'पति के रिश्तेदारों के खिलाफ बेवजह आईपीसी की सेक्शन 498A के तहत मुकदमा किया जाता है', कर्नाटक हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी
हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के रिश्तों को लेकर अहम टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा, पति के परिवार के सदस्यों को अक्सर IPC के सेक्शन 498A के तहत पत्नी के साथ क्रूरता के मामलों में फंसाया जाता है, जबकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है. बता दें कि इस केस में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पति-पत्नी के आपसी मतभेद में आठ परिजनों को राहत दी हैं. वहीं, पति और उसके मां के खिलाफ विवाद की कार्रवाही को बरकरार रखा है.
पत्नी ने पति, उसकी मां सहित आठ परिजनों के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 498ए के तहत मुकदमा दर्ज कराया था. पति ने पत्नी के इसी शिकायत को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
परिजनों को बेवजह घसीटा जा रहा है: कर्नाटक हाईकोर्ट
जस्टिस सीएम जोशी ने सेक्शन 498A (पति या पति के रिश्तेदार द्वारा महिला के साथ क्रूरता करना) के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि दंपतियों के बीच मामूली मतभेदों के कारण अदालती मामले सामने आ रहे हैं.
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कोर्ट ने कहा,
“आईपीसी के सेक्शन 498 A के प्रावधानों का अक्सर दुरुपयोग किया जाता है और दंपति के बीच मामूली मतभेदों को अनावश्यक रूप से पति के सभी परिवार के सदस्यों को शामिल करके अदालत में लाया जाता है. वास्तव में, यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं होगा कि पति और पत्नी के बीच कथित विवाद में पति के रिश्तेदारों की भी भूमिका थी."
कोर्ट ने मामले में पति के आठ परिजनों को राहत दी है. कोर्ट ने कहा, वे परिजन तो दंपत्ति के साथ भी नहीं रह रहे हैं.
बेंच ने कहा,
“इसलिए, शिकायतकर्ता पर किए गए कथित उत्पीड़न में आरोपी नंबर 3 से 10 की संलिप्तता न तो एफआईआर से और न ही जांच दस्तावेजों से सामने आ रही है. आरोपी संख्या 3 से 10 की ऐसी संलिप्तता केवल उनके खिलाफ सर्वव्यापी आरोपों के रूप में है और उनके उत्पीड़न का विशिष्ट विवरण नहीं बताया गया है,''
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा, पत्नी की शिकायत पर पति के परिवार वालों को भी मामले में फंसाया जाता है, जबकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं होता है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता एवं उसकी मां के खिलाफ मामले को जारी रखा है. वहीं, उसके आठ परिजनों के खिलाफ मामले को रद्द किया.