नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A वैध है या नहीं? बांग्लादेशी प्रवासियों की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कल
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कल अपना फैसला सुनाएगी (Supreme Court to Deliver Key Ruling on Citizenship Act Section 6A). सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने चार दिनों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा है. नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए (Section 6A of Citizenship Act 1955) 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 तक असम में रहने वाले भारतीय मूल के विदेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करती है, जिसके लेकर स्थानीय समूह का तर्क है कि यह अवैध प्रवास को बढ़ावा दे रही है.
कोर्ट के सामने मसला क्या है?
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि 1966 के बाद से पूर्वी पाकिस्तान( अब बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने के चलते राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है. राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है. सरकार ने नागरिकता क़ानून में 6 A जोड़कर अवैध घुसपैठ को क़ानूनी मंजूरी दे दी. याचिकाओं 6 A के असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग की है.
सुनवाई के दौरान अवैध घुसपैठ को लेकर SC का रुख बहुत सख्त रहा है. कोर्ट ने सरकार से पूछा भी था कि देश में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है.बाग्लादेश से लगती सीमा को सुरक्षित रखने के लिए क्या कर रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अहम होगा. अवैध प्रवासियों की स्थिति और नागरिकता के मुद्दों पर केंद्रित इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय से बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद 25 मार्च, 1971 से असम और पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासियों के आने के जुड़ा डेटा उपलब्ध कराने को कहा था. अदालत ने गृह मंत्रालय से कहा था कि वे समय-समय बंग्लादेशी प्रवासियों को दी गई नागरिकता की जानकारी भी उपलब्ध कराएं.
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नागरिकता कानून का सेक्शन 6A क्या है?
नागरिकता अधिनियम 1955 की सेक्शन 6 के मुताबिक जो बांग्लादेशी अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आये है, वो भारतीय नागरिक के तौर पर ख़ुद को रजिस्टर करा सकते है. हालांकि 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिकता के लायक नहीं है.