कोलेजियम के फैसलों को सार्वजनिक डोमेन पर नहीं रख सकते
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजो की नियुक्ति करने वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के फैसलो की जानकारी आरटीआई के जरिए प्राप्त नही की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर 2018 को हुई कॉलेजियम की बैठक की जानकारी आरटीआई के जरिए सार्वजनिक करने की मांग को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया है.
जस्टिस एम आर शाम और जस्टिस एस रविन्द्र की पीठ ने शुक्रवार को इस याचिका पर सुनवाई के बाद RTI अधिनियम के तहत कॉलेजियम के विवरण का खुलासा करने की मांग को ठुकराते हुए कहा कि कालेजियम की बैठक की जानकारी आरटीआई के दायरे में नहीं आती
आरटीआई का दायरा
सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर 2019 को दिए एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को भी 'पब्लिक ऑफिस' करार दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालिन जज जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा 2010 में दिए गए फैसले को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 124 के तहत इसे मंजूर किया था.
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9 साल तक चले मुकदमें के बाद पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता में गठित 5 सदस्य संविधान पीठ ने 13 नवंबर 2019 को ये फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर सार्वजनिक कार्यालय है, इसलिए यह आरटीआई कानून के दायरे में आएगा.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ ने देश के 50 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने के एक सप्ताह बाद 14 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट में ऑनलाइन RTI पोर्टल की शुरुआत की थी.
हाईकोर्ट ने खारिज की थी याचिका
आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दिसंबर 2018 को हुए कालेजियम की बैठक की जानकारी के अनुरोध को लेकर दायर याचिका को याचिका को खारिज कर दिया था.
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अंजली भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कॉलेजियम बैठक के विवरण को सार्वजनिक करने का अनुरोध किया. दिसंबर 2018 में हुई कॉलेजियम बैठक में हाईकोर्ट के दो मुख्य न्यायाधीशों को पदोन्नति की सिफारिश की गयी थी.
पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह निर्णय 10 जनवरी 2019 को पारित हुआ था, जिससे पता चलता है कि 2018 की बैठक में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया था.
चर्चा हुई, अंतिम निर्णय नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कॉलेजियम बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसका अस्थायी निर्णय सार्वजनिक डोमेन में नहीं लाया जा सकता है और केवल उसका अंतिम निर्णय ही सार्वजनिक किया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि पदोन्नति को लेकर कुछ विचार-विमर्श हो सकता है, लेकिन जब तक उचित परामर्श के बाद अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता है और अंतिम निर्णय के आधार पर एक प्रस्ताव तैयार नहीं किया जाता है, तब तक जो भी विचार-विमर्श हुआ है, उसे कॉलेजियम का अंतिम निर्णय नहीं कहा जा सकता है और केवल कॉलेजियम द्वारा पारित वास्तविक प्रस्ताव या स्टेटमेंट ही कॉलेजियम का अंतिम निर्णय कहा जा सकता है
पीठ ने कहा कि 3 अक्टूबर 2017 के प्रस्ताव के अनुसार केवल अंतिम निर्णय को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाईट पर अपलोड किया जाएगा. ऐसे में 18 दिसंबर 2018 को इस तरह का कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया था, जो एक अंतिम प्रस्ताव के रूप में समाप्त हुआ और कॉलेजियम के सभी सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया.इसलिए इसे सार्वजनिक डोमेन में प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है
बयान से शुरू हुआ था विवाद
इस पुरे मामले का विवाद तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट सेवानिवृत जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने एक इंटरव्यू में 18 दिसंबर 2018 को हुए कॉलेजियम की बात सार्वजनिक की. जस्टिस लोकुर ने कहा था कि उस बैठक में दो हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को पदोन्नति की सिफारिश करने के निर्णय को अंतिम रूप दिया गया था लेकिन उनकी सेवानिवृत्ति के बाद इसे बदल दिया गया.
जस्टिस मदन बी लोकुर के इस बयान के बाद ही कॉलेजियम की दिसंबर 2018 के बैठक के निर्णय को सार्वजनिक करने की मांग उठने लगी. बाद में अंजली भारद्वाज ने दिल्ली हाईकोर्ट में इसे लेकर याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया था.