'Adoption मौलिक अधिकार नहीं': Delhi High Court ने दो बच्चों के माता-पिता के एक ‘नॉर्मल बच्चे’ को गोद लेने की पाबंदी को रखा बरकरार
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में बच्चे को गोद लेने से जुड़ी याचिका खारिज की. दिल्ली हाईकोर्ट में पहले से ही दो सामान्य बच्चों के पैरेंटस (Parents) ने एक और बच्चे को गोद लेने की इच्छा जताई थी जिसे कोर्ट ने खारिज किया. भविष्य के लिए ऐसे पैरेंटस को सामान्य बच्चे’ को गोद लेने की मंजूरी देने से भी इंकार किया है. कोर्ट ने कहा कि बच्चे को गोद लेना (Child Adoption) एक मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की श्रेणी में नहीं आता है.
'Adoption मौलिक अधिकार नहीं है': दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 के नियमों में हुए बदलाव को जारी रखते हुए दो बच्चों के माता-पिता द्वारा एक सामान्य बच्चे’ को गोद लेने पर रोक लगाया है. पहले के नियमों के अनुसार, तीन या तीन से अधिक बच्चों के पैरेंट्स किसी अन्य बच्चों को गोद नहीं ले सकते हैं. वहीं, 2022 में इस नियम में बदलाव के बाद दो या दो से अधिक बच्चों के पैरेंट्स अब बच्चे गोद नहीं ले सकते हैं. ये नियम वेटिंग लिस्ट (Waiting List) में शामिल भावी दत्तक पैरेंट्स (Prospective Parents) पर भी लागू हुआ, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने यह कहा है कि बच्चे को गोद लेना एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं है.
'नॉर्मल बच्चा' कौन होता है?
दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (Rights of Persons with Disability) के अनुसार, वे बच्चे जिनमें किसी प्रकार के अपंगता के लक्षण नहीं है, सामान्य बच्चों की श्रेणी में आते हैं.दिल्ली हाईकोर्ट ने दो बच्चों के पैरेंट्स को सामान्य बच्चे’ गोद लेने से इंकार कर दिया है.
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दिव्यांग बच्चों की राहत के लिए हैं ये बदलाव
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने इस मामले की सुनवाई की. जस्टिस ने 2015 के नियमों में आए बदलाव को बरकरार रखा है. वहीं, CARA की संचालन समिति (Steering Committee) ने भी ऐसे सभी विचारधीन निर्णयों पर रोक लगाया है. विचारधीन निर्णयों में भावी दत्तक माता-पिता (prospective adoptive parents) बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई हो या बच्चे को हस्तांतरित करने के दौर तक पहुंची हो. भावी माता-पिता अब इन बच्चों को गोद नहीं ले पाएंगे.
जस्टिस प्रसाद ने कहा ये नियम दिव्यांग बच्चों को ज्यादा से गोद लिये जाने के लिए है. इसलिए नियम आने के पहले से लंबित मामलों पर भी ये नियम लागू हो सकते हैं. यह एक मनमाना फैसला नहीं दिखता है. कोर्ट ने कहा कि बच्चों को गोद लेने की कतार लंबी है. इनमें वैसे दंपत्ति (पति-पत्नी) भी है जिनकी कोई संतान नहीं है. ऐसे में पहले से ही बच्चों के पैरेंट्स द्वारा सामान्य बच्चों की मांग एक असंतुलन की स्थिति को उत्पन्न करता है.
क्या है मामला?
कोर्ट बच्चे की गोद लेने से जुड़ी कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था. ये याचिकाएं दो बच्चे के पैरेंट्स द्वारा एक बच्चे को गोद लेने से जुड़ी थी. इसके लिए उन्होंने CARA, 2017 के अधिनियम 5(8) के तहत उन्हें भावी पैरेंटस बनने के योग्य पाए गए. प्रक्रिया के तहत उन्हें एक रजिस्ट्रेशन नंबर मिला. और गोद लेने की प्रक्रिया की वेटिंग लिस्ट में शामिल हुए.
इस दौरान, 23 सितंबर, 2022 को एडॉप्शन के नियमों में बदलाव हुए. इसकी सूचना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने जारी की. सूचना में 2017 के रेगुलेशन के सेक्शन 5(8) को बदल दिया गया जिसमें तीन या तीन से अधिक बच्चों के पैरेंटस द्वारा एडॉप्शन पर रोक थी. अब नये नियमों के सेक्शन 5(7) के अनुसार, दो या दो से अधिक बच्चों के पैरेंट्स अब बच्चों को गोद नहीं ले सकते हैं. वहीं, CARA की कार्यकारी समिति ने पहले से वेटिंग लिस्ट में शामिल पैरेंट्स पर भी लागू होने के निर्देश दिए. अब इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती मिली जिसे दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.