारा  रिश्वत मांगने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई. एसीबी ने शिकायत पर कार्रवाई करते हुए हरिनारायण शर्मा को गिरफ्तार कर लिया.

एसीबी ने अपनी चार्जशीट में क्लर्क हरिनारायण शर्मा पर अपने दो उच्च अधिकारियों के लिए रिश्वत मांगने का आरोप तय किया. जयपुर की एसीबी अदालत ने ट्रायल के बाद वर्ष 1985 में हरिनारायण शर्मा को रिश्वत लेने का दोषी मानते हुए 3 वर्ष की जेल और 1500 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बने मददगार

सजा के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट दायर की गई अपील में हरिनारायण शर्मा की ओर से अदालत को बताया गया कि एसीबी  ने इस मामले में जिन दो अन्य अधिकारियों मूलचंद और अशोक जैन के लिए रिश्वत लेने का आरोप तय किया था, उनके खिलाफ एसीबी द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की गई. इस मामले में जांच अधिकारियों ने गलत जांच की है.

बचाव पक्ष ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा रिश्वत मांगने का कोई सबूत या रिकॉर्ड एसीबी द्वारा पेश नहीं किया गया है और ना ही ऐसा सबूत पेश किया गया है जिससे यह साबित हो कि याचिकाकर्ता से बरामद की गई राशि रिश्वत के रूप में प्राप्त की गई थी.

रिश्वत की मांग साबित करना जरूरी

बचाव पक्ष ने अपने समर्थन सर्वोच्च अदालत द्वारा दिए गए फैसलों की नजीर पेश की गई जिसमें कहा गया कि रिश्वत का अपराध साबित करने के लिए रिश्वत की मांग और रिश्वत की राशि लेने की स्वीकार्यता साबित करना आवश्यक हैं.

अभियोजन पक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश की गई अपील का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में रिश्वत ली गई थी और रिश्वत की राशि बरामद भी की गई थी. इस मामले में एसीबी अदालत ने सही निर्णय किया है.

दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने एसीबी अदालत के फैसले को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता हरिनारायण शर्मा को बरी करने का आदेश दिया है.